रहमतों, बरकतों व इबादतों का महीना है रमजान :जैनुल अंसारी
संवाददाता
जामताड़ा: पवित्र माह रमजान के पावन अवसर पर रोजे की महत्त्व व विशेषताओं का वर्णन करते हुए झारखंड प्रदेश मोमिन कॉन्फ्रेंस के प्रदेश महासचिव जैनुल अंसारी ने कहा कि रोजा उन पांच बुनियादी अरकानों में से एक है जिसे व्यवहार में लाने वाला ही सच्चा मुसलमान है , 30 दिवसीय रोजा तीन अशरों में विभाजित होता है। पहला दस दिन का अशरा रहमतों ,दूसरा दस दिनों का बरकतों व तीसरा दस दिनों का अशरा जहन्नम की आग से निजात का होता है।रमज़ान में इबादतो का सवाब ज़्यादा मिलता है,रोजे से संयम सदाचार की भावना जागृत होती है| रोजे से चारित्रिक नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास व हृदय एवं आत्मा का शुद्धीकरण भी होता है। रोजे में एक नेकी 70 नेकियों के बराबर होती है।जैनुल अंसारी ने आगे कहा कि इस पवित्र माह का महत्व इसलिए भी है कि इसी महीने में कुरान ए पाक नाजिल हुई जिससे हमें एक सर्वोत्तम मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है कि उनके द्वारा हमें कुरान ए पाक जैसी अज़ीम किताब मिली। हमारे पास एक ऐसी किताब है हर सवाल का जिसमे जवाब है| कुरान हमें सर्वोत्तम मार्ग दिखाता है जिससे हमें एक अच्छी जिंदगी जीने का अवसर प्राप्त हुआ।पवित्र माह रमजान में पांच वक्त की नमाज के अतिरिक्त नफल नमाज़,तिलावत ए कलाम ए पाक एवं अन्य इबादतों के माध्यम से अल्लाह को राजी करने में बंदे मशगूल रहते हैं ।जैनुल ने कहा कि रोज़ा तकवा यानी परहेजगारी एवं अल्लाह के हुक्म का पालन करना है।
तीस दिवसीय रोज़ा असल में पूरी ज़िन्दगी के लिए एक प्रशिक्षण मात्र है।
जैनुल अंसारी ने कहा की आखरी 10 दिन के अशरे में इबादतों के क्रम में शबे कद्र व एतकाफ के जरिए अल्लाह की इबादत करते हैं। एतकाफ में क्षेत्र या बस्ती,इलाके का एक भी व्यक्ति शामिल हुआ तो पूरे इलाके की शमूलियत हो जाती है। रोज़ा दया, संयम, सदाचार एवं अनुशासन का प्रतीक है |