अनन्य भाव का कीर्तन है “बाबा नाम केवलम् ” कीर्तन
आनंद मार्ग की ओर से 5 यूनिट रक्तदान, पूर्णिमा नेत्रालय के सहयोग से 20 मोतियाबिंद रोगियों का निशुल्क ऑपरेशन लैंस प्रत्यारोपण एवं 50 फलदार पौधों का वितरण
जब भक्त भगवान के महिमा का गुणगान करते हैं तो इसे ‘कीर्तन’ कहते हैं।
‘ बाबा नाम केवलम्’ हरिनाम है जो इसका जप करता है वही सबसे ज्यादा बुद्धिमान है*
आनन्द मार्ग प्रचारक संघ की ओर से गदरा , मांझी टोला एवं पटमदा देहात क्षेत्र में ” बाबा नाम केवलम्” कीर्तन का गायन किया गया दूसरी और ब्लड सेंटर में 5 यूनिट रक्त दान एवं दो दिन में लगभग 20 मोतियाबिंद मरीजों का निःशुल्क ऑपरेशन एवं लैंस प्रत्यारोपण पूर्णिमा नेत्रालय में कराया गया एवं ग्रामीणों के बीच लगभग 50 फलदार पौधे का वितरण किया गया ।
लोगों को संबोधित करते हुए सुनील आनंद ने कहा कि – भक्तों ने भगवान का नामकरण किया। उसके बाद भगवान ‘नामी’ कहलाये। क्योंकि उनको नाम दिया गया। जब हम किसी को उसके नाम लेकर बुलाते हैं तो भीड़ में भी वही उत्तर देता है। इस प्रकार इस प्रकार भगवान कहते हैं भक्तों को कि तुमने मुझे नाम देकर नामी बना दिया। किन्तु पहले मैं सर्वशक्तिमान था कि लेकिन अब तो मैं नामी बन गया। भक्त कहता है कि ऐसा नहीं है, प्रभु! भक्त कहता है तुम से तुम हो तभी तो मैं हूँ। तुम न होते तो ये कैसे अस्तित्व में आता। भक्त कहता है कि तुम महान हो । भगवान भक्त को महान कहते हैं। भक्त और भगवान के बीच यह लडाई चली आ रही है। जब भक्त भगवान के महिमा का गुणगान करते हैं तो इसे ‘कीर्तन’ कहते हैं। वह गाता है, नाचता है, रोता है, कीर्तन करने के दौरान भक्त का हृदय भक्ति भाव से भर जाता है।
क्योंकि परमपुरुष आनन्दघन सत्ता हैं।
“बाबा नाम केवलम् ” अनन्य भाव का कीर्तन है
नामी परमपुरुष को कहा गया है। नाम, नामी से बड़ा होता है। हरि भगवान का नाम है। भगवान भक्तों के पाप को चुपके से हरण कर लेते हैं इसलिए उन्हें हरि कहा जाता है। यहाँ वे चौर्य का कार्य करते हैं। वे भक्तों के संस्कारों को चुरा लेते हैं।
‘बाबा नाम केवलम्’ कीर्तन करने को कहा गया। इससे मनुष्य के जन्मोजन्मान्तर के संस्कारगत पाप राशि दग्ध हो जाता है। कहा गया है कि एक बार “बाबा नाम केवलम’ समर्पण भाव से यदि करे तो उसके समस्त पाप- – राशि नष्ट हो जायेंगे।
बाबा नाम’ हरिनाम है। जो इसका जप करता है वही सबसे ज्यादा बुद्धिमान है। कीर्तन से पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, सजीव व निर्जीव सभी प्रभावित होते हैं। सभी इसका आनन्द लेते हैं। जो भी इसे सुनेगा उनका मन पवित्र होगा । इसलिए खूब कीर्तन करें।