अब भी पाक नहीं संभला तो उसका सर्वनाश अवश्यंभावी
निशिकांत ठाकुर
राष्ट्र को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुलेआम पाकिस्तान को चेताया कि भारत अब परमाणु धमकी को नहीं सहेगा । युद्ध विराम के नियम के उल्लंघन का जो कृत्य पाकिस्तान ने किया है, वह अक्षम्य अंतर्राष्ट्रीय अपराध की ही श्रेणी में रखा जाएगा। वैसे युद्धविराम से अच्छा देशहित में कुछ भी नहीं हो सकता, लेकिन बार—बार इसके नियमों का उल्लंघन करना तो कोई पाकिस्तान से ही सीख सकता है। जो अपराध पाकिस्तानी चरमपंथियों ने किया है, उसका उचित जवाब हमारे जांबाज सेना ने अपने अदम्य साहस के दम पर उन्हें सबक सिखाकर दिया है। लेकिन, पाकिस्तान के राजनीतिज्ञों की सैनिकों के सामने चलती ही कहां है! यदि सरकार ने युद्ध विराम का ऐलान कर दिया था, तो उसकी बात को न मानना हमारे पड़ोसी देश के सैनिकों के लिए कोई नई बात नहीं है। वहां इसलिए सैनिकों ने सरकार का तख्ता पलटा है और तानाशाह सरकार बनकर राज करता रहा है। देश के राजनीतिक विश्लेषक अब यही मानते हैं कि सरकार ने युद्ध विराम का रास्ता चुनते हुए ऐलान कर दिया कि अब युद्ध नहीं होगा, लेकिन पाकिस्तानी सैनिकों को यह बात समझ में नहीं आई और वह युद्ध विराम के बाद भी लगातार हिंदुस्तान पर अपनी पूरी शक्ति से अब भी आक्रमण कर रहा है। अब युद्ध विराम किस त्रिपक्षीय हस्तक्षेप से किया गया है, यहां हम उसके भी कुछ कारण जो सामान्य भारतीय जनता तक पहुंच पाए हैं, उसे भी जानने का प्रयास करेंगे।
पाकिस्तानी कुश्चेष्टा का करारा जवाब देना तो भारत का धर्म बनता ही है, क्योंकि हमारे सैनिकों ने उनके ढेर सारे आतंकी संगठनों को मलबे में तब्दील कर दिया है। जिस तरह से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम देकर भारत ने पहलगाम में निरपराध पर्यटकों की सरेआम हत्या का आंशिक बदला तो लिया ही है, लेकिन इसे पर्याप्त नहीं माना जा सकता। पाकिस्तान समर्थित आतंकियों का अपराध अक्षम्य है, लेकिन फिलहाल जिस तरह से हमारे वायुसेना ने उसके नौ प्रमुख आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूत किया है, उसकी जितनी तारीफ की जाए, निश्चित रूप से कम होगी। भारत की ओर से कभी भी उसके आमलोगों पर हमला नहीं किया, लेकिन हां उन आतंकी ठिकाने को नष्ट जरूर किया, जहां उनकी ट्रेनिंग होती थी और जिन्हें आतंकी प्रशिक्षण केंद्र बना दिया गया था। लेकिन, पाकिस्तान अपनी गलतियों के लिए क्षमा मांगने के स्थान पर भारत से उलझने और युद्ध को ही हमेशा उचित माना, पर हर बार की तरह इस बार भी उसे हमारे जांबाज सैनिकों के बुलंद हौसलों के आगे पस्त होना पड़ा। भारत का उद्देश्य केवल यही था कि जो बार बार किसी न किसी तरह से हमारी सीमा में घुसपैठ करके निर्दोष लोगों को मार रहा है, उसे मिट्टी में मिलाने की जरूरत है। सरकार का साथ बिना शर्त के देश की एक एक नागरिक ने दिया और उनके समर्थन में खुलकर हर कदम पर साथ देने का फैसला किया। सरकार ने भी अपनी जनता के लिए पूरी तरह सतर्क होकर उन आतंकी संगठनों का नष्ट कर दिया, जो बार बार घुसपैठ करके हमारी सीमा पर निर्दोषों की हत्या करता आ रहा था। अबतक वे हत्यारे पकड़े गए या फिर मार दिए गए, इसकी कोई जानकारी मीडिया को नहीं दी गई है। ऐसे में यह कहना अभी उचित नहीं होगा कि उन हत्यारों को कब तक ढेर किया जाएगा।
विवाद तो यही है उस स्लीपर सेल को, जिनके सिग्नल के आधार पर पाकिस्तानी आतंकी पहलगाम में घुसे और अपने परिवार के साथ उस सुंदर छवि को निहारने आए निहत्थे लोगों को असमय काल के गाल में भेज दिया, वे कौन हैं? इसका पता लगाना और उसकी जड़ को स्थायी रूप से नष्ट करना ही हमारा उद्देश्य था। उनमें से कुछ गद्दार तो मार ही दिए गए, लेकिन जो पाकिस्तान से यहां आकर हत्या को अंजाम दे गए, वे अब किस बिल में छिपे हैं। भारतीय सैनिकों का कभी उद्देश्य यह नहीं रहा कि सामान्य जनता पर हमला किया जाए, लेकिन इतना उद्देश्य तो था ही कि उनके आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूत कर दिया जाए। भारतीय वायुसेना ने अपने अदम्य साहस दिखाते हुए उन आतंकी ठिकानों को चुनचुनकर ध्वस्त किया, जहां से प्रशिक्षण पाकर भारत जैसे शांतिप्रिय गांधीवादी देश में दर्जनों जान ले