एक दर्द ऐसा भी
अरविंद सिंह
दो दिन पहले समाचार संकलन के लिए एमजीएम अस्पताल गया था। बेतरतीबी, बदहवासी और बदहाली का आलम देखकर मन पीड़ा से भर गया। हैवानियत और बद्द इंतजामी का मवाद वार्ड से लेकर बरामदे तक पसरा हुआ था।संड़ाध और घुटन के गलियारों से गुजरते हुए आपातकालीन कक्ष के पास पहुंचे ही थे कि एक बुढ़िया के जोर-जोर से कराहने की आवाज सुनकर ठिठकना पड़ा, पास जाकर पूछा तो पता चला कि बुढ़िया सड़क पार करते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गई है। थोड़ी देर बाद डाक्टर साहब आए और बुजुर्ग महिला से दुर्घटना के बारे पूछा “मां जी, आपको किसने ठोकर मारी?
बुढ़िया कराहते हुए तपाक से बोली,”डाक्टर साहब यह वोट का धक्का है, कोई अक्सीर दवा दीजिए जिससे तुरंत आराम मिल जाए।
डाक्टर बोला,मां जी यह वोट का दर्द है ये दवाई से नहीं,स्याही से ठीक होगा।
डाक्टर ने बुढ़िया के हाथ के नाखून में स्याही लगा दी और बोला, मां जी पूरा अस्पताल का पांच चक्कर लगा लीजिए, पूरा दर्द छूमंतर हो जाएगा।
बुढ़िया ने लाठी के सहारे चक्कर लगाना शुरू कर दिया, पांच चक्कर लगाने में सुबह से शाम हो गई, लेकिन बुढ़िया का दर्द कम नहीं हुआ,वह अभी भी कराह रही थी। मुझसे रहा नही गया लिहाजा मैं बुढ़िया के पास पहुंच कर ढांढस बंधाने का प्रयास करने लगा। ठीक दस मिनट बाद एक नर्स बुढ़िया के पास आई और बोली, मां जी अब कल आना?
बुढ़िया ने पूछा क्यों?
तब नर्स ने उसे बताया कि यह वोट का दर्द है इसका दर्द मरने के बाद ही जाएगा, इसका इलाज दवा नहीं सिर्फ चक्रानुक्रम में बने रहना है।
पूनम की रात है, नींद आने का नाम ही नहीं ले रही है।रात की जुल्फों का घनेरा बढ़ता ही जा रहा है। घर के आंगन में चक्कर लगाने का जी कर रहा है,
अजीब घनचक्कर है!