विधानसभा चुनाव से पहले बदलती सियासत के मायने
देवानंद सिंह
झारखंड विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही राज्य की राजनीति गरमा गई है। पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के बीजेपी में शामिल होने की चर्चाओं के बाद सियासी पारा झारखंड से लेकर राजधानी दिल्ली तक गरम हो गया है। यह लाजिमी भी है, एक तो विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और जेएमएम के बड़े नेता और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन राज्य की एक दर्जन से अधिक आदिवासी बाहुल्य विधानसभा क्षेत्रों में अच्छी-खासी पैठ रखते हैं, जो जेएमएम के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा सकता है। अगर, चंपाई सोरेन बीजेपी का दामन थाम लेते हैं तो निश्चित ही यह घटनाक्रम झारखंड की राजनीति के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगा, क्योंकि इससे राज्य की राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं। चुनाव नजदीक होने के कारण यह घटनाक्रम और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। देखना होगा कि आने वाले दिनों में क्या होता है और चंपाई सोरेन क्या फैसला लेते हैं। हालाकि खबर लिखे जाने तक सूचना है कि कोलकाता के रास्ते वे जमशेदपुर आ रहे हैं तथा कहा दिल्ली में किसी भाजपा नेता से मुलाक़ात नहीं हुई। मैं तो अपने निजी काम से दिल्ली आया था।
जब चंपई सोरेन से उनके ट्वीट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मुझे ट्वीट करना नहीं आता, उसके लिए लड़का रखे हुए हैं। हां, अपमान हुआ था, लेकिन वो दर्द मेरा निजी दर्द है। कभी किसी विधायक को पार्टी तोड़ने को नहीं कहा। ऐसा करने की मैं सोच भी नहीं सकता।
इसके साथ ही चंपई सोरेन ने कहा कि शिबू सोरेन मेरे लिए भगवान् से बढ़कर हैं। उनके बारे में किसी के मुख से ग़लत नहीं सुन सकता। इधर, रांची में झामुमो विधायकों का CM आवास आना शुरू हो गया है।
इनसबके के बीच बड़ा सवाल है कि क्या चंपई सोरेन वाकई बीजेपी में शामिल होंगे या फिर यह सिर्फ अफवाह है? इन सवालों के जवाब आने वाले कुछ ही दिनों में मिल जाएगा, लेकिन एक्स पर लिखते हुए जिस तरह खुद चंपाई सोरेन ने अपनी मायूसी के कारण बताएं हैं, उससे अब इसमें कोई शक नहीं कि अब उनकी जेजएमएम से राह जुदा होने वाली है। उनका बीजेपी का दामन थामना जेएमएम के लिए बहुत बड़ा झटका होगा और बीजेपी की राह आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में आसान हो जाएगी, जिसको लेकर वह चिंतित भी थी।
यह बात बीजेपी अच्छी तरह जानती है कि पोटका, घाटशिला, बहरागोड़ा और ईचागढ़ जैसी सीटों पर विधानसभा चुनावों में दस से बीस हजार तक के अंतर से जीत हासिल होती रही है। ऐसे में, चंपाई के बीजेपी में शामिल होने से सरायकेला की तीन, पश्चिमी सिंहभूम की पांच और पूर्वी सिंहभूम की छह सीटों सहित कुल 14 विधानसभा सीटों के समीकरण बदल सकते हैं
क्योंकि इन सभी क्षेत्रों में के साथ ही मुख्य रूप से चंपई की राजनगर में जबरदस्त पकड़ है। यहां तक कि आदित्यपुर, जो बीजेपी का गढ़ माना जाता है, वहां भी चंपई हमेशा जीत दर्ज करते रहे हैं। ऐसे में, चंपई के आने से कोल्हान में झामुमो को थोड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
फिलहाल, कोल्हान में 11 विधायक झामुमो के हैं, जबकि कांग्रेस से मंत्री बन्ना गुप्ता और जमशेदपुर पूर्वी से बीजेपी के सरयू राय विधायक हैं। चंपाई की आदिवासी समुदाय के अलावा युवा मतदाताओं पर अच्छी पकड़ मानी जाती है। इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है, इसीलिए बीजेपी हर हाल में चाहेगी कि चंपई सोरेन उसके पाले में आ जाए और चंपई ने भी वो कारण साफ कर दिए हैं कि वह रास्ता बदलने को क्यों मजबूर हैं, क्योंकि चंपई कम से कम विधानसभा चुनाव तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहना चाहते थे।
जेल से बाहर आने के बाद जिस तरह हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, उसके बाद से ही सियासी गलियारों में इस तरह के सवाल तैरने लगे थे, लेकिन ये उम्मीद किसी को नहीं थी कि चंपई पाला भी बदल सकते हैं।
हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने के बाद विधानसभा चुनावों में सकारात्मक असर देखने के कयास तो लगाए जा रहे थे, लेकिन यह सवाल भी तेजी से उठ रहा थे कि हेमंत सोरेन को जेल से बाहर आने के बाद मुख्यमंत्री बनने की इतनी जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए थी। चुनाव तक उन्हें चंपाई सोरेन को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहने देना चाहिए था, क्योंकि इसका विधानसभा चुनावों में उन क्षेत्रों में असर पड़ने की संभावना रहेगी, जिन क्षेत्रों में चंपाई सोरेन का अच्छा-खासा वर्चस्व है। दरअसल, झारखंड राज्य पांच प्रशासनिक क्षेत्रों में बंटा है, जिसमें दक्षिण छोटानागपुर, उत्तर छोटानागपुर, संथाल परगना, पलामू और कोल्हान प्रशासनिक क्षेत्र शामिल हैं।
चर्चा है कि चंपाई सोरेन के प्रति लोगों की सहानुभूति न बढ़े, इसके लिए उनके ख़िलाफ़ मीडिया में नैरेटिव चलाया गया था
जबकि सच्चाई है कि चंपई के इर्द-गिर्द घूमने वाले ने कम समय में ही चंपई को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया था रही बात सोशल मीडिया एक्स की तो चंपई सही मायने में नहीं चलाते हैं
चर्चा है कि चंपाई सोरेन के प्रेस सलाहकार चंचल व पारिवारिक सदस्य टेंडर सेटिंग जैसी चीज़ों में संलिप्त थे, जिसके कारण पार्टी की छवि ख़राब हो रही थी, लेकिन जिस राजनीतिक सुचिता का हवाला देकर इस फ़ैसले के बचाव की कोशिश की जा रही थी।
चंपाई सोरेन चुनाव तक मुख्यमंत्री बने रहते और हेमंत सोरेन कैंपेनिंग संभालते, संगठन को मज़बूत करते तो इससे उनकी पार्टी को अच्छा फ़ायदा होता, लेकिन हेमंत सोरेन को यह डर रहा होगा कि चंपाई सोरेन के मुख्यमंत्री रहते ही महागठबंधन अगर चुनाव लड़ता है और जीत जाता है तो चंपाई सोरेन भी अपनी दावेदारी पेश कर सकते थे?
चंपाई सोरेन ख़ुद अपने इस्तीफ़े के लिए तैयार नहीं थे। यही कारण भी था कि दो जुलाई को मुख्यमंत्री आवास पर बुलाई गई विधायक दल की बैठक में चंपई सोरेन थोड़े भावुक हो गए थे। उनका कहना था कि चुनाव से दो महीने पहले इस्तीफ़ा देने से लोगों के बीच ग़लत संदेश जाएगा। चंपाई सोरेन मीटिंग ख़त्म होने से पहले ही उठकर चले गए थे, हालांकि उन्होंने जाने से पहले विधायकों को आश्वस्त कर दिया था कि वो इस्तीफ़ा दे देंगे, लेकिन उनकी तब की नाराजगी अब जेएमएम के लिए मुसीबत बनने वाली है। जेएमएम चंपई के भरोसे राज्य की अधिकांश सीटों पर मजबूत स्थिति में रहती इसकी गारंटी तब भी नहीं थी क्योंकि खुद चंपई कैसे जीतते हैं यह जग जाहिर है
इन सबके बीच चंपई की बीजेपी में डगर आसान होगी, इसकी भी गारंटी कम ही दिखती है, क्योंकि झारखंड के साथ साथ पूर्वी सिंहभूम में पहले से ही बीजेपी में गुटबाजी चरम पर है। ऐसे में, चंपई का आना पार्टी के अंदर एक नया समीकरण खड़ा करेगा। बीजेपी के कई नेता चंपई के आने से अपनी जगह को लेकर चिंतित रहेंगे। लिहाजा, यह देखना काफी महत्वपूर्ण होगा कि चंपई कब बीजेपी का दामन थामते हैं और उनके बीजेपी का दामन थामने के बाद राज्य की सियासत किस करवट बैठती है या फिर चंपई सोरेन नई पार्टी बनकर झारखंड मुक्ति मोर्चा को जमीन धरने का काम करते हुए महामाहिम की कुर्सी तक पहुंचते हुए बेटा के लिए जमीन तैयार करते हैं आने वाले दिनों में झारखंड की राजनीतिक दिलचस्प होगी