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    Home » लोकतंत्र पर बढ़ता अविश्वास चिंताजनक?
    Breaking News Headlines जमशेदपुर संपादकीय

    लोकतंत्र पर बढ़ता अविश्वास चिंताजनक?

    News DeskBy News DeskJune 9, 2025No Comments5 Mins Read
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    देवानंद सिंह
    भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता हमेशा से उसकी सबसे बड़ी ताक़त मानी जाती रही है। किंतु जब इस व्यवस्था पर सवाल उठाए जाएं, वह भी देश के प्रमुख विपक्षी नेता द्वारा, तो मामला केवल एक राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं रह जाता, बल्कि लोकतंत्र की नींव पर सीधा आघात बन जाता है। कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 को ‘मैच फिक्सिंग’ कहे जाने और उसके समर्थन में प्रस्तुत किए गए आंकड़ों और तर्कों ने भारत की चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता को लेकर एक बार फिर राष्ट्रव्यापी बहस छेड़ दी है।

    राहुल गांधी ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘लोकसत्ता’ समेत प्रमुख अख़बारों में लिखे अपने लेख में महाराष्ट्र चुनाव में धांधली के पांच चरणों का उल्लेख किया है। उनका पहला आरोप चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर है। उन्होंने चुनाव आयुक्त नियुक्ति अधिनियम, 2023 की आलोचना करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की बहुमत आधारित नियुक्ति प्रक्रिया में विपक्ष की आवाज़ को निष्प्रभावी कर दिया गया है। मुख्य न्यायाधीश की जगह एक कैबिनेट मंत्री को नियुक्त करना न केवल संतुलन के सिद्धांत के विरुद्ध है, बल्कि इससे आयोग की स्वायत्तता पर भी संदेह उत्पन्न होता है।

    दूसरा आरोप मतदाता सूची में फर्जीवाड़े को लेकर है। गांधी ने सवाल उठाया कि जब 2019 और 2024 के बीच मात्र 31 लाख नए मतदाता जुड़े, तो 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के बीच मात्र पांच महीनों में 41 लाख नए मतदाता कैसे जुड़ गए? इतना ही नहीं, उन्होंने इस ओर भी ध्यान दिलाया कि मतदान के दिन शाम 5 बजे तक 58.22% मतदान दर्ज हुआ, जो अगले दिन 66.05% घोषित किया गया, यानी लगभग 76 लाख मतदाताओं की रहस्यमयी वृद्धि। तीसरे और चौथे आरोप में उन्होंने कुछ विशेष निर्वाचन क्षेत्रों में अव्यवस्थित मतदान और आकस्मिक रूप से बीजेपी को मिले वोटों में अप्रत्याशित वृद्धि का उल्लेख किया। कामठी विधानसभा क्षेत्र का उदाहरण देते हुए राहुल गांधी ने बताया कि जहां लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 1.36 लाख और भाजपा को 1.19 लाख वोट मिले, वहीं विधानसभा चुनाव में भाजपा के वोट अचानक 1.75 लाख हो गए, जबकि मतदाता सूची में महज़ 35 हज़ार नए नाम जुड़े थे। ऐसे में, 56 हज़ार की वृद्धि संदेहजनक प्रतीत होती है।

    पांचवे आरोप में राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर विपक्ष के सवालों को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाया। उनका दावा है कि आयोग ने न फोटोयुक्त मतदाता सूची साझा की और न ही मतदान केंद्रों की वीडियोग्राफी या CCTV फुटेज उपलब्ध कराई। इतना ही नहीं, सरकार ने चुनाव आचार संहिता में संशोधन करके इन रिकॉर्ड्स के संग्रहण पर भी रोक लगा दी। राहुल गांधी के आरोपों के जवाब में चुनाव आयोग ने 24 दिसंबर 2024 को कांग्रेस को भेजे अपने स्पष्टीकरण का हवाला देते हुए इन सभी आरोपों को ‘निराधार’ और ‘भ्रामक’ करार दिया। आयोग ने कहा कि इस तरह के बयान न केवल लोकतांत्रिक संस्थानों के प्रति जनता के विश्वास को चोट पहुंचाते हैं, बल्कि लाखों चुनाव कर्मचारियों के परिश्रम का अपमान भी करते हैं।

