पत्रकारिता को प्रोफेशन नहीं बल्कि मिशन मानता है राष्ट्र संवाद: डॉ कल्याणी कबीर शिक्षाविद और साहित्यकार
डॉ कल्याणी कबीर शिक्षाविद और साहित्यकार
आज के दौर में यह कहना गलत नहीं होगा कि व्यावसायिकता और टीआरपी की अंधी दौड़ के कारण पत्रकारिता जिस नैतिक मूल्य पर टिकी है वह कहीं ना कहीं कमजोर हुई है । पर इस कठिन दौर में भी अगर किसी ने पत्रकारिता के मूल्यों के साथ कोई समझौता नहीं किया है तो वह नाम है राष्ट्र संवाद का । आज 25 वर्षों की सफल यात्रा के पश्चात भी पूरी तरह उर्जस्वित ,दूरदृष्टि रखते हुए यह पत्रिका अपने मापदंडों और मानदंडों को साथ लिये आगे बढ़ रही है । बीते हुए कल के इतिहास का तटस्थ आकलन ,
गुजर रहे वर्तमान पर निष्पक्ष दृष्टि और आने वाले भविष्य पर एक सटीक अनुमान करने की अद्भुत क्षमता रही है इस पत्रिका के पास। राष्ट्र संवाद के लिए खबरें सिर्फ शब्दों का ताना-बाना नहीं होती हैं बल्कि कहीं ना कहीं जनता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और अपने कर्तव्य बोध को समझते हुए ही वह समाचारों और जानकारियों का प्रसारण – प्रकाशन करती है ।
जनता को निष्पक्ष खबरें देना, उनके जनमानस का विकास करना और समाज को जागरुक कर शिक्षित बनाए रखना यह राष्ट्र संवाद का हमेशा से मूल कर्तव्य रहा है । सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक चुनौतियों के बाद भी इस पत्रिका ने कभी भी पत्रकारिता को प्रोफेशन के रूप में नहीं लिया बल्कि आरंभिक दिनों से ही उसने इसे एक मिशन की तरह निभाया है। यह कहना कहीं से गलत नहीं होगा कि पत्र – पत्रिकाएं समाज की आंखें होती हैं ।
हम सभी इसी के माध्यम से अपने आसपास की स्थिति – परिस्थिति और
देश- दुनिया को देखते- समझते हैं। ऐसे में पत्रकारिता के दायित्व बढ़ जाते हैं। राष्ट्र निर्माण का चौथा स्तंभ होने के नाते राष्ट्र संवाद ने भी सदैव सत्य की आवाज बनते हुए गलत समझौते नहीं किए । कठिनाइयां आती रहीं पर इस पत्रिका की लेखनी की जो भागीरथी प्रवाह है और सामर्थ्य है वह दिन प्रतिदिन मजबूत ही होती रही।
विभिन्न आलेख और रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का अंकुरण करना सदैव इस पत्रिका की प्राथमिकताओं में शामिल रहा । एक रचनाशील सोच और सकारात्मकता हमेशा से इसके पन्नों पर नजर आई। इस पत्रिका से जुड़े हुए सभी लोग जो टीम के सक्रिय सदस्य रहें उन्होंने भी अपने कार्य को पूरी जिम्मेदारी के साथ निभाया है । राष्ट्र संवाद समूह के शीर्ष नेतृत्व की कर्मठता और ईमानदार सोच का अनुसरण इसकी टीम के हर सदस्य ने किया है ।
आज के दौर में पत्रकारिता के बीच भी प्रतिद्वंद्विता हावी है पर यह भी सच है कि “जिस दिए में जान होगी वह दिया रह जाएगा” – ठीक उसी तरह राष्ट्र संवाद ने गलाकाट प्रतियोगिता के दौर में भी अपने मूल्यों के साथ समझौता नहीं किया है और इसलिए आज भी पूरे दम खम के साथ अपनी जगह बनाए रखने में सफल हुआ है । इसके पीछे का कारण यह है कि इसने सामाजिक सरोकारों और सार्वजनिक हित से जुड़ी हुई बातें ही की और कभी भी सामाजिक हित को गौण रखकर व्यक्तिगत हित के लिए कलम नहीं पकड़ा।
राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियां और परिस्थितियां करवट बदलते रहती हैं पर इस बदलाव की संस्कृति में भी अपनी जीवंतता दिखाते हुए अपने खबरों के माध्यम से तथ्यों को उजागर करने का जो जज्बा राष्ट्र संवाद ने दिखाया है वही उसकी असली पहचान है। यह सशक्त पहचान बनी रहे ,यही शुभेच्छा है।
डॉ कल्याणी कबीर
शिक्षाविद और साहित्यकार