Close Menu
Rashtra SamvadRashtra Samvad
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • होम
    • राष्ट्रीय
    • अन्तर्राष्ट्रीय
    • राज्यों से
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
      • ओड़िशा
    • संपादकीय
      • मेहमान का पन्ना
      • साहित्य
      • खबरीलाल
    • खेल
    • वीडियो
    • ईपेपर
    Topics:
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Rashtra SamvadRashtra Samvad
    • रांची
    • जमशेदपुर
    • चाईबासा
    • सरायकेला-खरसावां
    • धनबाद
    • हजारीबाग
    • जामताड़ा
    Home » केरल में भारत माता का अपमान यह केवल चित्र नहीं देश की आत्मा पर चोट है!
    Breaking News Headlines मेहमान का पन्ना राष्ट्रीय संवाद की अदालत संवाद विशेष

    केरल में भारत माता का अपमान यह केवल चित्र नहीं देश की आत्मा पर चोट है!

    News DeskBy News DeskJune 8, 2025No Comments7 Mins Read
    Share Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Share
    Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link

    अजय कुमार, वरिष्ठ पत्रकार

    भारत माता… एक ऐसा नाम, एक ऐसा भाव, जो करोड़ों भारतीयों के दिल की धड़कन है। जब कोई “भारत माता की जय” बोलता है, तो ये केवल एक नारा नहीं होता, बल्कि एक ऐसी पुकार होती है, जिसमें देशभक्ति, श्रद्धा और मातृत्व का गहरा बोध समाहित होता है। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, उसी भारत माता की तस्वीर अब देश के भीतर विवाद की जड़ बन रही है। जिस तस्वीर के सामने स्वतंत्रता सेनानी सिर झुकाकर बलिदान की प्रेरणा लेते थे, उसे देखकर अब केरल के एक मंत्री की आंखें चुभने लगी हैं। केरल के कृषि मंत्री पी प्रसाद ने पर्यावरण दिवस पर राजभवन में आयोजित कार्यक्रम का सिर्फ इसलिए बहिष्कार कर दिया क्योंकि मंच पर भारत माता की तस्वीर लगी थी। यह घटना एक प्रतीक भर नहीं है, यह उस वैचारिक युद्ध की प्रत्यक्ष झलक है जो अब भारत की आत्मा से टकरा रहा है।

    पी प्रसाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हैं। वही पार्टी जिसकी जड़ें भारत में नहीं, बल्कि 1920 के दशक में सोवियत रूस के ताशकंद में पड़ीं। एक विदेशी धरती पर जन्मी विचारधारा का भारत में प्रवेश होना ही एक चेतावनी थी कि इसकी नज़र भारतीय संस्कृति, परंपरा और भावनाओं से मेल नहीं खाती। और यही हुआ भी। आजादी के आंदोलन में जब देश के कोने-कोने में भारत माता की जय के उद्घोष के साथ आंदोलनकारी सड़कों पर उतर रहे थे, उसी वक्त वामपंथी विचारधारा सोवियत संघ के हितों की रक्षा में व्यस्त थी। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में इनका हिस्सा न बनना इस बात की सबसे बड़ी गवाही है।

    जब-जब भारत माता का स्वर प्रबल हुआ, तब-तब लेफ्ट ने अपना मुख कहीं और मोड़ लिया। जब महात्मा गांधी अंग्रेजों को “भारत छोड़ो” कह रहे थे, तब कम्युनिस्ट नेता सोवियत संघ की नीति के अनुसार चुप बैठे थे। जब 1962 में चीन ने भारत की सीमाओं पर हमला किया, तब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने न केवल चीन के दावों का समर्थन किया, बल्कि ‘बीजिंग नजदीक है, दिल्ली दूर’ जैसे नारे दिए। एक विचारधारा जो भारत माता को मां नहीं मानती, बल्कि एक साम्राज्यवादी कल्पना मानती है, वो विचारधारा जब सत्ता में आती है, तो भारत माता की तस्वीर से चिढ़ होना स्वाभाविक हो जाता है।

    भारत माता का चित्र कोई धर्म विशेष का प्रतीक नहीं है। यह चित्र अबनिंद्रनाथ टैगोर ने 1905 में बनाया था, जिसमें भारत को चार हाथों वाली देवी के रूप में दर्शाया गया, जिनके हाथों में वेद, चावल, सफेद वस्त्र और माला होती थी। ये प्रतीक उस भारत का था, जो सांस्कृतिक रूप से समृद्ध, आत्मनिर्भर और ज्ञान से परिपूर्ण था। यह चित्र उस समय बना जब बंग-भंग के कारण राष्ट्रवाद की लहर तेज हो रही थी। भारत माता उस राष्ट्रवादी चेतना का नाम थी जिसने आजादी की लड़ाई को जनांदोलन में बदल दिया। यही कारण था कि वीर सावरकर से लेकर भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस तक, सभी भारत माता को केंद्र में रखकर लड़ते रहे।

