प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी ने नई बहस को दिया जन्म
देवानंद सिंह
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हालिया इंटरव्यू में पाकिस्तान के साथ शांति की कोशिशों के विफल होने का जिस तरह उल्लेख किया, उसने दोनों देशों के रिश्तों में एक बार फिर नई बहस को जन्म दे दिया है। यह बात उल्लेखनीय है कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंधों का लंबा इतिहास है, इस बीच प्रधानमंत्री की इसको लेकर की गई टिप्पणी ने जिस तरह इस मामले को हवा दी है, उससे इस मामले के तूल पकड़ने के आसार और बढ़ गए हैं।
दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में अमेरिकी पॉडकास्टर लेक्स फ्रीडमैन को दिए एक इंटरव्यू में पाकिस्तान के साथ शांति की कोशिशों को नकारात्मक रूप से चित्रित किया। उन्होंने पाकिस्तान से शांति की कई कोशिशों के विफल रहने की बात की, जैसे कि 2014 में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को न्योता देना और लाहौर यात्रा करना। मोदी ने यह भी कहा कि आतंकवाद की घटनाओं का स्रोत पाकिस्तान से आता है, और यह चिंता भारत के लिए निरंतर बनी रही है।
इसके जवाब में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी को एकतरफा और तथ्यों से परे बताया। पाकिस्तान का कहना था कि भारत ने जम्मू-कश्मीर विवाद को नजरअंदाज किया और केवल अपनी सुविधानुसार स्थिति को प्रस्तुत किया। पाकिस्तान ने यह भी कहा कि भारत खुद को पीड़ित के रूप में प्रस्तुत करता है और पाकिस्तान पर आतंकवाद के आरोप लगाता है, जबकि खुद भारत के रिकॉर्ड में भी कई गंभीर आरोप हैं, जैसे कि विदेशों में आतंकवाद और। टारगेटेड किलिंग्स की घटनाएं। इसके अलावा, पाकिस्तान ने भारत से जम्मू-कश्मीर विवाद पर वार्ता करने की जरूरत पर जोर दिया।
यह स्थिति दोनों देशों के बीच मौजूद जटिल कूटनीतिक संबंधों को और अधिक स्पष्ट करती है। प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी और पाकिस्तान की प्रतिक्रिया दोनों ही एक-दूसरे के प्रति अविश्वास और आरोप-प्रत्यारोप की प्रक्रिया को बढ़ावा देती हैं, जो दोनों देशों के रिश्तों में एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में हमेशा से ही तनाव और असहमति रही है। कश्मीर विवाद, आतंकवाद, सीमा पार आतंकवाद, और क्षेत्रीय प्रभुत्व की प्रतिस्पर्धा दोनों देशों के रिश्तों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारण रहे हैं। मोदी की टिप्पणी ने पाकिस्तान के लिए एक संवेदनशील मुद्दे को और उभार दिया है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से पाकिस्तान को आतंकवाद का स्रोत बताया, हालांकि भारत ने 2014 में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया था, लेकिन यह कूटनीतिक कदम भी पाकिस्तान में विरोध का सामना करता रहा। पाकिस्तान में इस निमंत्रण को लेकर सशंकित दृष्टिकोण था और इसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान की राजनीति में एक नया मोड़ आया। इसके बावजूद, नवाज़ शरीफ़ ने भारत आकर यह दिखाया कि वह पाकिस्तान-भारत रिश्तों को सुधारने के इच्छुक थे। इसके बाद, पाकिस्तान ने कश्मीर के हुर्रियत नेताओं से मुलाकात न करने का भारत का अनुरोध भी स्वीकार किया, जो एक कूटनीतिक कदम था।
प्रधानमंत्री मोदी की 2019 में जम्मू और कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने की कार्रवाई ने भी दोनों देशों के रिश्तों में एक नया विवाद खड़ा कर दिया था। पाकिस्तान ने इसे अवैध और एकतरफा कदम करार दिया। मोदी सरकार का यह कदम न केवल पाकिस्तान, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा भी आलोचना का शिकार हुआ। भारत के लिए, यह कदम कश्मीर में संविधानिक सुधार का हिस्सा था, जबकि पाकिस्तान इसे भारत द्वारा कश्मीर की विशेष स्थिति को खत्म करने का प्रयास मानता है।
प्रधानमंत्री मोदी की पाकिस्तान के प्रति कड़ी टिप्पणी और इस संदर्भ में पाकिस्तान का जवाब, दोनों ही देशों के बीच बढ़ते असहमति और शांति की कोशिशों के विफल होने की तस्वीर को सामने लाते हैं। पाकिस्तान का कहना है कि भारत अपनी शर्तों पर शांति चाहता है, और जम्मू-कश्मीर के बिना पाकिस्तान से अच्छे संबंध की कोई संभावना नहीं है। पाकिस्तान की यह टिप्पणी भारत द्वारा जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद आई है, जिससे पाकिस्तान की चिंता और बढ़ गई है।
प्रधानमंत्री मोदी का बयान चीन के संदर्भ में अलग था, जिसमें उन्होंने चीन के साथ रिश्तों में संघर्ष से बचने की बात की। उन्होंने स्वीकार किया कि भारत और चीन के बीच मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन संघर्ष नहीं होना चाहिए। यह बयान चीन के विदेश मंत्रालय द्वारा स्वागत किया गया, जो इस बात से सहमत था कि द्विपक्षीय रिश्तों को स्थिर रखना चाहिए।
हालांकि, पाकिस्तान के संदर्भ में मोदी की भाषा बिल्कुल अलग थी। पाकिस्तान के साथ रिश्तों में बढ़ते तनाव को देखते हुए, मोदी ने पाकिस्तान को शांति के प्रति अपनी कोशिशों के विफल होने का जिम्मेदार ठहराया। यह अंतर दोनों देशों के प्रति भारत की कूटनीतिक नीति के भिन्न दृष्टिकोण को दर्शाता है। चीन के साथ भारत ने एक रणनीतिक मार्गदर्शन की ओर कदम बढ़ाया है, जबकि पाकिस्तान के साथ भारत का दृष्टिकोण और कड़ा होता जा रहा है।
भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में मौजूद कूटनीतिक गतिरोध ने दोनों देशों के बीच विश्वास की कमी को और बढ़ा दिया है। प्रधानमंत्री मोदी की हालिया टिप्पणी ने यह स्पष्ट किया है कि भारत पाकिस्तान से संबंधों में गंभीर बदलाव चाहता है, लेकिन इस बदलाव के लिए पाकिस्तान को अपनी नीतियों में बदलाव लाना होगा। पाकिस्तान की प्रतिक्रिया ने यह भी साबित किया कि कश्मीर विवाद के बिना दोनों देशों के रिश्ते आगे बढ़ना मुश्किल हैं। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार के लिए जरूरी है कि दोनों पक्ष आपसी विश्वास निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाएं। हालांकि, यह एक लंबी और जटिल प्रक्रिया होगी, जिसमें कूटनीतिक चतुराई, धैर्य और सख्त निर्णय लेने की आवश्यकता होगी। दोनों देशों को यह समझने की आवश्यकता है कि शांति और सहयोग से ही क्षेत्रीय स्थिरता संभव है।