मीडिया वॉच:सवालों के घेरे में मीडिया की साख……..!
ज़मीं की कैसी वक़ालत हो फिर नहीं चलती
जब आसमाँ से कोई फ़ैसला उतरता हैं
देवानंद सिंह
स्थापना दिवस के 1 दिन के बाद से ही और अस्वस्थ हो गया हूं बिस्तर पर लेटे लेटे 2 दिन की घटनाओं से टीवी के माध्यम से रूबरू हो रहा हूं नहीं चाहते हुए भी मीडिया की भूमिका को देखते हुए एक बार फिर मीडिया वॉच लिखने पर विवश हुआ हूं यूं तो मीडिया वॉच राष्ट्र संवाद में स्थाई कॉलम राकेश जी के द्वारा शुरू किया गया था परंतु कभी कभी मीडिया की भूमिका को देखते हुए राष्ट्र संवाद त्वरित टिप्पणी करने पर विवश होता है उसी कॉलम में इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया की भूमिका पर आज लिखने को विवश हुआ हूं
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म किए जाने के बाद देश में राजनीति भूचाल आया हुआ है। बीजेपी सरकार द्वारा की गई सियासत की कांग्रेस के साथ ही विरोधी पार्टियां भी जमकर आलोचना कर रही हैं, आज संसद के बाहर जिस तरह से पूरा विपक्ष काले लिबास में इसका विरोध कर रहा है वह विपक्ष की एकजुटता को दर्शा रहा है,लेकिन जिस तरह से मीडिया इस मामले में खुलकर कुछ नहीं बोल रहा है, इससे बहुत सवाल खड़े होना लाजिमी है।
इस मामले का सबसे बड़ा दिलचस्प पहलू यह है कि जब राहुल की संसद सदस्यता खत्म की गई और कांग्रेस पूरे देश में सत्याग्रह आंदोलन चला रही है, ठीक उसी मौके पर यूपी के बदमाश अतीक अहमद को अहमादाबाद जेल से प्रयागराज लाने की प्रक्रिया उत्तर-प्रदेश की सरकार द्वारा की गई। जब मीडिया में राहुल का मुद्दा छाया रहना चाहिए थे, ऐसे मौके में अतीक अहमद को अहमदाबाद से प्रयागराज लाने का अवसर केवल राहुल के मुद्दे पर ज्यादा हल्ला न हो, उसको लेकर ही यह सियासत की गई।
खैर, इसे हम सियायत का पहलू समझकर नजरअंदाज भी करते हैं तो ऐसे अवसर पर सबसे बड़ा सवाल देश की मीडिया पर उठता है, क्योंकि उन्होंने अतीक अहमद के मामले के आगे राहुल की संसद सदस्यता खत्म करने के मामले को बिल्कुल ही गौण कर दिया, जबकि राहुल से जुड़ा मामला लोकतंत्र की बहुत बड़ी घटना है।
ऐसे में मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया देश के स्वस्थ लोकतंत्र के लिए बहुत ही चिंताजनक है। वैसे तो, पहले से ही मीडिया पर सवाल खड़े होते हैं और उसे गोदी मीडिया की संज्ञा दी गई, लेकिन निश्चित तौर पर राहुल से जुड़े मुद्दे पर मीडिया का इस तरह का रवैया बहुत ही चिंताजनक है। एक मजबूत लोकतंत्र के लिए मीडिया का स्वतंत्र होना बहुत जरूरी है,
लेकिन जिस तरह से मीडिया मूल मुद्दों से भटककर ध्यान भटकाने वाले मुद्दों पर काम करती है, वह देश के लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा खतरा है। मीडिया का काम है इस सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाना क्या सही मायने में मीडिया अपने भूमिका को निभाने में सक्षम है!
क्या राहुल गांधी की अचानक संसद सदस्य खत्म किए जाने का मुद्दा अतीक अहमद को अहमादाबाद से प्रयागराज ले जाने का समाचार बड़ा था। इस पूरे प्रकरण से ही लगता है कि यह पूरा घटनाक्रम ही राहुल की संसद सदस्यता खत्म किए जाने से मीडिया और लोगों का ध्यान भटकाने के लिए बुना गया।
मीडिया को निष्पक्षता के साथ दोनों ही समाचारों को दिखाना चाहिए था, लेकिन अतीक अहमद की खबर के आगे राहुल से जुड़ी खबर को दबाना किसी भी स्थिति में उचित नहीं माना जा सकता है, मीडिया का जो रवैया देखने को मिल रहा है, निश्चित तौर पर यह चिंता का विषय तो है ही बल्कि मंथन का विषय भी है।