बुरका और घुंघट
जय प्रकाश राय
श्रीलंका में हुए हृदयविदारक आतंकी हमले के बाद वहां बुरका पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। दुनियां के कई देश हैं जहां बुरका पर प्रतिबंध है। भारत में भी शिवसेना ने बुरका पर प्रतिबंध लगाने का मांग केंद्र सरकार के कर डाली तो लगे हाथ भाजपा की भोपाल प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ने भी बुरका पर प्रतिबंध की मांग कर दी। हलांकि भाजपा ने इस मांग को यह कहते हुए सिरे से खारिज कर दिया कि यहां ऐसे हालात नहीं हैं। मोदी सरकार इसी घटनाओं से निपटने में सक्षम है। लेकिन राजनीतिक महकमे में इसे लेकर बवाल मचा हुआ है। हाल ही कन्हैया कुमार के चुनाव प्रचार के लिये पत्नी शबाना आजमी के साथ बेगुसराय में डेरा डालने वाले लेखक और गीतकार जावेद अख्तर ने कहा है कि अगर भारत में बुर्के पर प्रतिबंध लगता है तो केंद्र सरकार राजस्थान में मतदान से पहले घूंघट पर प्रतिबंध लगाए। जावेद अख्तर फिल्म से जुड़ी हस्ती हैं और उनके द्वारा लिखी स्क्रीप्ट काफी हिट भी होते रहे हैँ। जावेद अख्तर इतना भर यदि कह देते कि बुरका पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिये तो काफी था। बहुत लोग उनकी इस मांग के समर्थन में हैं। उन्होंने घुंघट को लेकर वयान क्यों दिया यह समझा जा सकता है। भारतीय जनता पार्टी को लेकर उनकी पीड़ा का ही यह असर है। लेकिन घुंघट की बात उन्होंने उठा दी है तो उनको यह बता देना जरुरी हो गया है कि भारतीय संस्कृति का इतिहास काफी समृद्ध और गौरवशाली रहा है। यहा ंकभी घुंघट की प्रथा थी ही नहीं। मुगलों के आगमन के बाद उनकी बुरी नजर बचने के लिये ही घुंघट की प्रथा की शुरुआत की गयी। यह अब काफी हद तक खत्म होती जा रही है। हिन्दू समाज ने कुरीतियों को खत्म करने की दिशा में कई कदम उठाये भी हैँ। सती प्रथा, बाल विवाह, बहुविवाह आदि को खत्म कर दिया गया है। जो कुरीतियां समाज के खासकर महिलाओं के हित में नहीं है उसमें समय के साथ साथ सुधार किया जाता रहा है। इस समाज की महिलाएं आततायियों से बचने के लिये जौहर तक हंसते हंसते करने को तैयार रहती थीँ। हाल की फिल्म पद्मावत में जौहर की खूब चर्चा हुई थी। हलांकि फिल्म के निदेशक ने कहा कि वे जौहर को महिमामंडित करने के उद्देश्य से फिल्माये बल्कि वह कहानी की मांग थी। हिन्दू समाज जो कुरीतियों को खत्म करने के लिये कई कदम उठाये गये हैँ। लेकिन जब नरेंद्र मोदी की सरकार तीन तलाक को लेकर कदम उठातीहै और महिलाओं की अस्मिता की रक्षा की बात करती है तो इसे धर्म के साथ जोड़ दिया जाता है। सभी मानते हैं कि यह महिलाओं के मानवाधिकार का सीधा हनन का मामला है। जावेद अख्तर जैसे लोग ऐसे मामलों में कोई वयान नहीं देते लेकिन बुरका को लेकर कूद पड़ते हैं। जबकि सत्ताधारी दल ने ऐसी मांग को सिरे से खारिज कर भी दिया है।
देश को ऐसे बुद्धिीजीवियों से सचेत रहने की जरुरत है जो किसी मानसिकता से प्रभावित होकर वयानबाजी करते हैं। सालों तक ऐसीा विचारधारा ही हावी रही देश में। अब इस विचारधारा को चुनौती मिलने लगी है तो ऐसे तत्व पीड़ा व्यक्त करने लगे है। नरेंद्र मोदी से बहुत को विरोध है, यह स्वाभाविक है, लेकिन जैसी मानसिकता से विरोध किया जा रहा है, उससे भी सतर्क रहने की जरुरत है। जावेद अख्तर डायलाग देने के चैंपियन है। शब्दों से हीखेलते रहे हैँ। लेकिन उनको समग्र कुरीतियों की चर्चा करें तो यह सभी के हित में होगा और लगेगा कि आप वायकी सुधार चाहते हैं। वरना आपको आज की ताकतों से किस कारण से पीड़ा है, इसकी धारणा भी बनती रहेगी। ऐसी ही ताकतों ने कभी कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्यातार की चर्चा नहीं की। उनके लिये यह बहस का कोई मुद्दा नहीं है। देखते देखते पूरी श्रीनगर पंडित विहीन हो गया। उनके लिये आवाज उठाने वाले दकियानूस बता दिये जाते हैं। लेकिन जो कथित बुद्धिीजीवी हैं, वे इसके बारे में कुछ भी बोलने से बचते हैं।
लेखक हिंदी दैनिक चमकता आइना के संपादक हैं