त्वरित टिप्पणी :डॉ मनमोहन सिंह की अंत्येष्टि पर सियासत बंद होनी चाहिए
देवानंद सिंह
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की मौत पर पूरा देश गमगीन है, लेकिन जिस तरह इनकी अंत्येष्टि को लेकर सियासत हुई, वह बिल्कुल भी सही नहीं हैं। कांग्रेस ने कहा मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार निगम बोध घाट पर करवा कर सरकार ने उनका अपमान किया और इसके बाद सोशल मीडिया पर जिस तरह से विश्लेषण की बाढ़ आई वह चिंताजनक है खासकर इस बहाने सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ जो नरेटिव सेट किया जा रहा है, वह न केवल एक नेता के निधन के बाद असंवेदनशीलता को प्रकट करता है, बल्कि यह समाज को और भी अधिक खंडित करने की कोशिश करता है। हालांकि सरकार ने इस पर अपना पक्ष भी रख दिया है
सोशल मीडिया आजकल एक शक्तिशाली मंच बन चुका है, जहां पर विचारों का आदान-प्रदान तेजी से होता है। लेकिन यह प्लेटफॉर्म अब तक कई बार नफरत फैलाने, झूठी खबरों और अफवाहों का माध्यम बन चुका है।
डॉ. मनमोहन सिंह की अंत्येष्टि पर जो प्रतिक्रियाएं आईं, उनमें से कई प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा पर आरोप लगाने के रूप में सामने आईं। खासकर, समाधि स्थल को लेकर। यह ठीक नहीं है कि एक सम्मानित नेता की मृत्यु के बाद उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को घेरने का यह समय हो। क्या यह उचित नहीं कि हम उन्हें शांति और सम्मान प्रदान करें, न कि राजनीतिक खेल का हिस्सा बनाए? इसके अलावा, इस तरह की राजनीति केवल जनता के मन में उथल-पुथल और असंतोष पैदा करती है, जिससे समाज में और अधिक बंटवारा होता है। निश्चितरूप से, सियासत के नाम पर जो आक्रामक नरेटिव चलाए जा रहे हैं, वे देश के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। जब देश को एकजुटता और सहिष्णुता की आवश्यकता होती है, तब इस तरह की राजनीति केवल समाज को विभाजित करती है।
सभी को यह समझना चाहिए कि मृत्यु के समय सियासत का होना, चाहे वह किसी भी पार्टी या नेता के खिलाफ हो, यह समाज के प्रति एक संवेदनहीनता को दर्शाता है। हमें राजनीति से ऊपर उठकर, उन लोगों को श्रद्धांजलि देनी चाहिए, जिन्होंने देश के लिए अपने जीवन को समर्पित किया। डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद की राजनीति से यह स्पष्ट हो गया है कि आज की सियासत व्यक्तिगत हितों, आरोप-प्रत्यारोप और शक्ति संघर्ष तक सीमित हो चुकी है, जो लोकतंत्र के लिए बिल्कुल भी शुभ संकेत नहीं है।