कांग्रेस के लिए चुनौतियों से भरा है आगे का रास्ता
देवानंद सिंह
देश में 215 सीटों पर कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला और कांग्रेस की कार्य समिति की बैठक में आला नेताओं का झलकता आत्मविश्वास कांग्रेस के लिए खुशी के पल थे लेकिन इसके आगे की चुनौती राहुल गांधी समझ रहे होंगे लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से कांग्रेस में एक अलग तरह का आत्मविश्वास दिख रहा है, जो स्वाभाविक है। हालांकि बड़ा सवाल आज भी यही है कि इससे आगे की उसकी यात्रा कैसी होगी और इस सवाल का जवाब अब भी कई चुनौतियों से घिरा नजर आ रहा है।
अगर सहयोगी दलों की जिद के चलते महाराष्ट्र की सांगली और बिहार की पूर्णिया सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़ने को मजबूर हुए विशाल पाटिल और पप्पू यादव की जीत को जोड़ लिया जाए तो कांग्रेस की सीट संख्या 101 पर पहुंच जाती है। और कांग्रेस को जोड़ भी लेना जिस तरह से पप्पू यादव ने कहा मैं खांटी कांग्रेसी हूं
यह चुनाव कांग्रेस के लिए ऐसा नतीजा लाया है, जिसमें यह तय करना मुश्किल है कि ग्लास आधा भरा है या आधा खाली है।
कांग्रेस के लिए यह खुशी की बात हो सकती है कि विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A. खुद बहुमत के करीब न पहुंचकर भी कम से कम बीजेपी को बहुमत से दूर रखने में कामयाब हो गया। इस लिहाज से खुद कम सीटों पर लड़ने और संविधान की रक्षा के नारे पर सबसे ज्यादा जोर देने की उसकी रणनीति काम कर गई। लेकिन बतौर राजनीतिक दल उसे उन क्षेत्रों पर ध्यान देना ही होगा जहां उसका संगठनात्मक ढांचा लगातार कमजोर होता रहा है।
महाराष्ट्र की राजनीति पिछले पांच वर्षों में जिस तरह की उथल-पुथल और घालमेल से गुजरी, उसमें कांग्रेस का सबसे ज्यादा सांसदों वाली पार्टी के रूप में उभरना निश्चित रूप से काफी मायने रखता है। झारखंड में भी आशा के अनुरूप परिणाम दिखे हैं आगे की राजनीति के लिए कांग्रेस को आक्रामकता के साथ ठोस रणनीति पर काम करने की आवश्यकता है भ्रष्टाचार के मुद्दे पर झारखंड में कांग्रेस की लोकसभा चुनाव के दौरान ही आलोचनाओं का सामना करना पड़ा और लगातार कांग्रेस प्रधानमंत्री के निशाने पर रही
झारखंड व महाराष्ट्र में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं जाहिर है भाजपा आक्रामक भी होगी क्योंकि भाजपा का मनोबल बढ़ा हुआ है और इस परिस्थिति में कांग्रेस को झारखंड के साथ महाराष्ट्र को साधने की चुनौती भी होगी
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की रणनीति यूपी में रायबरेली से राहुल गांधी को और अमेठी से गांधी परिवार के विश्वासपात्र के एल शर्मा को खड़ा करने की बात हो या अखिलेश को अधिक से अधिक स्पेस मुहैया कराने की, ये सब कारगर साबित हुए। जातीय जनगणना मुद्दे को उठना भी कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हुआ उत्तर भारत के एक बड़े तबके में कांग्रेस को लेकर उम्मीद जगा रहा है कांग्रेस को आने वाले दिनों में अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा के साथ आक्रामकता और गरिमा दोनों को ध्यान में रखते हुए रणनीति बनानी होगी तभी सफलता मिलेगी और सीधा मुकाबला वाला सीटों पर अभी से एक रणनीति के तहत संगठनात्मक ढांचा को बचाए रखना बड़ी चुनौती होगी