विकास योजनाओं के बीच पीएम ने दिया नया सियासी संदेश
देवानंद सिंह
झारखंड के चहुंमुखी विकास में 12 जुलाई ऐतिहासिक दिन बन गया। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 16,835 करोड़ की सौगात देवघर, संताल परगना समेत पूरे झारखंड को सौंप दिया। उन्होंने राज्य में एयर, रेल, रोड कनेक्टिविटी, स्वास्थ्य, स्वच्छ ईंधन सहित 25 विकास परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास किया। इसमें 6,565 करोड़ की 12 योजनाओं का शिलान्यास किया गया, जबकि 10,270 करोड़ की 13 योजनाओं का शुभारंभ किया गया। एक 250 बेड का एम्स आइपीडी और देश-दुनियां को हवाई सेवा से जोड़ने के लिए 401 करोड़ का एयरपोर्ट जनता के नाम किया गया।
इस सब परियोजनाओं के चलते प्रधानमंत्री के देवघर आगमन के महत्व को तो इन आंकड़ों से समझा ही जा सकता है, लेकिन इन योजनाओं के शिलान्यास और शुभारंभ के बीच जो सियासी संदेश उभरा है, वह और भी महत्वपूर्ण है। यानि राजनीतिक रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के देवघर दौरे के कई राजनीतिक मायने हैं। पीएम के इस कार्यक्रम को लेकर जहां पूरे संताल परगना प्रमंडल में भाजपा कार्यकर्त्ताओं में एक नया जोश नजर आया, बल्कि
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी गदगद नजर आए। झारखंड में बीजेपी विपक्षी पार्टी होने के बाद भी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस दौरान बेहद विनम्र दिखे। इससे कहीं न कहीं यह संकेत मिल रहा था कि बीजेपी से उनकी तल्खी पीछे छूट रही है। यह सब राज्य सरकार के स्वागत कार्यक्रम में भी दिखा, जबकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के संबोधन में भी। वास्तव में, राज्य सरकार ने जिस तरह से पीएम मोदी के स्वागत में पलक पांवड़े बिछाए, उससे लोगों के मन में नए राजनीतिक समीकरणों को लेकर अटकलें तेज होने लगी हैं। महाराष्ट्र की तस्वीर हम सब के सामने है। लिहाजा, झारखंड को लेकर भी कयास लगाए जाने लगे हैं कि आने वाले दिनों में झामुमो-कांग्रेस गठबंधन की सरकार कहीं अपना स्वरूप तो नहीं बदल लेगी, क्योंकि जिस तरह से झामुमो और कांग्रेस के बीच तल्खी चल रही है, उस परिस्थिति में इसका अनुमान लगाना बिल्कुल भी गलत नहीं है।
देवघर के कार्यक्रम में हेमंत सोरेन ने अपने संबोधन में भी इसकी झलक दिखाई। हेमंत ने खुले मंच से पीएम मोदी के खूब गुण गाए। अमूमन ऐसा काम ही होता है कि सत्ता पक्ष का नेता विपक्षी पार्टी से जुड़े प्रधानमंत्री का इस तरह स्वागत करे और उनका इतना गुणगान करे। कई जगह तो देखने में मिलता है कि मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री के स्वागत तक के लिए नहीं आते हैं। ऐसे में, अगर झारखंड के देवघर में बदली तस्वीर दिखी है तो इसके बहुत से सियासी मायने तो हैं ही। लिहाजा, आने वाले दिनों में झारखंड की सरकार बदल जाए, तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि, भाजपा ने पहले ही द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर आदिवासी दांव खेल दिया है, जिसमें झारखंड मुक्ति मोर्चा बुरी तरह उलझकर रह गई है। कांग्रेस के लाख दबाव के बावजूद अब चाहकर भी हेमंत सोरेन विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के साथ खड़े नहीं हो सकते। क्योंकि, इससे उनकी आदिवासी हित की राजनीति बुरी तरह प्रभावित होगी।
उधर, वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को इस क्षेत्र से आशा के अनुरूप सफलता नहीं मिल सकी थी । संताल परगना की 18 सीटों में भाजपा को सिर्फ 4 सीटें मिली थी। अब पीएम के इस कार्यक्रम के बहाने भाजपा संताल परगना में अपनी खोयी साख को वापस लाने की तैयारी में जुट गयी है।
प्रदेश भाजपा के सभी बड़े नेता लगातार पांच दिनों से देवघर के कैम्प किये हुए थे। प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश, विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी, पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास, अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व राज्यसभा सांसद समीर उरांव, गोड्डा सांसद निशिकांत दुबे समेत पार्टी के दर्जन भर आदिवासी नेता लगातार संथाल में डटे रहे। इन नेताओं ने गांव-गांव घूम कर पीएम के कार्यक्रम में भाग लेने को लेकर आमंत्रण भी सौंपा और देवघर में एक लाख दीया जलाने की भी योजना बनायी गयी, जो अपने-आप में बहुत कुछ संदेश देता है। प्रधानमंत्री का जो रोड शो था, उसमें बाबानगरी पूरी तरह से भगवामय नजर आई।
कुल मिलाकर झारखंड में आने वाले दिनों की सियासी तस्वीर को देखना दिलचस्प होगा। कांग्रेस जिस तरह झामुमो पर दबाब बनाने की कोशिश कर रही थी, शायद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बीजेपी के साथ नजदीकी दिखाकर कांग्रेस को भी बड़ा संदेश दिया है। लिहाजा,झारखंड में सियासी तौर पर कांग्रेस का क्या रुख रहता है, यह देखना भी बेहद ही महत्वपूर्ण होगा।