जो श्रेय को अपनाते हैं न केवल अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं, बल्कि समाज और सम्पूर्ण मानवता के लिए भी एक सशक्त योगदान देते हैं
श्रेय वह मार्ग है जो हमें आत्मिक उत्थान और अनन्त सुख की ओर ले जाता है जबकि प्रेय वह है जो तात्कालिक सुख और भौतिक लाभ प्रदान करता है इससे आत्मिक संतोष या स्थायी सुख की प्राप्ति नहीं होती।
श्रेय का अनुसरण करने वाला व्यक्ति अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को पहचानता है
जमशेदपुर: आनन्द मार्ग प्रचारक संघ का तीन दिवसीय प्रथम संभागीय सेमिनार आनंद मार्ग जागृति गदरा में सेमिनार के तीसरे दिन आचार्य नभातीतानंद अवधूत “श्रेय और प्रेय” विषय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि:
“श्रेय और प्रेय ” मानव जीवन के दो प्रमुख पहलू हैं जो हमारे विचार, कार्य और जीवन की दिशा को निर्धारित करते हैं। *श्रेय वह मार्ग है, जो हमें आत्मिक उत्थान और अनन्त सुख की ओर जाता है,* जबकि प्रेय वह है जो तात्कालिक सुख और भौतिक लाभ प्रदान करता है, लेकिन इससे आत्मिक संतोष या स्थायी सुख की प्राप्ति नहीं होती।
*श्रेय का अनुसरण करने वाला व्यक्ति अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को पहचानता है और यात्रा पथ को एक उच्चतर उद्देश्य की दिशा में समर्पित करता है।* वह व्यक्ति उन कार्यों और आचरणों में लीन रहता है जो समाज के भले के लिए होते हैं और जो उसके आत्मिक, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को समृद्ध करते हैं। इसके विपरीत, प्रेय का मार्ग तात्कालिक भोग-विलास की ओर प्रेरित करता है, जो कभी भी स्थायी संतोष नहीं दे सकता, और व्यक्ति को केवल अस्थिरता और भौतिकता के जाल में फंसा देता है।
आचार्य ने यह भी बताया कि हमारे जीवन में चयन हमेशा हमारे हाथ में होता है। अगर हम श्रेय को अपनाते हैं, तो हम न केवल अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं, बल्कि समाज और सम्पूर्ण मानवता के लिए भी एक सशक्त योगदान देते हैं। यही जीवन का सच्चा अर्थ है।
*आध्यात्मिक दृष्टि से, श्रेय का मार्ग सहज और स्वाभाविक होता है,* क्योंकि इसमें आत्म-नियंत्रण, तपस्या और त्याग की आवश्यकता होती है, इसके परिणामस्वरूप मिलता है शांति, संतोष और अनमोल सुख। इसलिए *हमें हमेशा श्रेय के मार्ग को चुनना चाहिए, क्योंकि वही हमारी जीवन यात्रा को सार्थक बनाता है* *और हमें वास्तविक सुख की प्राप्ति कराता है।”*
आचार्य ने कहा कि, *“नैतिक नियमों (यम- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और नियम- शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, और ईश्वर प्रणिधान) का कठोरता से पालन श्रेय जीवन की आधारशिला है;*
*आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि साधन है,*
*दिव्यता की प्राप्ति उपलब्धि है।”*