    एक ओर जहां चुनाव आयोग ने अपने बचाव में तथ्यों की बात की है, वहीं दूसरी ओर राहुल गांधी द्वारा प्रस्तुत आंकड़े केवल चुनावी हार से उपजी हताशा नहीं, बल्कि चुनावी प्रक्रिया की मूलभूत निष्पक्षता पर उठाए गए सवाल हैं। यदि, चुनाव आयोग इन आंकड़ों को पूरी तरह खारिज करता है, तो उसे केवल बयान जारी कर चुप नहीं बैठना चाहिए, बल्कि जांच-पड़ताल कर जनता के सामने विस्तृत रिपोर्ट भी पेश करनी चाहिए।

    भाजपा ने राहुल गांधी के आरोपों को ‘जनादेश का अपमान’ करार देते हुए कहा कि कांग्रेस को आत्मविश्लेषण करना चाहिए। उन्होंने आंकड़ों के माध्यम से बताया कि लोकसभा में महाविकास आघाड़ी को 2.50 करोड़ वोट मिले, जबकि विधानसभा में वे 2.17 करोड़ पर सिमट गए, वहीं महायुति 3.17 करोड़ तक पहुंच गई। ऐसे में, भाजपा की नज़र में यह आरोप केवल पराजय से उपजे राजनीतिक भ्रम और हताशा का परिणाम हैं।
    भाजपा का यह तर्क अपने आप में वैध हो सकता है कि किसी भी लोकतंत्र में हार-जीत का अंतर केवल प्रचार-प्रसार या जमीनी मेहनत पर भी निर्भर करता है, लेकिन कामठी जैसे क्षेत्रों में आंकड़ों में भारी अंतर, राहुल गांधी की चिंता को पूरी तरह खारिज नहीं करता। राहुल गांधी के इस आक्रामक रुख को कांग्रेस के साथ-साथ अन्य विपक्षी दलों का समर्थन भी मिल रहा है। कांग्रेस के महाराष्ट्र अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने कहा कि धांधली मैच फिक्सिंग की तरह है। यह परिणाम जनता के भरोसे को समाप्त करता है। उनका तर्क है कि यदि विपक्ष चुनाव आयोग से सवाल पूछ रहा है तो जवाब बीजेपी क्यों दे रही है? यह टिप्पणी उस राजनीतिक-प्रशासनिक मिलीभगत की ओर संकेत करती है, जिसकी आशंका लगातार जताई जाती रही है।

    सपकाल का यह कथन कि वोट का कोई माता-पिता नहीं है, भले ही रूपक हो, किंतु एक गहरी विडंबना भी है। भारत जैसे लोकतंत्र में यदि वोट का स्रोत, उसकी प्रक्रिया और उसका परिणाम अस्पष्ट या संदेहास्पद लगे, तो यह लोकतंत्र की संपूर्ण वैधता पर प्रश्नचिह्न बन जाता है। कुल मिलाकर, राहुल गांधी द्वारा महाराष्ट्र चुनाव पर लगाए गए आरोप भारत के लोकतंत्र के लिए एक गहन आत्ममंथन का अवसर हैं। यदि, यह आरोप राजनीतिक हथियार हैं, तो इनका खंडन तथ्यात्मक और पारदर्शी होना चाहिए। और यदि इन आरोपों में सच्चाई का अंश है, तो यह भारत के लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।
    एक आदर्श लोकतंत्र की पहचान उसकी आलोचना सहने की शक्ति और आत्मसुधार की क्षमता में होती है। वर्तमान संदर्भ में न तो विपक्ष को केवल शोरगुल करने तक सीमित रहना चाहिए, न ही सत्तापक्ष और चुनाव आयोग को प्रतिक्रिया मात्र देकर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहिए। लोकतंत्र तब ही बचेगा, जब हर वोट की गिनती उतनी ही पारदर्शिता से हो, जितनी ईमानदारी से वह डाला गया हो। भारत जैसे देश में लोकतंत्र की ताक़त उसके संस्थानों की साख पर टिकी है, और जब उस साख पर संकट हो, तो केवल बहस नहीं, सुधार ज़रूरी है।

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