*हिन्दी राष्ट्रभाषा का अपमान न करे झारखंड सरकार : राजेश शुक्ल*
प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजेश कुमार शुक्ल ने कहा है कि झारखंड सरकार देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी को झारखंड में अपमानित करने का कार्य कर रही है। झारखंड कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं में जिन 12 क्षेत्रीय भाषाओं को रखा गया है उनमें हिंदी तक को शामिल नही किया गया है। संस्कृत, भोजपुरी , मैथिली , मगही को भी इससे बाहर कर दिया गया है। यह पूरी तरह अनुचित और अलोकतांत्रिक कदम है। जिसको भारत का संविधान भी इजाजत नही देता है।
श्री शुक्ल ने कहा है कि भाषा और क्षेत्र के आधार पर संविधान किसी भी वर्ग या सम्प्रदाय के साथ विभेद की इजाजत नही देता है।सभी भाषा को सम्मान मिले ,स्थानीय भाषाओं को भी पूरी तरह फलने ,फूलने का अवसर मिले , यह जरूरी है। लेकिन किसी भी भाषा को अपमानित नही किया जाना चाहिए। अनेकता में एकता यही भारत की विशेषता है।
श्री शुक्ल ने कहा कि आज विश्व हिंदी दिवस है लेकिन झारखंड में राष्ट्र भाषा हिंदी के सम्मान के लिए राज्य सरकार द्वारा कोई कदम नही उठाया जा रहा है बल्कि राष्ट्र भाषा को जो उचित सम्मान मिलना चाहिए वह राज्य सरकार ने देने का काम नही किया ।झारखंड कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं में हिंदी को अलग करना पूरी तरह अन्याय है।
श्री शुक्ल ने कहा है कि भोजपुरी, मैथिली, मगही और संस्कृत बोलने वाले झारखंड में भारी संख्या में रहते है उनका भी झारखंड के विकास में योगदान है उनकी कई कई पीढ़ियों ने झारखंड के विकास में भूमिका अदा की है। इसलिए किसी भी भाषा, जाति या धर्म के आधार पर किसी से विभेद नही किया जाना चाहिए। पूर्व की भाजपा की राज्य सरकार ने इसकी महत्ता को समझा था।
श्री शुक्ल ने कहा कि वर्तमान राज्य सरकार में कांग्रेस और राजद भी शामिल है वे आज इस मुद्दे पर मूकदर्शक बने है ये चुनाव में मतदाताओं को क्या जबाब देंगे। अपने चुनावी घोषणा पत्र को भी इनको गौर करना चाहिए जो इन भाषाओं के उत्थान की दुहाई देते थे। आज मौन है।
श्री शुक्ल ने मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन से आग्रह किया है कि झारखंड कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं में हिंदी, संस्कृत, भोजपुरी ,मैथिली और मगही को स्थान और सम्मान दे ताकि इन भाषाओं से जुड़े लोंगो का मनोबल न टूटे।
प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजेश कुमार शुक्ल ने कहा है कि झारखंड सरकार देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी को झारखंड में अपमानित करने का कार्य कर रही है। झारखंड कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं में जिन 12 क्षेत्रीय भाषाओं को रखा गया है उनमें हिंदी तक को शामिल नही किया गया है। संस्कृत, भोजपुरी , मैथिली , मगही को भी इससे बाहर कर दिया गया है। यह पूरी तरह अनुचित और अलोकतांत्रिक कदम है। जिसको भारत का संविधान भी इजाजत नही देता है।
श्री शुक्ल ने कहा है कि भाषा और क्षेत्र के आधार पर संविधान किसी भी वर्ग या सम्प्रदाय के साथ विभेद की इजाजत नही देता है।सभी भाषा को सम्मान मिले ,स्थानीय भाषाओं को भी पूरी तरह फलने ,फूलने का अवसर मिले , यह जरूरी है। लेकिन किसी भी भाषा को अपमानित नही किया जाना चाहिए। अनेकता में एकता यही भारत की विशेषता है।
श्री शुक्ल ने कहा कि आज विश्व हिंदी दिवस है लेकिन झारखंड में राष्ट्र भाषा हिंदी के सम्मान के लिए राज्य सरकार द्वारा कोई कदम नही उठाया जा रहा है बल्कि राष्ट्र भाषा को जो उचित सम्मान मिलना चाहिए वह राज्य सरकार ने देने का काम नही किया ।झारखंड कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं में हिंदी को अलग करना पूरी तरह अन्याय है।
श्री शुक्ल ने कहा है कि भोजपुरी, मैथिली, मगही और संस्कृत बोलने वाले झारखंड में भारी संख्या में रहते है उनका भी झारखंड के विकास में योगदान है उनकी कई कई पीढ़ियों ने झारखंड के विकास में भूमिका अदा की है। इसलिए किसी भी भाषा, जाति या धर्म के आधार पर किसी से विभेद नही किया जाना चाहिए। पूर्व की भाजपा की राज्य सरकार ने इसकी महत्ता को समझा था।
श्री शुक्ल ने कहा कि वर्तमान राज्य सरकार में कांग्रेस और राजद भी शामिल है वे आज इस मुद्दे पर मूकदर्शक बने है ये चुनाव में मतदाताओं को क्या जबाब देंगे। अपने चुनावी घोषणा पत्र को भी इनको गौर करना चाहिए जो इन भाषाओं के उत्थान की दुहाई देते थे। आज मौन है।
श्री शुक्ल ने मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन से आग्रह किया है कि झारखंड कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं में हिंदी, संस्कृत, भोजपुरी ,मैथिली और मगही को स्थान और सम्मान दे ताकि इन भाषाओं से जुड़े लोंगो का मनोबल न टूटे।