मौजूदा स्थिति का ठीक से मूल्यांकन करके कदम उठाएं निवेशक
देवानंद सिंह
भारतीय शेयर बाजार 2024 के आखिरी महीनों में गंभीर उठापटक का सामना कर रहा था, और 2025 की शुरुआत में यह गिरावट और भी गहरी हो गई है, जो चिंताजनक है। 26 सितंबर 2024 को जब सेंसेक्स ने 85,836 का रिकॉर्ड स्तर छुआ था, तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि यह आंकड़ा कुछ ही महीनों में गिरकर 75,000 के आसपास पहुंच जाएगा। इस गिरावट ने निवेशकों के मनोबल को भी प्रभावित किया है, खासकर रिटेल निवेशकों के मनोबल को, जिनकी बाजार में भागीदारी पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ी है।
भारतीय शेयर बाजार पर मंदी के एक प्रमुख कारण के रूप में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPIs) की बिकवाली को देखा जा रहा है। 2025 के पहले महीने में, FPIs ने 69,000 करोड़ रुपये की बिकवाली की है। जो विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, अब उभरते बाजारों से बाहर निकलने को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसका कारण वैश्विक परिस्थितियों का प्रभाव अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिज़र्व द्वारा ब्याज दरों में संभावित वृद्धि का होना है। यदि, फेडरल रिज़र्व अपनी नीतियों में और कड़ी स्थिति अपनाता है तो निश्चित रूप से, निवेशकों का रुझान और अधिक सुरक्षित और उच्च रिटर्न देने वाले बाजारों की ओर बढ़ेगा, जो भारत के लिए खतरे की घंटी हो सकती है।
हालांकि विदेशी निवेशकों की बिकवाली बाजार को नुकसान पहुंचा रही है, लेकिन घरेलू संस्थागत निवेशक, जैसे कि म्यूचुअल फंड्स ने बाजार को समर्थन देने की कोशिश की है। जनवरी 2025 में घरेलू निवेशकों ने 67,000 करोड़ रुपये की खरीदारी की, जिसने बाजार को कुछ थोड़ी बहुत राहत प्रदान की है, जो यह दर्शाता है कि भारतीय निवेशकों में अभी भी बाजार में निवेश करने की इच्छाशक्ति है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह स्थायी है या यह केवल एक अस्थायी संतुलन है?
दरअसल, बाजार में गिरावट का सबसे ज्यादा असर छोटे और मझौले (मिडकैप और स्मॉलकैप) शेयरों पर पड़ा है। इन शेयरों में 2025 के जनवरी महीने में 3-4% तक की गिरावट देखी गई। इन कंपनियों में निवेश करने वाले रिटेल निवेशक अधिकतर अपनी असुरक्षा की भावना के कारण परेशान हो रहे हैं, क्योंकि ये शेयर ज्यादा अस्थिर होते हैं और उनके दामों में तेजी से बदलाव आ सकता है। जो रिटेल निवेशक पिछले कुछ सालों में मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों में आकर्षक रिटर्न देख चुके थे, अब इन गिरावटों से घबराए हुए हैं।
भारत में आर्थिक स्थितियों में हालिया बदलाव ने भी बाजार को प्रभावित किया है। देश की जीडीपी वृद्धि दर अनुमान में कमी आई है और खाद्य महंगाई दर भी लगातार ऊंची बनी हुई है। कंपनियों के तिमाही नतीजे भी निराशाजनक रहे हैं, जिससे निवेशकों का विश्वास कम हुआ है। जब अर्थव्यवस्था की वृद्धि कमजोर दिखती है और महंगाई बढ़ रही होती है, तो शेयर बाजार में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे समय में निवेशक अपनी पूंजी को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करने की सोचते हैं, जिससे बाजार में और गिरावट आती है।
