राष्ट्रीय राजनीति में उपेक्षित है ब्रह्मर्षि आत्ममंथन की जरूरत
देवानंद सिंह
जिस समाज में परशुराम का पौरुष,सहजानंद का संस्कार, दिनकर की हुंकार,और वीर बरमेश्वर की ललकार हो उसी ब्रह्मर्षि को आज राजनीति में राजनीतिक दलों द्वारा उपेक्षा का शिकार होना पर रहा है।आजादी की लड़ाई हो या आजाद भारत की राजनीतिक विरासत,हमेशा अपनी योग्यता एवं कार्यकुशलता के बदौलत अग्रणी पंक्ति में रहने वाला ब्रह्मर्षि समाज आज २०१९ के चुनावी दंगल में एक-एक प्रत्याशी के लिए तरस रहा है,क्या अब भी यह समाज हाथ पे हाथ रखकर किंकर्तव्यविमूढ़ होकर अपना उपहास मंजूर करेगा या अपनी आज की परिस्थिति पर चिंतन मनन कर आगे की दिशा तय करेगा।
सोचनीय विषय यह है कि कभी एकीकृत बिहार में कांग्रेस श्रीकृष्ण सिंह,एल पी शाही,राजो सिंह,रघुनाथ पांडे का दौर और वर्चस्व देखा तो भाजपा कैलाशपति मिश्र का पर ,आज क्या हो रहा है?राजद की नेत्री श्रीमती अन्नपूर्णा देवी के लिए भाजपा झारखंड के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सह सांसद डा.रवींद्र राय का टिकट काट दिया जाता है।कमोबेश यह स्थिति क्षेत्रीय या राष्ट्रीय स्तर पर सभी दलों में है।
दोषी कौन इस विषय पर चिंतन करने से हम समाधान नहीं ढूँढ पायेंगे,परंतु इतना तो कह ही सकते हैं कि नेता बनते ही हमारे नेतागण समाज को ही भूलने में व्यस्त हो जाते हैं अपने अपने निजी स्वार्थपूर्ति हेतु एक दूसरे की टाँग खींचने लगते हैं उनके मन मस्तिष्क से समाज के लोगों को राजनीति सहित किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ाने या स्थापित करने का ख्याल बोझिल हो जाता है और वे सेकुलर हो जाते हैं।
अब हमें समय रहते क्या करना है मंथन इस पर होना चाहिए ताकि हम अपने अपमान का बदला ले सकें।नेताओं की मजबूरी हो सकती है जमशेदपुर की बात करें तो कांग्रेस से अशोक चौधरी, जेवीएम से बबुआ सिंह, जटाशंकर पांडेय, झामुमो से के एन ठाकुर भाजपा से मनमोहन चौधरी, रामनारायण शर्मा, अनिल सिंह, शलेन्द्र सिंह सतीश सिंह, राकेश कुमार दीपू सिंह ,निशांत आदि बड़े कद के नेता बिभिन्न दलों में हैं क्या कद के अनुरूप उन्हें पद मिला है? सभी राजनीतिक दलों ने वोट बैंक के लिए लॉलीपॉप दिया है इन्हें भी समाज की जरूरत है और समाज को भी इनकी .दोनों एक दूसरे के पूरक हैं सामंजस्य अगर बैठा रहता तो आज ये दुर्दशा नहीं होता और जो समाज के भाई राजनीति में हैं उन्हें भी अहम छोड़कर सैकेंड लाइन तैयार करने की जरूरत है
वही समाज के संस्थापक अध्यक्ष स्वर्गीय के के सिंह की सोच से प्रेरणा लेते हुए वर्तमान अध्यक्ष व कमेटी को भी इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है
मंच की स्थापना ही ब्रह्मर्षि समाज को सशक्त और मजबूत बनाने के उद्देश्य से हुआ था
समाज के लिए बने सामाजिक संगठनों को आगे आकर अपनी अहम् भूमिका निभानी चाहिए और राजनीति के क्षेत्र में कार्य कर रहे नेता हो या कार्यकर्ता समाज के लोगों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर साथ देना चाहिए तभी समाज का मानसम्मान बरकरार रह पाएगा .
राष्ट्रीय राजनीति में उपेक्षित है ब्रह्मर्षि आत्ममंथन की जरूरत
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