पहले दो चरणों में सुस्त वोटिंग के बाद राजनीतिक दल चिंता में हैं कि क्या आगे भी यह ट्रेंड जारी रहेगा। दूसरे चरण में भी 2014 के मुकाबले वोटिंग कम हुई।
क्या पहले दो चरणों में वोटिंग प्रतिशत गिरने का जो ट्रेंड दिखा है वह अगले चरणों में भी जारी रहेगा? पहले दो चरणों में हुई सुस्त वोटिंग के बाद अब राजनीतिक दलों को सबसे बड़ी चिंता इसी सवाल से है। 11 अप्रैल के बाद 18 अप्रैल को समाप्त हुए दूसरे चरण की 95 सीटों पर भी 2014 के मुकाबले कम वोटिंग हुई। हालांकि अब भी ओवरऑल आंकड़ा 2014 की वोटिंग से थोड़ा अधिक दिख रहा है लेकिन उन सीटों पर 2014 में हुए वोटिंग से मिलान करें तो अधिकतर राज्यों में वोटिंग में गिरावट का साफ ट्रेंड है। अब तक दो चरणों में हुए 186 लोकसभा सीटों पर लगभग 68.63 प्रतिशत वोटिंग दर्ज की गई है। अगला चरण 23 अप्रैल को है, जिसमें 116 लोकसभा सीटों पर वोट डाले जाएंगे। इसके साथ ही पूरे देश में आधे से अधिक सीटों पर चुनाव समाप्त हो जाएगा। 2014 के आम चुनाव में कुल 66.44 फीसदी वोटिंग हुई थी जबकि 11 अप्रैल को हुए पहले चरण के चुनाव में 69.43 फीसदी वोट पड़े थे। हालांकि कुल वोटिंग के मुकाबले यह अधिक है लेकिन गुरुवार को 91 सीटों पर हुए चुनाव की बात करें तो इनमें से 53 सीटों पर 2014 के मुकाबले कम वोटिंग हुई है।
सभी उलझन की स्थिति में
पहले राउंड की तरह दूसरे राउंड में भी वोटिंग कम होने के बाद सभी दल अपना बूथ मैनेजमेंट बनाने में व्यस्त हो गए। अब तक आए आंकड़े के अनुसार शहरी क्षेत्रों में वोटिंग कम हुई। खासकर बेंगलुरु और तमिलनाडु के शहरों में। एक राजनीतिक दल के सीनियर नेता ने कहा कि बुधवार को महावीर जयंती और शुक्रवार को गुड फ्राइडे की छुट्टी के कारण लंबा वीकेंड हो गया था जिस कारण शहरी क्षेत्रों में लोग कहीं बाहर चले गए। हालांकि अभी दल तय कर पा रहे हैं कि किसका वोटर कम निकला।
बीजेपी का तर्क है कि उसके वोटर बेहद उत्साह से निकल रहे हैं तो विपक्षी दलों का भी ऐसा ही दावा है। इन दावों के बीच इनकी चिंताएं भी हैं। सामान्यतया बहुत अधिक वोटिंग होने से ऐसा संदेश जाता है कि यह परिवर्तन के लिए उमड़ी भीड़ है जबकि उदासीन वोट से संदेश जाता है कि वोटरों में इसके प्रति उत्साह नहीं जिसे सत्ता पक्ष अपने लिए उम्मीद के रूप में देखता है। हालांकि यह मिथ भी हाल के दौरान कई चुनावों के दौरान टूटा है।
विशेषज्ञ की राय अलग
वोटिंग कम होने या लगभग 2014 के बराबर होने पर भले राजनीतिक दलों में चिंता हो लेकिन विशेषज्ञ इसमें कोई बड़ी बात नहीं देखते हैं। चुनाव विश्लेषक यशवंत देशमुख के अनुसार 2014 लहर का चुनाव था और लहर चुनाव में अधिक वोटिंग होती है। अगर इस बार भी उसी अनुरूप में वोटिंग हो रही तो इसे सामान्य से बेहतर ही माना जाएगा। उन्होंने कहा कि बेस वोट भी 2014 के मुकाबले दस फीसदी तक बढ़ा है जिससे वोटर की संख्या कम संख्या में भी अधिक ही आएगी। उन्होंने कहा कि बाकी राज्य नहीं पर ओडिशा में कम वोटिंग का ट्रेंड साफ दिखता है जिसका परिणाम पर असर का आकलन करना होगा।
दूसरे चरण में जिन सीटों पर चुनाव हुए वहां 2014 के मुकाबले
– ओडिशा में 14 फीसदी वोटिंग कम हुई
– महाराष्ट्र में लगभग 2 फीसदी वोटिंग कम हुई
– बिहार और उत्तर प्रदेश में लगभग एक समान हुई। बेहद मामूली बढ़त दर्ज की गई
– पश्चिम बंगाल में 5 फीसदी से अधिक तो असम में 2 फीसदी से अधिक वोटिंग कम दर्ज की गई
– छत्तीसगढ़ में डेढ फीसदी तो कर्नाटक में आधा फीसदी वोटिंग कम दर्ज की गई