    लेकिन अब उस चित्र को लेकर यह तर्क दिया जा रहा है कि वह “सरकारी रूप से अधिकृत प्रतीक” नहीं है। केरल सरकार ने यहां तक कह दिया कि भारत माता का कोई आधिकारिक चित्र नहीं है और इसीलिए उसे किसी सरकारी मंच पर रखना असंवैधानिक है। कृषि मंत्री पी प्रसाद ने यह आरोप लगाया कि भारत माता के चित्र पर एक राजनीतिक संगठन का झंडा लगा हुआ था, इसलिए वे उसे स्वीकार नहीं कर सकते। सवाल यह है कि क्या भारत माता अब केवल एक पार्टी का विचार बन गई है? क्या आज भारत माता की जय बोलना किसी राजनीतिक विचारधारा से जुड़ गया है?

    राज्यपाल राजेंद्र वी. आर्लेकर ने इस पूरे विवाद में स्पष्ट कहा कि भारत माता के सम्मान से कोई समझौता नहीं होगा। यह बयान सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं था, यह उस करोड़ों भारतीयों की भावना का प्रतिनिधित्व करता था जो भारत माता को केवल एक प्रतीक नहीं, एक सजीव सत्ता मानते हैं। लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि राज्य के शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी भी इस मुद्दे में कूद पड़े और बोले कि राज्यपाल को राजनीति से ऊपर उठना चाहिए। यानी अब भारत माता की तस्वीर रखना राजनीति है, लेकिन उस पर आपत्ति जताना राष्ट्रहित!

    भारत माता की तस्वीर को लेकर इतने तीव्र विरोध का अर्थ केवल एक सांस्कृतिक टकराव नहीं है। यह उस दीर्घकालीन वैचारिक विभाजन का परिणाम है जिसमें एक धड़ा सदैव भारत को सिर्फ एक भूगोल मानता आया है, जबकि दूसरा धड़ा इसे मातृभूमि के रूप में देखता रहा है। लेफ्ट की राजनीति हमेशा विदेशी सिद्धांतों से प्रेरित रही है। चाहे वह मार्क्सवाद हो या माओवाद, भारतीय सोच और परंपरा का इसमें कोई स्थान नहीं रहा। यही कारण है कि भारत माता के चित्र से इन्हें चिढ़ होती है। क्योंकि यह चित्र उस भारत का प्रतिनिधित्व करता है जो अपने सांस्कृतिक गौरव पर गर्व करता है, जो अपने इतिहास से सीखता है, और जो मां को ईश्वर के समान मानता है।

    आज यह सोच केवल केरल तक सीमित नहीं है। यह सोच देश के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद है, जो भारत के मूलभाव को छिन्न-भिन्न करने पर तुली हुई है। यह वही सोच है जो ‘अफजल हम शर्मिंदा हैं, तेरे कातिल जिंदा हैं’ जैसे नारे देती है। यह वही सोच है जो कभी जेएनयू से उठती है और कभी कन्हैया कुमार की आवाज़ बनकर फैलती है। अब इस सोच को अगर सरकार का संरक्षण मिल जाए, तो वह भारत माता की तस्वीर को मंच से हटवाने का साहस कर बैठती है।

    लेकिन यहां एक और गहरी बात छुपी है। आज देश में राष्ट्रवाद को संकीर्ण दृष्टि से देखने की प्रवृत्ति बढ़ी है। भारत माता की तस्वीर या ‘वंदे मातरम्’ जैसे नारों को कुछ लोग धार्मिक रंग में रंगने की कोशिश करते हैं। परंतु यह चित्र और ये नारे केवल धार्मिक नहीं, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक हैं। भारत माता का चित्र देखकर किसी को आपत्ति होती है, तो सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या उनका भारत से जुड़ाव केवल संविधान की किताबों तक सीमित है? क्या वे उस भारत को नहीं पहचानते जिसे करोड़ों लोग माँ कहते हैं?

