तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई है, वहीं तेलंगाना में कांग्रेस पहली बार सरकार बनाने जा रही है। बीजेपी मध्य प्रदेश में सरकार बचाने में सफल रही और पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को हराकर बीजेपी सत्ता में लौट आई है। वहीं राजस्थान में हर चुनाव में सरकार बदलने का रिवाज बदलना चाह रही कांग्रेस नाकामी हाथ लगी है। उसे सिर्फ तेलंगाना में ही सफलता मिली है। भारत के इस सबसे नए राज्य में बीआरएस (पहले टीआरएस) के अलावा पहली बार किसी और पार्टी की सरकार बनने जा रही है। इन चुनावों को 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनावों का सेमीफाइनल माना जा रहा था, जिनमें जीत हासिल करने और बीजेपी को सत्ता से हटाने के इरादे से 28 विपक्षी दलों ने इंडियन
नेशनल डेवेलपमेंट इन्क्लूसिव एलायंस (इंडिया) नाम से गठबंधन बनाया है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इंडिया के घटक दलों की एक बैठक बुलाई है जो छह दिसंबर को दिल्ली में होगी। हालिया चुनावों के नतीजों के बाद हो रही इस बैठक का महत्व अब और भी बढ़ गया है। सवाल उठ रहे हैं कि इन नतीजों का इस गठबंधन और इसके भविष्य पर क्या असर पड़ेगा। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि नतीजों के बाद इंडिया के घटक दलों ने कांग्रेस के रवैए पर सवाल उठाए हैं। नेशनल कन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्लाह ने कांग्रेस पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने चुनावों के दौरान जो बातें की थीं, वे खोखली साबित हुईं़ उन्होंने गठबंधन की उपेक्षा का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा, छह तारीख को कांग्रेस अध्यक्ष ने इंडिया अलायंस को खाने पर बुलाया है़ चलिए तीन महीने बाद उनको इंडिया एलायंस दोबारा याद आया़ अब देखते हैं, उस पर क्या बात होती है। इसी तरह जेडीयू ने भी कांग्रेस पर तंज कसा़ पार्टी के प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि इन चुनावों में विपक्ष के तौर पर इंडिया गठबंधन कहीं था ही नहीं। उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक तौर पर सोशलिस्ट पार्टियाँ इन राज्यों में थीं, लेकिन कांग्रेस ने कभी इंडिया गठबंधन के अपने दूसरे सहयोगियों से न तो सलाह ली और न ही उनसे राय मांगी। उन्होंने ये भी कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान भोपाल में इंडिया गठबंधन की एक रैली होनी थी, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने ये रैली नहीं
करने का फैसला किया।
इंडिया गठबंधन पहले ही दिन से कई चुनौतियों से जूझ रहा है। जैसे इसके घटक दल कई राज्यों में एक दूसरे के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी हैं और वे एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव भी लड़ते रहे हैं। इसके साथ ही विभिन्न मुद्दों और विषयों पर उनकी राय और स्टैंड भी अलग है। चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करते हुए वरिष्ठ पत्रकार सीमा चिश्ती कहती हैं कि इंडिया गठबंधन और कांग्रेस ने इन चुनावों में एक मौका गँवाया है। उनकी नजर में इन चुनावों में विपक्षी दलों को साथ लेने और एक राजनीतिक बदलाव की पहल की जा सकती थी, जिससे इंडिया गंठबंधन की भावना को मजबूती मिलती। छोटी पार्टियों को अपने साथ लेने से कांग्रेस को जो फायदा मिल सकता था, उसमें उसने चूक की है। गठबंधन बनने से जो राजनीतिक शक्ल बदलती है, वह नहीं बदली. जैसे तेलंगाना में उन्होंने सीपीआई के साथ गठबंधन किया था, लेकिन सीपीएम के साथ नहीं किया था़ तो इस तरह से बाकी जगह भी छोटे दलों को साथ लाने का फायदा वे नहीं ले पाए। जैसे अजीत जोगी की पार्टी (जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़) का वोट बीजेपी को ट्रांसफर हो गया़ इसी तरह राजस्थान में भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के साथ भी गठबंधन किया जा सकता था़ अखिलेश यादव की पार्टी एसपी मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ना चाहती थी तो एक-दो सीटें उन्हें दी जा सकती थी। कुछ सीटें वामदलों को देते तो नई राजनीति ला सकते थे़ लेकिन आप उसी लाइट-हिंदुत्व में पड़ गए़ न आपने हिंदुत्व को चुनौती दी, न ही उस पर खेल पाए़ तो फिर कोई आपको क्यों चुनेगा? तेलंगाना में कांग्रेस को इसलिए फायदा हुआ, क्योंकि वहाँ पर एक क्षेत्रीय आंदोलन था। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अगर छोटे दलों को साथ लिया जाता तो फायदा होता. जैसे अखिलेश की पार्टी (एसपी) को (मध्य प्रदेश में) मौका दिया जाता, तो बिहार और यूपी के स्ट्रक्चर को आगे बढ़ाने और स्वीकार्यता बनाने का अवसर मिलता। लेकिन अभी इसके लिए लंबी लड़ाई की जरूरत पड़ेगी।