गुप्तकाल पर नई दृष्टि डालती है पुस्तक ‘ट्रेजर्स ऑफ द गुप्ता एम्पायर’
नई दिल्ली, 12 सितंबर, गुरुवार।
इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में डॉ. संजीव कुमार द्वारा लिखित एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पुस्तक ‘ट्रेजर्स ऑफ द गुप्ता एम्पायर’ का लोकार्पण और उस पर चर्चा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन आईजीएनसीए के कलानिधि विभाग प्रभाग ने किया। पुस्तक को प्रकाशित किया है प्रगति ऑफसेट प्रा. लि. ने। कार्यक्रम की अध्यक्षता आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने की, जबकि मुख्य अतिथि थे राष्ट्रीय संग्रहालय के महानिदेशक डॉ. बी.आर. मणि। चर्चा कार्यक्रम में वक्ता थे- लखनऊ विश्वविद्यालय के एमिरटस प्रोफेसर पद्म श्री के.के. थपल्याल, मुंबई विश्वविद्यालय के डी.एम. इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूमिस्मैटिक्स एंड आर्कियोलॉजी के पूर्व निदेशक डॉ. दिलीप राजगोर, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, नई दिल्ली के अतिरिक्त महानिदेशक डॉ. संजय कुमार मंजुल, पुस्तक के लेखक श्री संजीव कुमार, आईजीएनसीए के कला निधि प्रभाग के प्रमुख व डीन (प्रशासन) प्रो. रमेश चंद्र गौड़ और इंडियन कॉइन सोसाइटी के अध्यक्ष एवं ओरिएंटल न्यूमिस्मैटिक सोसाइटी, यूके के सम्माननीय फेलो डॉ. प्रशांत कुलकर्णी।
कार्यक्रम के दौरान, गुप्त साम्राज्य के दुर्लभ सिक्कों की एक अनूठी प्रदर्शनी भी लगाई गई थी, जिसने उस काल के गौरवशाली अतीत को जीवंतता के साथ प्रस्तुत किया। पुस्तक पर चर्चा के दौरान लेखक संजीव कुमार ने कहा कि यह पुस्तक चार दशकों के निरंतर और गहन शोध के बाद लिखी गई है और यह गुप्त साम्राज्य के इतिहास को एक नई दृष्टि से देखने का अवसर प्रदान करेगी।
प्रो. के.के. थपलियाल ने लेखक को एक अत्यंत प्रासंगिक और उल्लेखनीय पुस्तक तैयार करने के लिए बधाई दी। उन्होंने कहा कि यह कार्य गुप्त काल के अध्ययन में सबसे व्यापक, अद्यतन और उदाहरणात्मक योगदान है। सिक्कों के चित्रण का उल्लेख करते हुए, उन्होंने उनके अद्भुत यथार्थवाद पर टिप्पणी की। विशेष रूप से, उन्होंने गुप्त साम्राज्य सिक्कों के चित्रण की प्रशंसा की और मुद्राशास्त्र के अध्ययन को आगे बढ़ाने में उनके महत्त्व पर जोर दिया। उन्होंने मुद्राशास्त्र विज्ञान के संदर्भ में इस कार्य के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह पुस्तक सिक्कों का समग्र अध्ययन प्रस्तुत करती है।
अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने योगदान को स्वीकार करने की भारतीय परम्परा का उल्लेख किया। उन्होंने ‘भामती टीका’ के लेखन में वाचस्पति मिश्र की पत्नी भामती के समर्पण का उल्लेख करते हुए कहा कि अपने ग्रंथ लेखन में पत्नी के योगदान को स्वीकार करते हुए वाचस्पति मिश्र ने ग्रंथ का नाम ही पत्नी के नाम पर ‘भामती टीका’ रख दिया। इसका संदर्भ देते हुए उन्होंने सुझाव दिया कि पुस्तक का अगला संस्करण लेखक को अपनी पत्नी को समर्पित करना चाहिए। उन्होंने डिजिटल लेन-देन के युग में सिक्कों पर आधारित इस पुस्तक की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला और विश्वविद्यालयों में मुद्राशास्त्र के अध्ययन की कमी की ओर ध्यान आकर्षित कराया। डॉ. जोशी ने राजा रवि वर्मा जैसे कार्यों सहित सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में आईजीएनसीए के प्रयासों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक सभ्यता के इतिहास, अर्थव्यवस्था और आइकनोग्राफी के क्षेत्र में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है और संभवतः वैश्विक स्तर पर शैक्षणिक पाठ्यक्रमों को प्रभावित करेगा।
कार्यक्रम के प्रारंभ में प्रो. रमेश चंद्र गौर ने अतिथियों का परिचय प्रस्तुत किया और उनका मंच पर स्वागत किया। कला निधि प्रभाग के श्री गोपाल ने अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया। आईजीएनसीए में आयोजित इस विमोचन कार्यक्रम में विद्वानों, इतिहासकारों और संस्कृति प्रेमियों का एक प्रतिष्ठित समूह उपस्थित रहा।
पुस्तक के बारे में
यह अद्वितीय पुस्तक अंतरराष्ट्रीय इतिहासकारों और विद्वानों द्वारा व्यापक रूप से सराही जा चुकी है। यह पुस्तक गहन शोध पद्धति और वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर गुप्त साम्राज्य (चौथी से छठी शताब्दी ईस्वी) के बारे में अब तक अनदेखे पहलुओं को उजागर करती है। श्री कुमार की ‘ट्रेजर्स ऑफ द गुप्ता एम्पायर’ केवल एक ऐतिहासिक विवरण नहीं है, बल्कि गुप्तकालीन इतिहास की हमारी समझ को पुनः परिभाषित करने वाली एक महत्वपूर्ण पुस्तक है। आधुनिक वैज्ञानिक विधियों का उपयोग कर यह पुस्तक सम्राट समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त, कुमारगुप्त और स्कंदगुप्त जैसे शक्तिशाली शासकों के अज्ञात पहलुओं को उजागर करती है और पहले से चली आ रही ऐतिहासिक धारणाओं को चुनौती देती है।