मन में झूठ फ़रेब
सत्यवान ‘सौरभ’
कैसी ये सरकार है, कैसा है कानून ।
करता नित ही झूठ है, सच्चाई का खून ।।
मानवता बुझ-सी गई, बढ़ी घृणा की आँच ।
वक्त झूठ का चल रहा, सहमा-सहमा साँच ।।
बुनकर झूठ फरेब के, भला बिछे हो जाल ।
सच्ची जिसकी साधना, होय न बांका बाल ।।
सच्चे पावन प्यार से, महके मन के खेत ।
दगा झूठ अभिमान से, हो जाते सब रेत ।।
आखिर मंजिल से मिले, कठिन साँच की राह ।
ज्यादा पल टिकती नहीं, झूठ गढ़ी अफवाह ।।
सच कहते ही हो रहा, आना-जाना बंद ।
तभी लोग हैं कर रहे, ज्यादा झूठ पसंद ।।
सिसक रही हैं चिट्ठियां, छुप-छुपकर साहेब ।
जब से चैटिंग ने भरा, मन में झूठ फ़रेब ।।
सच से आंखें मूंद ली, करता झूठ बखान ।
गिने गैर की खामियां, दिया न खुद पर ध्यान ।।
(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से।
सच बैठा है मौन
आखिर सच ही गूँजता, खोले सबकी पोल ।
झूठे मुँह से पीट ले, कोई कितने ढोल ।।
जिसने सच को त्यागकर, पाला झूठ हराम ।
वो रिश्तों की फसल को, कर बैठा नीलाम ।।
वक्त कराये है सदा, सब रिश्तों का बोध ।
पर्दा उठता झूठ का, होता सच पर शोध ।।
रिश्तों के सच जानकर, सब संशय हैं शांत ।
खुद से खुद की बात से, मिला आज एकांत ।।
एक बार ही झूठ के, चलते तीर अचूक ।
आखिर सच ही जीतता, बिन गोली, बन्दूक ।।
झूठों के दरबार में, सच बैठा है मौन ।
घेरे घोर उदासियाँ, सुनता उसकी कौन ।।
चूस रहे मजलूम को, मिलकर पुलिस-वकील ।
हाकिम भी सुनते नहीं, सच की सही अपील ।।
(सत्यवान ‘सौरभ’ के चर्चित दोहा संग्रह ‘तितली है खामोश’ से। )