अवैध बालू माफियाओं की जंग में पुलिस बना मूकदर्शक, कभी भी भड़क सकता है गैंगवॉर!
राष्ट्र संवाद संवाददाता
सरायकेला-खरसावां: ईचागढ़ क्षेत्र में अवैध बालू खनन माफिया अब गैंगवॉर की राह पर है ?, जहां पुलिस प्रशासन की संदिग्ध भूमिका और सफेदपोश नेताओं, कथित पत्रकारों की मिलीभगत, बालू उठाव क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों की चुप्पी ने हालात और भी गंभीर बना दिए हैं। सबसे दिलचस्प ईचागढ़ विधान सभा क्षेत्र भाजपा आजसू गठबंधन नेताओं की स्थिति तमाशाई की बन गई है. यहां बालू माफियाओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई लगातार तेज हो रही है, जिससे कभी भी खून-खराबा और जानलेवा गैंगवॉर भड़क सकता है।
*पुलिस की मिलीभगत से फल-फूल रहा अवैध कारोबार*
मुख्य मंत्री हेमंत सोरेन,पुलिस हैडक्वाटर डी .जी.पी .द्वारा जारी तमाम निर्देशों के बावजूद चांडिल और ईचागढ़ क्षेत्र में बालू माफिया बेखौफ होकर काले कारोबार को अंजाम दे रहे हैं। अवैध खनन से प्रतिदिन सरकार को लाखों रुपये के राजस्व की चपत लग रही है, लेकिन स्थानीय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी इस लूट पर आंखें मूंदे हुए हैं। सूत्रों के मुताबिक, 170 लगभग रोजाना बालू वाहन चलते है जिसकी सभी थाना की एकमुश्त पासिंग इंट्री प्रति वाहन 5 से 7 हजार रुपये तय वसूली की सूचना मिल रही है, जिसके चलते अवैध बालू माफिया बेलगाम हो गए हैं। अब सैया भए कोतवाल डर कहे का.
*बालू के लिए हिंसा, अपहरण और दहशतगर्दी*
बालू खनन से जुड़े अपराध अब सिर्फ चोरी-छिपे कारोबार तक सीमित नहीं रहे, बल्कि अब यह अपराधियों के लिए आतंक फैलाने का जरिया बन चुका है। हाल ही में, 13 मार्च 2025 को ईचागढ़ में बालू विवाद को लेकर एक अपहरण और मारपीट की घटना सामने आई, वहीं 18 मार्च 2025 को सरायकेला में भी इसी तरह का मामला दर्ज किया गया। पुलिस की निष्क्रियता के कारण अपराधी बेखौफ होकर अपना खेल खेल रहे हैं, जिससे आम जनता में आक्रोश बढ़ता जा रहा है।इस संबंध में चांडिल अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी अरविंद बिंद का मोबाइल 9431706532 से संपर्क का प्रयास करने पर बंद पाया गया.
*ब्लैकलिस्टेड कंपनियों को ही बालू की फ्रेंचाइजी!*
सरकार द्वारा अधिकृत जे.एस.एम.डी. बालू घाटों में भी बड़े पैमाने पर गड़बड़झाला हो रहा है। अवैध भंडारण मामले में भरी रकम वसूली हुई फिर भी – हरे लाल महतो इंटरप्राइज , सूर्या इंटरप्राइजेज , नाज इंटरप्राइज, हैंमबंत कुमार आदि इन ब्लैक लिस्टेड संचालकों को बालू कारोबार की फ्रेंचाइजी दी गई, जिससे पूरे सिस्टम पर सवाल उठ रहे हैं। सूत्रों की मानें तो प्रशासन और सफेदपोश नेताओं के गठजोड़ के चलते यह धंधा बदस्तूर जारी है।
*पुलिस की भूमिका पर उठ रहे सवाल, जनता में बढ़ रहा आक्रोश*
पुलिस प्रशासन एक ओर बड़े अपराधियों को पकड़ने के दावे करता है, वहीं बालू माफियाओं पर शिकंजा कसने में उसकी भूमिका संदेहास्पद बनी हुई है। सवाल यह उठता है कि आखिर पुलिस इन माफियाओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने से क्यों हिचक रही है? क्या सच में “बिल्ली ही दूध की रखवाली कर रही है?”
राज्य सरकार और पुलिस विभाग इस अवैध कारोबार पर नकेल कसने के लिए कोई ठोस कदम उठाते हैं या फिर माफियाओं की यह बेलगाम सत्ता यूं ही चलती रहेगी ?