    इस विवाद पर बीजेपी ने कड़ा रुख अपनाया। प्रदेश अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने राज्य सरकार के इस रुख को राष्ट्रविरोधी करार दिया और कहा कि भारत माता का अपमान देश का अपमान है। वहीं कांग्रेस ने भी राजभवन में राजनीतिक एजेंडे को थोपने की कोशिश की आलोचना की और कहा कि राज्यपाल को राजनीतिक प्रतीकों से दूरी बनानी चाहिए। लेकिन भारत माता की तस्वीर को केवल एक राजनीतिक प्रतीक मानना ही अपने आप में एक बड़ी भूल है। यह चित्र न किसी पार्टी का है और न किसी संगठन का। यह उस भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक है जिसे हर भारतवासी महसूस करता है।

    पी प्रसाद जैसे मंत्री संविधान की शपथ लेकर सत्ता में आते हैं, लेकिन जब भारत माता का चित्र सामने आता है, तो शपथ में समाहित भावना को भी नजरअंदाज कर देते हैं। यह विडंबना नहीं तो और क्या है? भारत के प्रत्येक नागरिक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह देश के प्रतीकों, ध्वज, राष्ट्रगान, और सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करे। फिर एक मंत्री जब भारत माता की तस्वीर से परहेज करता है, तो यह केवल उनका निजी मत नहीं रह जाता, यह एक राजनीतिक संदेश बन जाता है ऐसा संदेश जो राष्ट्रवाद को टुकड़ों में बांटने की कोशिश करता है।

    यह घटना हमें उस खतरे की चेतावनी देती है जो भारत की एकता और अखंडता के लिए भीतर से उठ रहा है। देश को तोड़ने वाली ताकतें केवल सीमाओं से नहीं आतीं, वे उस मानसिकता से आती हैं जो अपने देश की आत्मा को पहचानने से इनकार करती हैं। भारत माता की तस्वीर से चिढ़ना उस चेतना को अस्वीकार करना है जो इस देश को जोड़ती है। यह केवल एक चित्र नहीं, यह एक विचार है, एक आस्था है, एक भावना है जो भारत को भारत बनाती है।

    देश को आज ऐसे लोगों की जरूरत है जो भारत माता की जय को राजनीति नहीं, बल्कि श्रद्धा समझें। जिन्हें राष्ट्रगान सुनकर सम्मान की भावना हो, और भारत माता की तस्वीर देखकर आंखों में नमी और माथे पर झुकाव आए। वरना वह दिन दूर नहीं जब भारत केवल संविधान की किताब में सिमट कर रह जाएगा, और भारत माता एक विवादास्पद प्रतीक बनकर रह जाएगी। यह समय है कि देश की आत्मा को फिर से पहचाना जाए, उसे गले लगाया जाए क्योंकि भारत माता का अपमान किसी भी सूरत में सहन नहीं किया जा सकता। यही भारत का सच्चा स्वाभिमान है। यही भारत की सच्ची पहचान है।

    Share. Facebook Twitter Telegram WhatsApp Copy Link
    Previous Articleइतिहास को मरोड़ने से नाकारापन नहीं छिपती
    Next Article रंभा कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग में किया गया वृहद वृक्षारोपण 

    Related Posts

    बिरसा नगर स्थित बिरसा बुरु संडे मार्केट में सौंदर्यीकरण कार्यों का निरीक्षण

    November 13, 2025

    विजया गार्डेन में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की अध्यक्षता में हुई महत्वपूर्ण बैठक

    November 13, 2025

    जगजोत सिंह सोही क़ौम से माफी मांगे : कुलबिंदर 

    November 13, 2025

    Comments are closed.

    अभी-अभी

    बिरसा नगर स्थित बिरसा बुरु संडे मार्केट में सौंदर्यीकरण कार्यों का निरीक्षण

    विजया गार्डेन में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की अध्यक्षता में हुई महत्वपूर्ण बैठक

    जगजोत सिंह सोही क़ौम से माफी मांगे : कुलबिंदर 

    घाटशिला विधानसभा : किसके सिर सजेगा ताज, फैसला आज सुबह 8 बजे से मतगणना शुरू

    एमजीएम अस्पताल का सी आर्म मशीन खराब

    बागबेड़ा हाउसिंग कॉलोनी में सड़क निर्माण कार्य का शुभारंभ, विधायक संजीव सरदार का हुआ सम्मान

    कांग्रेस संगठन सृजन अभियान को गति देने के लिए बैठक आयोजित

    सुप्रीम कोर्ट का फैसला हमारी मांगों के अनुरुपःसरयू राय

    रेड क्रॉस भवन के सखी वन स्टॉप सेंटर का विधायक पूर्णिमा साहू ने किया दौरा

    मतगणना दिवस की तैयारियों की समीक्षा बैठक संपन्न

    Facebook X (Twitter) Telegram WhatsApp
    © 2025 News Samvad. Designed by Cryptonix Labs .

    Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.