भारतीय बाजार की नियामक संस्था सेबी ने हाल ही में फ्यूचर एंड ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए न्यूनतम कॉन्ट्रैक्ट साइज को बढ़ाकर 15 लाख रुपए कर दिया है। इसका उद्देश्य रिटेल निवेशकों द्वारा ज्यादा जोखिम भरी और अत्यधिक गतिविधि को नियंत्रित करना है, हालांकि सेबी का यह कदम बाजार में स्थिरता लाने के लिए है, लेकिन इससे रिटेल निवेशकों की गतिविधियों में कमी आ सकती है। इससे छोटी कंपनियों के लिए बाजार की अस्थिरता बढ़ सकती है, क्योंकि छोटी कंपनियों के शेयरों में वायदा कारोबार अधिक होता है।
अब बाजार दो महत्वपूर्ण घटनाओं की ओर देख रहा है, पहला फेडरल रिज़र्व की बैठक और दूसरा भारत का केंद्रीय बजट। 29 जनवरी को फेड रिज़र्व की बैठक में ब्याज दरों पर फैसला किया जाएगा, जो वैश्विक निवेश प्रवाह पर महत्वपूर्ण असर डालेगा। यदि, ब्याज दरें बढ़ती हैं, तो यह उभरते बाजारों से पूंजी बहाव को तेज कर सकता है और भारतीय बाजार को और नुकसान हो सकता है। दूसरी ओर, भारत का केंद्रीय बजट 1 फरवरी को पेश होने वाला है, हालांकि कुछ विश्लेषक इसे एक नॉन-इवेंट मानते हैं, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में बजट से कोई खास असर नहीं पड़ा है, फिर भी यह बाजार के भावनात्मक रुख को प्रभावित कर सकता है।
अब यह सवाल कि रिटेल निवेशक इस गिरावट से घबराएंगे या नहीं, अभी से कहना मुश्किल है। हालांकि, पिछले कुछ सालों में रिटेल निवेशकों की संख्या में वृद्धि हुई है और उन्होंने बाजार में सकारात्मक रूप से भाग लिया है, लेकिन पहली बार वे ऐसे गिरावट को महसूस कर रहे हैं। ऐसे समय में, जब निवेशकों को लगातार घाटे का सामना करना पड़ता है, तो उनमें से कई अपनी निवेश रणनीतियों पर पुनः विचार करने लगते हैं।
पिछले चार सालों में अधिकतर रिटेल निवेशक पहली बार गिरावट देख रहे हैं, इसीलिए यह स्वाभाविक है कि ऐसे समय में वे घबराएं और अपनी पूंजी को सुरक्षित करने की सोचें। लेकिन, यदि वे लंबी अवधि के निवेश की रणनीति अपनाते हैं, तो उन्हें यह गिरावट एक अवसर के रूप में दिख सकती है।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी केंद्रीय बजट से बाजार की दिशा पर कोई महत्वपूर्ण असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि पिछले 8-10 वर्षों में बजट नॉन-इवेंट बन चुका है और इसके प्रभाव अधिकतर एक-दो दिन तक ही सीमित रहते हैं। हालांकि, रेलवे और इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्रों में कुछ बढ़ोतरी की उम्मीद जताई जा रही है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में होने वाली चुनौतियां इसे प्रभावी बनाने में रुकावट डाल सकती हैं।
विदेशी निवेशकों की बिकवाली, घरेलू आर्थिक स्थितियों की कमजोरी और रिटेल निवेशकों में असुरक्षा की भावना—इन सभी कारकों ने बाजार में मंदी की स्थिति को जिस तरह बढ़ाया हैं, उसे गंभीरता से लेने की जरूरत है। हालांकि, अगर रिटेल निवेशक अपनी रणनीतियों को समझदारी से बनाते हैं और लंबी अवधि के दृष्टिकोण को अपनाते हैं, तो वे इस अस्थिरता से लाभ भी उठा सकते हैं। ऐसे में, यह जरूरी है कि निवेशक अपने निवेश के फैसले जल्दीबाजी में न करें और मौजूदा स्थिति का ठीक से मूल्यांकन करके कदम उठाएं।