जमशेदपुर आनंद मार्ग जागृति से बांग्लादेश श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख दादा का प्रतिनिधित्व करने जमशेदपुर से बांग्लादेश धर्म महासम्मेलन को संबोधित करने गए सीनियर पुरोधा आचार्य संपूर्णानंद अवधूत बांग्लादेश के उत्तरी दक्षिणी छोर पर स्थित ठाकुरगंज के ठाकुर गांव में आयोजित आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से दो दिवसीय धर्म महासम्मेलन का आयोजन किया गया किसी कारणवश श्रद्धेय पुरोधा प्रमुख आचार्य विश्वदेवानंद अवधूत बांग्लादेश नहीं जा सके उनके प्रतिनिधित्व के लिए वरिष्ठ पुरोधा आचार्य संपूर्णानंद अवधूत को धर्म महासम्मेलन को संबोधित करने के लिए संस्था की ओर से भेजा गया बांग्लादेश में साधकों की संख्या काफी थी लोग काफ़ी उत्साहित थे। साधक साधिकाओं ने ब्रह्म मुहूर्त में गुरु सकाश, पाञ्चजन्य एवं योगासन का अभ्यास अनुभवी आचार्य के निर्देशन में किया।
संध्याकाल में सामूहिक धर्म चक्र व गुरु वंदना के उपरांत रावा की ओर से प्रभात संगीत पर आधारित नृत्य प्रस्तुत किया गया विदित हो कि प्रभात संगीत संगीत का एक नया घराना है जिसे आनंद मार्ग के संस्थापक श्री प्रभात रंजन सरकार उर्फ श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने दिया है दूसरे दिन “जीवन का लक्ष्य ” विषय पर वरिष्ठ पुरोधा आचार्य संपूर्णानंद अवधूत जी ने किया उन्होंने अपने प्रवचन में कहा कि शास्त्रों में तो मोक्ष प्राप्ति के तीन मार्ग बताए गए हैं – ज्ञान ,कर्म और भक्ति। परंतु उन्होंने कहा कि बाबा श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने इसे खंडन करते हुए कहा कि भक्ति पथ नहीं है बल्कि भक्ति लक्ष्य है जिसे हमें प्राप्त करना है साधारणत: लोग ज्ञान और कर्म के साथ भक्ति को भी पथ या मार्ग ही मानते हैं परंतु ऐसा नहीं है।
उन्होंने कहा कि जीवन में जितने भी अनुभूतियां होती भक्ति की अनुभूति सर्वश्रेष्ठ है। ज्ञान मार्ग और कर्म मार्ग के माध्यम से मनुष्य भक्ति में प्रतिष्ठित होते हैं। और बाबा कहते हैं कि भक्ति मिल गया तो सब कुछ मिल गया तब और कुछ प्राप्त करने को कुछ नहीं बच जाता। आदि गुरु शंकराचार्य के बारे में बोलते हुए कहा कि वह उद्भट ज्ञानी थे फिर भी भक्ति को श्रेष्ठ कहा है उन्होंने बताया की मोक्ष प्राप्ति के उपाय एवं में भक्ति श्रेष्ठ है भक्ति आ जाने पर मोक्ष यूं ही प्राप्त हो जाता है भक्त और मोक्ष में द्वंद होने पर भक्त की विजय होती है मोक्ष यूं ही रह जाता है वरिष्ठ पुरोधा आचार्य संपूर्णानंद अवधूत ने कहा कि परमात्मा कहते हैं की मैं भक्तों के साथ रहता हूं जहां वे मेरा गुणगान करते हैं कीर्तन करते हैं परम पुरुष के प्रति जो प्रेम है उसे ही भक्ति कहते हैं। निर्मल मन से जब इष्ट का ध्यान किया जाता है तो भक्ति सहज उपलब्ध हो जाता है।
वरिष्ठ पुरोधा जी के आगमन पर कौशिकी एवं तांडव नृत्य किया गया। कौशिकी नृत्य की उपयोगिता के विषय में सेवा धर्म मिशन के आचार्य पूर्णदेवानंद अवधूत ने कहा कि भगवान श्री श्री आनंदमूर्ति जी कौशिकी नृत्य के जन्मदाता हैं। इस नृत्य के अभ्यास से 22 रोग दूर होते हैं। सिर से पैर तक अंग- प्रत्यंग और ग्रंथियों का व्यायाम होता है। मनुष्य दीर्घायु होता है ।यह नृत्य महिलाओं के सु प्रसव में सहायक है। मेरुदंड के लचीलेपन की रक्षा करता है ।मेरुदंड, कंधे ,कमर, हाथ और अन्य संधि स्थलों का वात रोग दूर होता है। मन की दृढ़ता और प्रखरता में वृद्धि होती है । महिलाओं के अनियमित ऋतुस्राव जनित त्रुटियां दूर करता है । ब्लाडर और मूत्र नली में के रोगों को दूर करता है। देह के अंग-प्रत्यंगों पर अधिकतर नियंत्रण आता है ।मुख् मंडल और त्वचा की दीप्ति और सौंदर्य वृद्धि में सहायकहै। कौशिकी नृत्य त्वचा पर परी झुर्रियों को ठीक करता है । आलस्य दूर भगाता है । नींद की कमी के रोग को ठीक करता है । हिस्टीरिया रोग को ठीक करता है । भय की भावना को दूर कर के दे मन में साहस जगाता है। निराशा को दूर करता है। अपनी अभिव्यंजना क्षमता और दक्षता वृद्धि मे सहायक है । रीड में दर्द, अर्श, हर्निया, हाइड्रोसील ,स्नायु यंत्रणा ,और स्नायु दुर्बलता को दूर करता है। किडनी, गालब्लैडर, गैस्ट्राइटिस, डिस्पेप्सिया, एसिडिटी ,डिसेंट्री ,सिफलिस, स्थूलता ,कृशता और लीवर की त्रुटियों को दूर करने में सहायता प्रदान करता है। 75 से 80 वर्ष की उम्र तक शरीर की कार्य दक्षता को बनाए रखता है।.