हमारा क्या बिगड़ेगा?
****************
चाहे कर जितना भी हल्ला,
हम शासक खाएं रसगुल्ला,
जब तक हमरी सरकार, हमारा क्या बिगड़ेगा?
पीछे बैठा, सुना है भाषण,
फिर धोया बर्तन और बासन।
कुछ कुबेर का चापलूस बन,
मिहनत से पाया सिंहासन।
अब अपना सब अखबार, हमारा क्या बिगड़ेगा?
हमने पहले जब नोट दिया,
तब लोगों ने कुछ वोट दिया ।
अब सत्ता में हम आ बैठे,
फिर लोगों को भी चोट दिया।
जी भर कर लो प्रतिकार, हमारा क्या बिगड़ेगा?
शासक को शौक तिजारत का,
लेकिन ये काम हिकारत का।
तोड़ेगा सुमन भरम तेरा,
जो संविधान है भारत का।
तब मुश्किल कहना यार, हमारा क्या बिगड़ेगा?
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
राष्ट्रकवि दिनकर की स्मृतियों को नमन
सादर
श्यामल सुमन