आखिर कब तक बीजेपी में टिक पाएंगी सीता और गीता…?
देवानंद सिंह
केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने जब JMM का साथ छोड़ा था तब किसी को यह पता नहीं था की एक दिन अर्जुन मुंडा देश की राजनीति के मजे हुए खिलाड़ी साबित होंगे और अर्जुन मुंडा ने भाजपा में अपनी काबिलियत को साबित भी किया
आम चुनाव के पहले झारखंड में कई ऐसे नेता हैं जो अभी रात दिन एक किए हुए हैं पार्टी बदलने के लिए परंतु अभी तक उन्हें सफलता नहीं मिली है चर्चा तो अब यह भी हो रही है कि लोकसभा चुनाव नहीं तो विधानसभा चुनाव तक कई झारखंड के कद्दावर नेता पाला बदल सकते हैं
लोकसभा चुनावों का लेकर सियासी सरगर्मी उफान पर है, राजनीतिक पार्टियां टिकट बंटवारे के साथ चुनाव प्रचार में जुट चुकी हैं, लेकिन इसी बीच हर चुनावी मौसम की तरह इस बार भी कई नेता पाला बदल चुके हैं या बदलने की फिराक में हैं। झारखंड में दल बदलने का सियासी मैदान पूरी तरह गरम है। यहां दो नामों की चर्चा सबसे अधिक हो रही है, इसमें पहला नाम है, पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा का है, जिन्होंने कांग्रेस का दामन छोड़ बीजेपी का दामन थामा है। उन्हें बीजेपी ने पश्चिम सिंहभूम से अपना प्रत्याशी बनाया है, जबकि दूसरा महत्वपूर्ण नाम है सीता सोरेन का, जो पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की बहू और हेमंत सोरेन की भाभी हैं।
वह सोरेन सरकार में मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज थीं, जिसके चलते उन्होंने हवा का रुख देखते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया और उन्हें बीजेपी ने दुमका से टिकट दिया है, लेकिन यह चुनावी मौसम है और उसमें वोटों को अपनी तरफ खींचने के लिए हर कोई कहीं भी खप सकता है, लेकिन सवाल यहां यह है कि ये दोनों नेता आखिर कब तक बीजेपी में सांस ले पाएंगी ?
क्योंकि किसी पार्टी का दामन थामना जितना आसान है, उतना ही मुश्किल उस पार्टी की विचारधारा और वहां के नेताओं के बीच सांस लेना उतना ही मुश्किल होता है। कोई शक नहीं कि बीजेपी भारत की ही नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी है और भारत में फिलहाल तो उसका पूरा क्रेज दिखाई दे रहा है।
2024 को लेकर जिस तरह के समीकरण दिखाई दे रहे हैं, उसमें बीजेपी की सरकार एक बार फिर वापस आती हुई दिख रही है और इस बार बीजेपी ने 400 के पार का लक्ष्य रखा है, इसीलिए पार्टी विपक्ष को चारों खाने चित्त करने के लिए उसके नेताओं को चुन-चुनकर अपने पाले में कर रही है, भले ही उन्हें हाथों-हाथ टिकट भी दिया जा रहा है, लेकिन ऐसे नेताओं की बीजेपी में पारी कब तक चल पाएगी, इसको लेकर संशय जरूर बना हुआ है। कोई शक नहीं कि गीता कोड़ा और सीता सोरेन के बीजेपी का दामन थामने के बाद जहां विपक्षी गठबंधन कमजोर हुआ है, वहीं बीजेपी को इससे बहुत बड़ी ताकत मिली है।
झारखंड आदिवासी बाहुल्य राज्य है, ऐसे में इन दोनों ही महिला नेताओं का इस क्षेत्र में अच्छा-खासा सियासी समीकरण है, लेकिन कहीं उनकी बीजेपी में टिकट मिलने और मंत्री बनने की महत्वाकांक्षा उन्हें कहीं का ना छोड़े, क्योंकि बीजेपी में शामिल होकर घुटन महसूस करने वालों की लंबी फेहरिस्त है। इसको इस तरीके से भी कहा जा सकता है कि या तो दूसरी पार्टियों से आए नेता बीजेपी के कल्चर में खुद को ढाल नहीं सकते हैं या फिर बीजेपी ऐसे नेताओं को संभाल नहीं पाती है, लेकिन जो भी हो, इसमें नुकसान पार्टी को बहुत अधिक नहीं होता है, लेकिन उन नेताओं का जरूर होता है, जो अति महत्वाकांक्षा में बीजेपी का दामन थामते हैं, ऐसे में गीता और सीता कब तक बीजेपी के माहौल में सांस ले पाएंगी, ये बहुत बड़ा सवाल है।
झारखंड में ऐसे और भी नेता हैं, जिन्हें या तो बीजेपी में घुटन हुई या फिर उन्हें बीजेपी संभाल नहीं पाई, इसमें सबसे बड़ा नाम यशवंत सिन्हा का है, जो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय वित्तमंत्री जैसे ओहदे पर विराजमान रह चुके हैं, उसके बाद भी उन्हें बीजेपी का दामन छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इस फेहरिस्त में पूर्व मंत्री विधायक सरयू राय भी शामिल है जिनका पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास से अनबन जग जाहिर है और लोग यह भी मानते हैं की श्री राय के चलते ही झारखंड से भाजपा सरकार की विदाई हुई कई गद्यावर नेता जैसे गौतम सागर राणा ,सुखदेव भगत, प्रदीप बलमुचू, गिरिनाथ सिंह, राम टहल चौधरी, हेमलाल मुर्मू, जीपी पटेल जैसे चेहरे भी शामिल हैं,
हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री एक केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा और अन्नपूर्णा यादव अभी तक बीजेपी में बनी हुई हैं
और उन्हें इस बार भी खूंटी व कोडरमा से लोकसभा चुनाव का टिकट दिया गया है, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने जब JMM का का साथ छोड़ा था तब किसी को यह पता नहीं था की एक दिन अर्जुन मुंडा देश की राजनीति के मजे हुए खिलाड़ी साबित होंगे और अर्जुन मुंडा ने भाजपा में अपनी काबिलियत को साबित भी किया लेकिन सवाल केवल अर्जुन मुंडा व अन्नपूर्णा यादव का नहीं है, क्योंकि एक-दो लोग अपवाद हो सकते हैं, लेकिन दूसरी पार्टी से आकर या स्वयं बीजेपी में रहते हुए भी पार्टी का दामन छोड़ने वालों की फेहरिस्त भी लंबी है, चाहे ऐसे नेताओं ने घुटन महसूस कर स्वयं बीजेपी का साथ छोड़ा या फिर बीजेपी इन नेताओं को संभाल नहीं पाई, यह सवाल भविष्य में सियासी मैदान की समस्या न रहे, इससे बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है, इसीलिए इस परिस्थिति में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर सीता और गीता कब तक बीजेपी में टिक पाएंगी ?
आम चुनाव के पहले झारखंड में कई ऐसे नेता हैं जो अभी रात दिन एक किए हुए हैं पार्टी बदलने के लिए परंतु अभी तक उन्हें सफलता नहीं मिली है चर्चा तो अब यह भी हो रही है कि लोकसभा चुनाव नहीं तो विधानसभा चुनाव तक कई झारखंड के कद्दावर नेता पाला बदल सकते हैं