मंत्रालयों के विभाजन में दिखा तालमेल
देवानंद सिंह
प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौटी बीजेपी सरकार ने शपथ ग्रहण कर मंत्रालयों का बंटवारा भी कर दिया है। मंत्रालयों के विभाजन को लेकर पीएम मोदी ने बेहतर तालमेल बिठाने की कोशिश की है। खासकर, जिस तरह से अपनी कैबिनेट में लगभग हर राज्य को स्थान देने की कोशिश की गई है, वह कहीं-न-कहीं संबंधित राज्य व वहां के सहयोगी दलों को साधने का बेहतर प्रयास है। चार बड़े मंत्रालयों में शामिल गृह, रक्षा, वित्त और विदेश मंत्रालय को क्रमश: अमित शाह, राजनाथ सिह, निर्मला सीतारमण और एस. जयशंकर को दिया गया है। इस क्रम में दो चीजें जो चौंकाती हैं, उनमें राजनाथ सिंह का पिछला गृह मंत्रालय बदलकर अमित शाह को दिया जाना। ऐसे में, कंफ्यूजन यह है कि आखिरकार सरकार में नंबर-दो की हैसियत किसके पास होगी ? दूसरी जो चीज चौंकाती है, वह एस. जयशंकर को विदेश मंत्री बनाया जाना। बशर्ते, यह सरकार की बेहतर रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
वहीं, दूसरी तरफ पिछली एनडीए सरकार के तमाम मंत्रियों को इस बार भी रखा गया है। उनके पोर्टफोलियो या तो पहले की तरह ही रहे हैं या फिर उन्हें उन मंत्रालयों के अलावा कुछ के अतिरिक्त प्रभार दिए गए हैं। नितिन गडकरी को पिछली बार की ही तरह सड़क परिवहन मंत्री बनाया गया है और उन्हें सूक्ष्म, लघु और मध्य उद्योग का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। मुख्तार अब्बास नकवी को भी पिछली बार की ही तरह अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री बनाया गया है। राज्य मंत्री हरदीप पुरी के भी शहरी मामलों के मंत्रालय को रीटेन किया गया है। साथ में, उन्हें नागिरक उड्डयन के साथ-साथ वाणिज्य और उद्योग का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है।
एक साथ वाजपेई सरकार में बने दो राज्य उत्तराखंड और झारखंड को भी कैबिनेट में जगह देने से साफ जाहिर होता है कि पीएम मोदी दोनों राज्यों का तरजीह देते हैं। इसका कारण भी है, क्योंकि दोनों ही राज्यों को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। उत्तराखंड से जहां रमेश पोखरियाल को महत्वपूर्ण मानव संसाधन मंत्रालय दिया गया है, वहीं झारखंड के दिग्गज नेता अर्जुन मुंडा को आदिवासी मामलों का मंत्रालय दिया गया है। यह इसीलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि मुंडा एक आदिवासी चेहरा हैं, जिनकी आदिवासी समाज में राष्ट्रीय स्तर पर अच्छी पैठ है। उनको मंत्रालय मिलने से इस क्षेञ में तमाम सुधारों की उम्मीद बढ़ जाती है। उधर,
पूर्व विदेश सचिव सुब्रमण्यम जयशंकर को विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी देना साफ तौर पर दिखाता है कि पीएम मोदी ने विशेषज्ञ को वरीयता दी है। यहां बता दें कि पिछले जनवरी को रिटायर हुए जयशंकर ने भारत-अमेरिका सिविल न्यूक्लियर डील को पास कराने में अहम भूमिका निभाई थी। इसी तरह निर्मला सीतारमण ने पिछली सरकार में जिस तरह बतौर रक्षा मंत्री राफेल डील को संसद से लेकर बाहर तक सरकार का मजबूती से बचाव किया, उसकी उनके भारत की पहली फुल-टाइम महिला वित्त मंत्री बनने में अहम भूमिका रही।
पिछली बार की तरह बीजेपी ने इस बार भी न सिर्फ अकेले दम पर बहुमत हासिल किया है बल्कि अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के रेकॉर्ड में भी सुधार किया है। इसके बावजूद मोदी ने सहयोगी दलों को भी कुछ मंत्रालय दिए हैं। कुछ मंत्रालयों को क्लब करते हुए किसी एक मंत्री के तहत कर दिया गया है। उदाहरण के तौर पर, पीयूष गोयल के पास रेलवे के साथ-साथ वाणिज्य और उद्योग की भी कमान है। ऐसा करने की वजह से मोदी जब आगे कैबिनेट का विस्तार करेंगे तो इन अतिरिक्त मंत्रालयों को सहयोगी दलों को आवंटित कर सकेंगे। हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, वहीं दिल्ली और बिहार में अगले साल चुनाव हैं। लिहाजा, कैबिनेट विस्तार लाजिमी है और मजबूरी भी। एनडीए की प्रमुख सहयोगी जेडीयू ने कैबिनेट में यह कहकर शामिल होने से इनकार कर दिया कि उसे सांकेतिक प्रतिनिधित्व में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसी तरह शिवसेना ने भी और मंत्रालयों की मांग की थी, लेकिन उसे सिर्फ एक कैबिनेट मंत्री मिला। ऐसे में, कैबिनेट विस्तार में सहयोगी दलों को साधा जा सकेगा।
यह बात भी दीगार है कि मोदी सरकार में सभी जातियों को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश हुई है। सबसे ज्यादा 33 मंत्री अपरकास्ट से बनाए गए हैं। पिछली बार यह संख्या 2० थी। इसी तरह 12 मंत्री ओबीसी समुदाय से हैं। पिछली बार 13 थे। दलितों को पिछली बार के मुकाबले ज्यादा प्रतिनिधित्व दिया गया है। पिछली बार 3 दलित मंत्री बने थे तो इस बार 6 मंत्री बने हैं। इसके अलावा आदिवासी समुदाय से 4 लोगों को मंत्री बनाया गया है। पिछली बार यह संख्या 6 थी। पिछली सरकार में मंत्री रहे कई सांसदों को इस बार मंत्री नहीं बनाया गया है। इनमें मुख्य रूप मेनका गांधी, राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़, विजय गोयल, डा. महेश शर्मा सहित कई अन्य नेता शामिल हैं। देखने वाली बात यह है कि क्या सरकार आने वाले दिनों में इन्हें भी मंत्रीमंडल में शामिल करेगी या फिर सांसद के तौर पर ही काम करना पड़ेगा।