माँ मैं आज लौट कर आया हूँ
कवयित्री सिया झा की कविता
माँ मैं आज लौट कर आया हूँ, ज़िंदा नही ,
टुकड़ो मे आया हु ।
सिर्फ फौजी की नहीं
शहीद का खिताब लेकर आया हूँ ।
माँ, मैं आज तिरंगे से लिपटकर
तेरे चौखट पर आया हु।
जब तेरी आंचल के आंच से खुदके गालों को
सेक ना पाउंगा
जब दुनिया की ठंडक से आखरी बार मैं सहम जाऊँगा।
जब मेरे जले हुए हाथों पर
अब तेरी फूक मलहम न लगाएगी ।
जब मुझे लंगड़ाता देख
तू ख़ुद चलना ना भूल जायेगी ।
जब मेरे सर पे तेरे हाथों के जगह
सफेद कफन फहराया जाएगा ।
माँ,
मुझे पता है तू रोएगी
जब मेरी ये आँखे हमेशा के लिए सोयेगी ।
पर तेरी आसु से
और मेरे खून के हर एक बूँद से
दस और पैदा हो जायेंगे,
गम न करना अगर ये भी लौट न आयेंगे ।
माँ मुझे माफ़ करना,
मैं तेरी बात न रख सका ,
तुझे अकेला छोड़ गया
पर मैं उस माँ को किये वादे को
निभा गया ।
मैं संजात हुआ इस देश से,
इस देश पर मर मिटना मेरा धर्म है,
ये शहादत क्या किसी पुन्य से कम है ।
मैं आज मर कर भी अमर हु
वतन से इतनी इश्क़ जो करता हु ।