सदन में शब्दों का सही से हो चयन
देवानंद सिंह
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के सदन में खुद को हिंदू कहने वाले हर समय ‘हिंसा और नफरत फैलाने’ में लगे हैं संबंधी बयान ने सियासी माहौल को गरम कर दिया है। राहुल के इस बयान के बाद देश में नई बहस छिड़ गई है। बीजेपी के नेता राहुल से देश से माफी मांगने की मांग कर रहे हैं। पीएम मोदी से लेकर अमित शाह और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक ने इस पर कड़ा विरोध जाहिर किया है।
प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान भी सभापति ने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को नसीहत दी है लोकसभा अध्यक्ष ने साफ लहजों में कहा आपका आचरण संसदीय परंपरा के अनुरूप नहीं है आप गरिमा तोड़ना चाहते हैं
योगी आदित्यनाथ ने राहुल गांधी पर ‘भारत माता की आत्मा को लहूलुहान’ करने का आरोप लगाते हुए उनसे ‘विश्व के करोड़ों हिंदुओं से माफी’ की मांग की। योगी ने हिंदुओं को सहिष्णुता और उदारता का पर्याय बताया तथा कांग्रेस पर “मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति में डूबे होने’ का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, हिंदू भारत की मूल आत्मा है। हिंदू सहिष्णुता, उदारता और कृतज्ञता का पर्याय है। गर्व है कि हम हिंदू हैं।” सदन में भी राहुल के इस बयान पर पूरी सरकार ने प्रतिकार किया। प्रधानमंत्री से लेकर कई मंत्री राहुल के बयान का विरोध करने अपनी सीट से खड़े हुए। राहुल गांधी के भाषण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो बार खड़े हुए और हस्तक्षेप किया, इससे पहले संभवत: ऐसा कभी नहीं देखा गया था कि कोई सांसद बोल रहा हो और इस दौरान पीएम मोदी ने अपनी सीट से खड़ा होकर कुछ कहा हो।
राहुल गांधी के भाषण के दौरान केंद्र सरकार के पांच मंत्रियों ने भी अपनी सीट से खड़े होकर विरोध जताया।
राहुल गांधी के भाषण के कुछ हिस्सों को संसद की कार्यवाही से भी हटाया गया।
जिस तरह सदन में राहुल गांधी पेश आए, उससे यह संकेत मिलता है कि अब विपक्ष लोकसभा में चुप नहीं बैठेगा। राहुल अब फ्रंटफुट पर ही खेलेंगे, जिस तरह से राहुल ने बीजेपी पर हमला किया, प्रधानमंत्री बहुत ज़्यादा भड़क गए। ऐसा पहले नहीं हुआ था। तीन बड़े नेता राहुल गांधी को जवाब देने के लिए खड़े हो गए। यह अच्छा संकेत भी कहा जा सकता है, क्योंकि किसी ने मोदी की कार्यशैली के विरोध में ऐसा किया। इससे पहले जिसने इस तरह का विरोध किया, वो अटल बिहारी वाजपेयी थे, जिन्होंने मोदी को राजधर्म सिखाने की कोशिश की थी। राहुल का बीजेपी के नाम पर हिंदू समाज पर टिप्पणी करना उचित नहीं था, लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि सदन में विपक्ष के जिस तरह के तेवर दिख रहे हैं, वह अपने-आप में महत्वपूर्ण है। निश्चित ही, यह विपक्ष के लिए अच्छा संकेत है, जिस राहुल गांधी को बीजेपी पहले पप्पू पप्पू कहकर संबोधित करती थी, अब वह फ्रंटफुट पर ही लड़ रहे हैं।
लेकिन, राहुल गांधी को अपने शब्द सावधानी पूर्वक चुनने चाहिए। इस बार के चुनाव नतीजे को देखें तो लोग समझने लगे हैं कि ये लोग किस तरह धर्म का इस्तेमाल राजनीति के लिए करते हैं, पर राहुल गांधी को सोच समझकर पेश आना चाहिए, ताकि उनको गलत समझे जाने की संभावनाएं ना रहें। कांग्रेस को बीजेपी से मुकाबला करना है तो उनको आगे आकर ही लड़ना होगा। पर जो शब्दों का इस्तेमाल करें, वो तैयारी के साथ करें।
दूसरा, विपक्ष की इस आक्रामकता का बीजेपी तोड़ निकालने की कोशिश करेगी, पर राहुल के भाषण ने दिखा दिया है कि जब तक बीजेपी सत्ता में है, तब तक विपक्ष का क्या रुख़ रहने वाला है, लेकिन मुद्दों को लेकर सावधानी बरतने की जरूरत है।
सदन के सदस्यों को यह समझना होगा कि देश की जनता ने सांसदों को अपनी समस्याओं के हल के लिए संसद भेजा है, लेकिन जिस तरह सांसद अपने स्वार्थपूर्ण मुद्दों पर बहस कर समय जाया कर रहे हैं, वह बिल्कुल भी सही नहीं है। हर दिन संसद की कार्यवाही के दौरान करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। ऐसे में, बेफिजूल मुद्दों के बजाय जनता के मुद्दों पर बहस हो।