बिहार में सियासी भूचाल के संकेत
निजाम खान
देश की राजनीति में डिमांड के जनक और सत्ता के केंद्र बने नीतीश कुमार को लेकर एक बार फिर कहा जाने लगा कि वे नरेंद्र मोदी के हाथ को मजबूत करने जा रहे हैं। अचानक से बदली सियासी तस्वीर ने बिहार की राजनीति में भूचाल ला दिया है। कौन किस से मिल रहा है, कौन क्या बोल रहा है और किसने कब कब क्या कहा, उन सबों का राजनीतिक निहितार्थ निकाला जाने लगा है। ऐसे में भाजपा के हमलावर रुख में थोड़ी नरमी ने भी राज्य के सियासी पारा को बढ़ा दिया है। और फिर अचानक से नीतीश कुमार ने जेडीयू के सभी सांसदों और विधायकों से अगले आदेश तक पटना में मौजूद रहने को कहा है। यह खबर जंगल में लगी आग की तरह फैल गई। और भाजपा ने भी विधानमंडल की बैठक बुलाकर सियासी आग में घी डालने का काम किया।
आसान है नीतीश कुमार का एनडीए में आना?
जेडीयू सूत्रों की बात माने तो एनडीए में जाने का फैसला तो उस राष्ट्रीय कार्यकारिणी और परिषद में हो गया था, जिसमे तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने इस्तीफा दिया और नीतीश कुमार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। जानकारी के अनुसार डिमांड में बने नीतीश कुमार का इस बार एनडीए में शामिल होना आसान नहीं है। इस बार कुछ ऐसी शर्तें हैं जिसे पूरा करने में भाजपा को काफी परेशानी भी होगी। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार इस बार जेडीयू का डिमांड कुछ इस तरह है…
लोकसभा चुनाव में जदयू की तरफ से 17 सीट पर ही चुनाव लड़ने का डिमांड है।
लोकसभा चुनाव में झारखंड में भी जदयू का प्रस्ताव दो लोकसभा सीट पर लड़ने का है। यहां एक समय भाजपा के साथ सरकार में रही है और इनके दल से कुछ मंत्री भी बने थे।
जेडीयू ने पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश में भी एक लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने का भी प्रस्ताव है।
मध्य प्रदेश और अरुणाचल में भी जदयू एक-एक लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ना चाहती है।
नई सरकार एनडीए की बनती है तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार रहेंगे।
आगामी विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा।