सशक्त महिला रचनाकारों के आत्मविश्वास की पहचान है पुस्तक “आरोहण” भाग दो
*पुस्तक समीक्षा – वरिष्ठ साहित्यकार पद्मा मिश्रा जी के द्वारा*
अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत झारखंड प्रांत के महिला आयाम द्वारा प्रकाशित, और संपादित, महिला सशक्तिकरण और उसके अधिकारों के प्रति समर्पित महत्वपूर्ण पुस्तक आरोहण आज एक चर्चित नाम बन गया है।यह संस्था महिलाओं के मानसिक और बौद्धिक विकास के प्रति सजग तो करती ही है बल्कि उनके ग्राहकीय मेधा और अधिकारों के लिए उन्हें सचेत करती है।इसी संस्था के बैनर तले प्रकाशित “आरोहण” महिला सशक्तिकरण और उनकी सफलता की कहानी बयान करने वाली एक अनूठी कृति है ,जहाँ अपने- अपने संघर्ष के दायरों से निकल कर शून्य से शिखर को छू लेने वाली 28 सृजनकर्ता नारियों ने जब कलम थामी तो समय के पटल पर एक इतिहास लिख दिया। इन सबों ने अपना आसमान खुद गढा है।
” उडना चाहती हैं ,
हम छूना चाहती हैं ,
उस अछूते आसमान को.
गढना है हमें शब्द – शब्द जीवन का,
आंचल में हास्य,रुदन ममता संभाल कर।
लो चुनौती दे रही हैं हम,
कलम को थामकर ।”
तुलसी भवन के प्रयाग कक्ष में दिनांक 8 दिसंबर को इस पुस्तक का लोकार्पण कर
एक इतिहास रचा गया और एक युग ने करवट बदली । इस पुस्तक का लोकार्पण वरेण्य एंजिल उपाध्याय, डाॅ सरित किशोरी श्रीवास्तव, वरिष्ठ रंगकर्मी कृष्णा सिन्हा तथा वरिष्ठ साहित्यकार पद्मा मिश्रा द्वारा किया गया। पुस्तक के प्रारंभ में स्मृतिशेष छाया कुमारी को श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया है कवयित्री सरिता सिंह के लिखे उद्गार से ।
छाया कुमारी एक लोकप्रिय,भावप्रवण लेखिका थीं जो गंभीर बीमारी का शिकार हो हमारे बीच नहीं रहीं।
इन महिलाओं ने अपने दर्द, पीड़ा, सुख दुःख की लड़ाई को जीतकर समाज को चुनौती दी है कि एक प्रेरणा, संबल ,संकल्प और भरोसे के साथ हम स्त्रियां क्या नहीं कर सकतीं हैं ।
ये सृजन कर्ता रचनाकार महिलायें जीवन के विविध क्षेत्रों से निकल कर आज साहित्य और समाज को प्रगति, आत्मविश्वास और सुदृढ इरादों का संदेश दे रही हैं। कोई शिक्षाविद हैं , कोई समाजसेवा से जुडा है ,कोई रंगकर्मी तो किसी ने घर गृहस्थी के कठिन दायित्व को संभालते हुए भी लेखनी का साथ नहीं छोडा।आज तक जहां समाज में हमें अपनी पीड़ा ,घुटन, आकांक्षाओं को दबाये रखने ,किसी से व्यक्त न करने की सीख दी जाती है,वहीं वर्जनाओं के विशाल भंवर से बाहर निकल कर अपनी बात कहने का एक अवसर दिया है इस कृति ने।जब एक बेटी जन्म लेती है तो कुछ अपवादों को छोड़कर आज भी उनका उत्साह के साथ स्वागत नहीं किया जाता। फिर उसके नन्हें कदम ममता की छाँव तले ऊबड़ – खाबड़ रास्ते पर चलते हुए कदम दर कदम जीवन के हर पड़ाव को पार करते हुए अपने शिखर तक पहुंच ही जाते हैं। वे अपना आकाश खुद गढती हैं। यही आरोहण है जीवन का,मन का,सृजन का।शून्य से शिखर तक सृजन का । यह आरोहण सबके मन की व्यथा कथा है।
इस पुस्तक में नारी जीवन से जुड़े अनेक संघर्षो, आशाओं ,सपनों के पूरे होने की बात कही गई है। प्राचीन काल से विदुषी भारती,विद्योतमा,गार्गी,आदि नारियों से अब तक महादेवी वर्मा, मन्नू भंडारी, शिवानी,मृदुला सिन्हा,चित्रा
मुद्गल, सुषमा मुनींद्र जैसी लेखिकाओं ने जब कलम थामी तो साहित्य गौरवान्वित हुआ। *आरोहण* पुस्तक की अट्ठाइस
लेखिकाएं भी साहित्यिक परिवेश और सामाजिक सरोकारों से जुड़कर लेखन की दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रही हैं।जब शिक्षा देने वाली,समाज कार्य से जुड़ी, कानून और अभिनय की दुनिया में स्वयं को सिद्ध करने वाली ,घर आँगन, रसोई चलाने वाली गृहिणियों के हाथों में लेखनी आ जाती है तो उसका जादू देखते ही बनता है।
सचमुच नारी मन एक पहेली भी है और समझौता भी। उसके सहज – सरल मन में संघर्षों के ,मानसिक, सामाजिक वर्जनाओं के विषबीज भी तो समाज ने ही बोये हैं।वरिष्ठ महिला लेखिकाओं ने अपने जीवन, अनुभव और संघर्ष के आधार पर जो कुछ भी लिखा , वह प्रेरणादायक है ।डाॅ सरित किशोरी श्रीवास्तव, आनंद बाला शर्मा, छाया प्रसाद, विजयलक्ष्मी वेदुला , पूनम सिन्हा,पद्मा मिश्रा,रेणुबाला मिश्रा,सुधा गोयल आदि ने कलम को अपनी ताकत बनाकर स्त्री के सृजन को प्रतिष्ठा दिलाई, वहीं वरिष्ठ रंगकर्मी अनिता सिंह, जोबा मुर्मू ,अर्पित सुमन टोप्पो ,जयश्री शिवकुमार ने जीवन के हर एक पल को ,एक अविस्मरणीय घटना को ही अपने सृजन का माध्यम मानकर अपनी लेखनी को पहचान दिलाई और आज वो सफल हैं। अन्य उल्लेखनीय नामों में पुष्पजलि मिश्रा,रजनी सिंह, रुबी लाल,पूनम सिंह,सविता सिंह मीरा,रीना पारितोष,चंदा कुमारी ,नीलम पेडीवाल जैसी लेखिकाएं समय और परिस्थितियों की हर बाधा को पार कर आगे आयीं और एक सशक्त पहचान बनाई।
वहीं डा मीनाक्षी कर्ण ,शिप्रा सैनी,सुदीप्ता जेठी,सुस्मिता मिश्रा, अनामिका मिश्रा ,पूनम शर्मा,लक्ष्मी सिंह ने अपने मौलिक सृजन से अपनी अस्मिता और अस्तित्व की राह को खुद संवारा और स्वयं को सिद्ध किया।
इन सतत् सृजनशील रचनाकार महिलाओं के लिए न उम्र बाधा बनी,न शिक्षा और न परिवार की विपरीत परिस्थितियाँ। सब पर विजय पाई इन्होनें और शब्दों, संवेदनशील भावनाओं का सुंदर इंद्रधनुष बना साहित्य के आकाश को सुशोभित किया है। एक बात समान रुप से इस कृति को सशक्त और प्रेरक बनाती है कि हर लेखिका को प्रेरणा भी एक सशक्त महिला से ही मिली जो उनकी मां,शिक्षिका या कोई महान लेखिका ही थी ।स्वयं अपनी बेटी के हक,शिक्षा के लिए जिन्होंने आवाज उठाई। वो एक अनमोल, महत्वपूर्ण क्षण ही था जब किसी की प्रेरणा और मार्गदर्शन ने उन्हे सृजन की ओर प्रेरित किया।
पुस्तक का सबसे चर्चित व उल्लेखनीय अंश है इसका संपादकीय। डाॅ अनीता शर्मा व डाॅ कल्याणी कबीर ने बहुत ही सुंदर एवं सारगर्भित संपादकीय लिखा है,जब वे कहती हैं-,जैसा कि संपादकीय की पंक्तियो में अभिव्यक्त है —
” तन के भूगोल से परे,
एक स्त्री के मन की गांठें खोलकर,
कभी पढा है तुमने?
उसके भीतर का खौलता इतिहास। ”
देश की प्रतिष्ठित सशक्त महिला अहिल्याबाई होल्कर की पंक्तियां प्रेरित करती हैं–*ज्ञान ही शक्ति है और ज्ञान का प्रसार ही समाज को प्रगति की ओर ले जा सकता है। दोनों संपादिकाओं का मानना है कि समय के दस्तावेज पर एक सशक्त हस्ताक्षर है आज की ये स्त्री लेखिकाएं। शिक्षा विवेकशील बनाती है और विवेकशीलता ही समाज हित के लिए सृजन की ओर प्रेरित करती है।
मैं इस बात से शतप्रतिशत सहमत हूं।
वरिष्ठ विद्वतजनों की शुभ कामनाएं भी इस पुस्तक को एक अनूठी उल्लेखनीय कृति के रूप में गौरवान्वित करती हैं। केंद्रीय संगठन मंत्री श्री दिनकर सबनीस जी ने साहित्यकार को समाज से जोड़ने वाली कड़ी कहा है तो केंद्रीय महिला आयाम प्रमुख आशा सिंह का कहना है कि “नारी हृदय भावनाओं का भंडार है”।शिवाजी क्रांति , एंजेल उपाध्याय की लिखी शुभकामनाओं ने संस्था के वरीय पद को सुशोभित करते हुए पुस्तक के उद्देश्य और उसकी मौलिक भावनाओं को गति प्रदान कर महिला सशक्तिकरण को सम्मानित किया है।सबसे प्रभावित करती है डायन प्रथा के विरोध में अपनी आवाज मुखर करने वाली और एक लंबी लडाई लड़ने वाली पद्मश्री छुटनी महतो की शुभ कामनाएं, जो अभिभूत करती हैं।
प्रतीक्षित कृति आरोहण का लोकार्पण हुआ, यह बहुत बडी उपलब्धि है हमारे लिए।
मैं भी इस समारोह का हिस्सा बनी,मंचस्थ अतिथि के रुप में।अशेष बधाई संपादक द्वय प्रिय कल्याणी कबीर एवं अनीता शर्मा जी तथा ग्राहक पंचायत की पूरी टीम को । यह साहित्यिक यात्रा चलती रहे।
पद्मा मिश्रा , वरिष्ठ साहित्यकार
जमशेदपुर