अनामिका की प्रथम कृति “अनामिका” का विधिवत लोकार्पण हुआ।
राष्ट्रीय कवि सौरभ जैन सुमन ने राष्ट्र संवाद को बताया कि अनूठा था ये विमोचन। न कोई नेता न कोई कवि न साहित्यकार न श्रोता। कहाँ हुआ ये। ये था उस ईश्वर के सन्मुख जिसने अनामिका को नाम दिया, जिसने पहचान दी। पहला विमोचन अनामिका को जन्म देने वाले उनके माता पिता के हाथों से अतिशय क्षेत्र देवगढ़ में भगवान श्री शांतिनाथ जी की मनोहारी, अतिशयकारी प्रतिमा के सम्मुख हुआ।
उन्होंने बताया कि अगर है दूसरा बड़ागाँव के उन पार्श्वनाथ भगवान के सम्मुख जिन्हें अनामिका अपना आराध्य मानती हैं। बड़ागाँव में ही पहली बार अनामिका और मेरा मिलन हुआ था। वो स्थान हमारे लिए जो महत्व रखता है उसे शब्दो मे व्यक्त करना कठिन है।
भगवान पार्श्वनाथ के सम्मुख मेरे माता-पिता के हाथों से अनावरण हुआ उनकी कृति का। उसके बाद हम गए बागपत जहाँ हमारे गुरुदेव परम पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी साक्षात विद्यमान हैं। उनके श्री चरणों मे भेंट कर पुस्तक उनसे आशीष लिया।
श्री जैन ने बताया कि मैंने बहुत कहा कि एक बड़ा उत्सव करते हैं, देश के बड़े नामों को आमंत्रित करेंगे, भीड़ होगी, नाम होगा आदि आदि। पर अनामिका का मन था कि पुस्तक का विमोचन उस दरबार मे हो और उनके सामने हो जिनके कारण अनामिका अनामिका है।
मैं आज पुनः गर्व महसूस कर रहा हूँ कि मेरे जीवन में मेरी संगिनी, मेरी हमकदम, मेरी पत्नी के रूप में मुझे अनामिका मिली। ईश्वर इस संबंध को जन्मजन्मांतर तक ऐसे ही बनाये रखे।