सामंजस्य के साथ जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद
देवानंद सिंह
पक्ष और विपक्ष की सियासी रणनीति के बीच आखिरकार, बुधवार को सत्ता पक्ष के उम्मीदवार ओम बिरला लोकसभा अध्यक्ष बन गए हैं। बिरला लगातार दूसरी बार अध्यक्ष बने हैं। सामान्यतया, लोकसभा अध्यक्ष सत्तारूढ़ दल का ही होता है और उपाध्यक्ष विपक्ष का होता है। इस बार भी ऐसा ही होने जा रहा है। वैसे इस बार भी लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव सर्वसम्मति से हो सकता था, लेकिन सत्तापक्ष ने विपक्ष की यह मांग ठुकरा दी थी और उसने अपना कैंडिडेट खड़ा कर दिया था, लेकिन अब परंपरा के मुताबिक़ उपाध्यक्ष पर उसे दे दिया जाएगा, हालांकि संख्या बल के लिहाज से नवनिर्वाचित लोकसभा में सत्तारूढ़ गठबंधन के पास पर्याप्त बहुमत है, लिहाजा उसके उम्मीदवार की जीत तय थी। जीत के बाद बुधवार को बिरला ने अपना आसान भी ग्रहण कर लिया था। बता दें कि बिरला इस बार कोटा संसदीय सीट से चुनकर लोकसभा पहुंचे हैं। उन्होंने कांग्रेस के प्रहलाद गुंजल को चुनाव हराया। इससे पहले वे 2003 से 2014 तक कोटा नॉर्थ की विधानसभा से लगातार विधायक चुने गए थे।
भले ही, ओम बिरला का संसदीय अनुभव लंबा ना हो, लेकिन वे 2003 से लेकर अब तक हर चुनाव जीतते आए हैं, जो अपने-आप में उनके सफल सियासी सफर को दर्शाता है। दरअसल, साल 2003 में उन्होंने कोटा से पहला विधानसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें जीत मिली थी। इसके बाद 2008 में उन्होंने कोटा दक्षिण सीट से कांग्रेस के शांति धारीवाल को हराकर विधानसभा चुनाव जीता, जबकि तीसरा विधानसभा चुनाव भी उन्होंने कोटा दक्षिण से ही 2013 में जीता था।
2014 में वह संसदीय चुनाव का हिस्सा बने, जब बीजेपी ने उन्हें कोटा संसदीय सीट से प्रत्याशी बनाया। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया, वहीं 2019 में बिरला फिर से सांसद चुने गए, तब उन्हें बीजेपी ने लोकसभा अध्यक्ष बनाकर सबको चौंका दिया था। उन्होंने लोकसभा को जिस ढंग से चलाया, उसकी सभी ने तारीफ की, जब उन्होंने इस बार भी लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की तो बीजेपी ने उन्हें एक बार फिर लोकसभा का अध्यक्ष का प्रत्याशी बनाया और बहुमत होने की वजह से वह जीत भी गए। संसद में हिन्दी भाषा के शब्दों को बढ़ावा देते हुए ओम बिरला ने ‘ऑनरेबल एमपी’ की बजाए ‘माननीय सदस्यगण’ बोलना शुरू किया।
इसके साथ ही उन्होंने ‘मोशन’ को भी ‘प्रस्ताव’ में बदल दिया। वोटिंग के दौरान सांसदों के बीच ‘यस और नो’ करने की परंपरा दशकों से चली आ रही थी, लेकिन ओम बिरला ने इसे ‘हां और नहीं’ में तब्दील कर दिया। उन्होंने विपक्षी सदस्यों के सदन से निलंबन के मामले में भी इतिहास रचते हुए पूरे कार्यकाल में क़रीब 140 सदस्यों को अलग-अलग समय पर सदन से निलंबित किया।
लगातार दूसरी बार लोकसभा अध्यक्ष बनने वाले ओम बिरला पांचवें नेता हैं। इससे पहले 1956 से 1962 तक एमए अय्यंगार, 1969 से 1975 तक जीएस ढिल्लों, 1980 से 1989 तक बलराम जाखड़, 1998 से 2002 तक जीएमसी बालयोगी लोकसभा अध्यक्ष रहे हैं, जिन्होंने लगातार दो लोकसभाओं की अध्यक्षता की है। नीलम संजीव रेड्डी भी ऐसे सांसद रहे हैं, जो दो बार लोकसभा अध्यक्ष रहे हैं, लेकिन वह लगातार अध्यक्ष नहीं रहे। उन्हें 1967 से 1969 तक और फिर मार्च 1977 से जुलाई 1977 तक लोकसभा अध्यक्ष चुना गया था।
संविधान की व्यवस्था के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष चाहे जिस भी दल का सदस्य चुना जाए, लेकिन माना जाता है कि चुने जाने के बाद उसकी दलीय संबद्धता औपचारिक तौर पर ख़त्म हो जाती है और वह दलीय गतिविधियों से अपने को दूर कर लेता है, उससे अपेक्षा की जाती है कि वह दलीय हितों और भावनाओं से ऊपर उठकर सदन की कार्यवाही का संचालन करते हुए विपक्षी सदस्यों के अधिकारों का भी पूरा संरक्षण करेगा। उम्मीद यही है कि ओम बिरला पिछले कार्यकाल की तरह अपने इस कार्यकाल को भी सामंजस्य के साथ निभाएंगे, जिससे देश की जनता की उम्मीदें पूरी हो पाएं।