लेते हैं। स्वाभाविक है कि, जिन आतंकी संगठनों को वहां की सरकार और सैनिक पालते थे, उन ठिकाने को यदि नष्ट कर दिया जाएगा, तो वह बौखलाएगा। उसी बौखलाहट का परिणाम हुआ कि एकतरफा चाहे वहां के नेता हों, चाहे सैन्य अधिकारी, सब भारत के प्रति विश्व में घूम घूमकर विष वमन करने लगे। परिणाम क्या हुआ? आज भारत ने सभी देशों को धता बताकर उसकी हेकड़ी निकाल दी। शायद उससे कुछ सीख पाकिस्तान को मिले, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और उसने सीमा पार से अपना ड्रोन फेंककर भारत को नुकसान पहुंचाने में लगा रहा। सच तो यह है कि उसकी पीठ पर चीन का हाथ है। इसका कारण यह है कि चीन उसके अंदर तक घुसा है और अपना हथियारों के साथ साथ चीनी उत्पाद बेचता रहा है। वह एक व्यावसायिक देश है, जिसे हर चीज में केवल अपना हानि—लाभ ही दिखाई देता है।
पिछले दिनों की कार्यवाही के बाद भारतीय सेना की मिसाइलों की जद में जिस तरह पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने आ गए हैं, उससे पड़ोसी देश की चिंता कहीं और बढ़ गई है। बताया जाता है कि पाकिस्तान का परमाणु ठिकाना राजधानी इस्लामाबाद से कुछ किलोमीटर दूर रावलपिंडी के करीब है। रावलपिंडी के चकनाला में नूर खान एयरबेस है। पिछले दिनों 10 मई की सुबह एयरबेस पर हमला किया गया। जिसके लिए कहा यह जा रहा है कि यह हमला ब्रह्मोस मिसाइल के द्वारा किया गया जिसने नूर खान एयरबेस को तहस नहस कर दिया और एयरबेस पर भारी तबाही मच गई। इस अप्रत्याशित हमले के कारण पाकिस्तानी सैनिकों और सरकार में खलबली मची है। नूर खान एयरबेस के नुकसान के बाद पाकिस्तानी राजनीतिज्ञों को और सैनिकों की समझ में यह बात आ गई है कि अब जिस परमाणु हथियार के बल पर वह अपना सीना ठोक रहा था, उस पर कभी भी हमला करके उन्हें नष्ट किया जा सकता है। अब पहली बार पाकिस्तान को यह एहसास हो गया है कि भारतीय सैन्य शक्ति के सामने उसकी एक नहीं चलने वाली है और उसकी सारी हेकड़ी निकलने वाली है। सच तो यह है कि भारत कभी इस पक्ष में नहीं रहा कि वह किसी भी तरह अपनी तरफ से युद्ध को अंजाम दे, लेकिन कायर पाकिस्तान भारत की शान्तिप्रियता को उसकी कमजोरी माना। याद कीजिए जिस दिन से उसके आतंकियों ने पहलगाम में निर्दोषों को मारा, उसके बाद वह भारत को धमकाने के लिए क्या कुछ नहीं कहा, लेकिन जब भारत से उसका आमना सामना हुआ, तब उसकी समझ में भारतीय सैन्य शक्ति समझ में आ गई।
अब भारत में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि भारत पाकिस्तान में युद्ध विराम की मध्यस्थता क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप करेंगे? इसलिए सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने सरकार से मांग की है कि सर्वदलीय बैठक फिर से बुलाई जाए और उस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भागीदारी जरूर हो, क्योंकि पिछली सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री उपस्थित नहीं थे। साथ ही कांग्रेस ने कहा है कि इस स्थिति में कांग्रेस बिना शर्त के सरकार के साथ है और इसके लिए संसद सत्र बुलाया जाए। इसी बीच भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को दो टूक जवाब देते हुए कहा है कि वह, भारत—पाकिस्तान के मामले में युद्ध विराम का श्रेय न ले। इसी तरह डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि ‘उन्हें भारत और पाकिस्तान के मजबूत नेतृत्व पर गर्व है जिसमें इस बात को समझने की पर्याप्त बुद्धिमत्ता है, ताकत और दूरदर्शिता है कि मौजूदा आक्रामकता को समाप्त करने का यह सही समय है, नहीं तो इससे ज्यादा विध्वंस और मौतें होतीं।’ डोनाल्ड ट्रंप या किसी देश के राष्ट्राध्यक्ष ने युद्ध को रोकने की अपील की है, तो उसका निर्णय सही हो या गलत, उसे मान लिया जाए, लेकिन यदि कोई सुझाव दे, तो भारत उसे उसी परिप्रेक्ष्य में देखे। भारत कभी भी युद्ध नहीं चाहता, पर उसे युद्ध करने के लिए बार—बार बाध्य किया जाता रहा है, लेकिन इस बार पाकिस्तान को भारतीय सैन्य शक्ति और एकता दिखाते हुए जो सबक सिखाया, उसे आसानी से वह भूलेगा नहीं और भारतीय सीमा में उसके आतंकी घुसने से पहले सौ बार सोचेंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं)