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    Home » आर्ट एवं कल्चर रिपोर्टिंग पर तीन दिवसीय वर्कशॉप
    Breaking News साहित्य

    आर्ट एवं कल्चर रिपोर्टिंग पर तीन दिवसीय वर्कशॉप

    News DeskBy News DeskFebruary 10, 2023No Comments3 Mins Read
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    आर्ट एवं कल्चर रिपोर्टिंग पर तीन दिवसीय वर्कशॉप

    नई दिल्ली, 10 फरवरी, शुक्रवार।
    इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के मीडिया सेंटर और कलानिधि प्रभाग ने 10 से 12 फरवरी तक कला एवं संस्कृति रिपोर्टिंग पर तीन दिवसीय वर्कशॉप का आयोजन किया है। इसका उद्घाटन प्रसिद्ध नृत्यांगना, लेखक और संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष डॉ. संध्या पुरेचा और आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने किया। कला के विभिन्न आयामों की रिपोर्टिंग बेहतर तरीके से कैसे की जाए, इसकी समझ और दृष्टि प्रदान करना इस वर्कशॉप का मुख्य उद्देश्य है। इस तीन दिवसीय वर्कशॉप में कुल 12 सत्र हैं, जिनमें वरिष्ठ कवि व कला समीक्षक श्री प्रयाग शुक्ल, वरिष्ठ लेखक व पत्रकार श्री विनोद भारद्वाज, वरिष्ठ पत्रकार व पांचजन्य साप्ताहिक के संपादक श्री हितेश शंकर, वरिष्ठ कला समीक्षक श्री अनिल गोयल कला व संस्कृति रिपोर्टिंग के विभिन्न पक्षों पर अपने विचार रखेंगे।

    वर्कशॉप के पहले दिन उद्घाटन सत्र में डॉ. संध्या पुरेचा ने कहा कि कला समीक्षा भारत के लिए नई चीज नहीं है। कला समीक्षा की परम्परा भारत में बहुत पुरानी है। भरत मुनि के नाट्यशास्त्र में कहा गया है कि पहला नाटक भगवान ब्रह्मा के सामने प्रस्तुत किया गया था “अमृत मंथनम्”। इसके बाद इसे भगवान शिव के समक्ष प्रस्तुत किया गया। शिव ने इसे देखने के बाद कहा कि मुझे अपने करण और अंगहार स्मरण हैं। इसे नाटक में शामिल किया जाना चाहिए। वह सर्वश्रेष्ठ समीक्षक हैं, गुरु हैं। उन्होंने बताया कि ‘करण’ और ‘अंगहार’ किस प्रकार नाटक में शामिल किए जाने चाहिए।

    इस सत्र में डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि जब आप रिपोर्टिंग करने जाएं, तो उस विधा के बारे में पूर्व तैयारी करके जाएं। भले ही उस कला के बारे में आपको जानकारी न हो, लेकिन उसकी थोड़ी बहुत तैयारी करके जाएंगे, तो रिपोर्टिंग में आसानी होगी। बुनियादी जानकारी जरूरी है। अगर आप नाटक की रिपोर्टिंग कर रहे हैं, तो पहले इसकी जानकारी हासिल कर लें कि नाटक के कितने प्रकार होते हैं, थियेटर के कितने प्रकार होते हैं, अभिनय के क्या आयाम होते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि भरतमुनि ने “नाट्शास्त्र” में नाटक के अंगों के बारे में तो बताया ही है, यह भी बताया है कि

     

    ऑडिटोरियम कैसा होना चाहिए, उसमें फायर एग्जिट कहां होना चाहिए। डॉ. जोशी ने कहा कि कला की रिपोर्टिंग करते समय शिष्टाचार का ध्यान भी रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह पढ़ाने-सिखाने की वर्कशॉप नहीं है, बल्कि कला व संस्कृति रिपोर्टिंग के विभिन्न आयामों की रिपोर्टिंग के साथ मिलकर समझने की वर्कशॉप है।

     

    इस सत्र में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के कलानिधि प्रभाग के अध्यक्ष और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) के निदेशक प्रो. रमेश चंद्र गौर ने वर्कशॉप के उद्देश्य और कला व संस्कृति रिपोर्टिंग के परिदृश्य से अवगत कराया। दिन के दूसरे सत्र में “भारतीय ज्ञान परम्पराः कला एंव संस्कृति” पर जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय के “स्कूल ऑफ संस्कृत एंड इंडिक स्टडीज” के डीन डॉ. संतोष शुक्ला ने अपने विचार रखे। तीसरे सत्र में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी व लेखक, कला स्तंभकारर तथा राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय (एनजीएमए) की सलाहकार श्रीमती सुजाता प्रसाद ने “इम्पॉर्टेंस ऑफ फॉर्म्स एंड कलर्स इन कम्यूनिकेटिंग इंडियन कल्चर” पर अपने विचार रखे। पहले दिन का समापन आईजीएनसीए द्वारा निर्मित शॉर्ट फिल्म “काशी गंगा विश्वसरैया” की स्क्रीनिंग के साथ हुआ। 23 मिनट की इस फिल्म का निर्देशन राधिका चंद्रशेखर ने किया है।

     

    दूसरे दिन, 11 फरवरी को वर्कशॉप की शुरुआत सुबह 10 बजे “कल्हणः कश्मीर का सूर्य” फिल्म की स्क्रीनिंग के साथ होगी।

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