नई दिल्ली. दुनिया के इतिहास का रुख मोड़ देने वाला कोरोना वायरस का संक्रमण आज भी बदस्तूर जारी है. हमारे देश में अब नए मामलों में रिकॉर्ड कमी आई है लेकिन कई देशों में इसकी रफ्तार बढ़ने लगी है. साथ ही जून-जुलाई में कोरोना की चौथी लहर की आशंका भी जताई जा रही है. हम में से कोई नहीं जानता कि कोरोना का अंत कब होगा लेकिन इसके घातक परिणाम हमेशा सामने आते रहते हैं. कोरोना की बाद की स्थितियों पर दुनिया भर में रिसर्च हो रही है. इनके परिणाम भी चौंकाने वाले होते हैं. अब ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में खौफनाक बात सामने आई है. अध्ययन के मुताबिक कोरोना से पीड़ित लोगों का दिमाग छोटा होने लगा है.
वैज्ञानिको ने पाया कि जो लोग कोरोना से पीड़ित हो चुके हैं, उनके दिमाग के पहले के एमआरआई (MRI) और कोरोना होने के बाद के एमआरआई में काफी फर्क है. यहां तक कि जिन लोगों को कोरोना के हल्के लक्षण थे, उनके दिमाग का साइज भी धीरे-धीरे सिकुड़ने लगा है.
दिमाग का ग्रे मैटर हो रहा कम
सबसे खतरनाक बात यह है कि दिमाग का साइज छोटा होने के कारण दिमाग का ग्रे मैटर कम हो रहा है. ग्रे मैटर के कारण किसी व्यक्ति की यादाश्त बनती है. इसका सीधा संबंध गंध की पहचान से भी है. हालांकि शोधकर्ताओं को अभी यह मालूम नहीं है कि कोरोना के बाद दिमाग में आने वाला यह परिवर्तन स्थायी है या नहीं लेकिन उसने इस बात पर जोर दिया कि दिमाग खुद को ठीक करने में माहिर होता है. इस बारे में ज्यादा जानकारी तभी प्राप्त हो सकती है जब इस पर ज्यादा दिनों तक रिसर्च किया जाए. शोधकर्ताओं के इस अध्ययन को प्रतिष्ठित नेचर जर्नल में प्रकाशित किया गया है.
यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड में वेलकम सेंटर फॉर इंटीग्रेटिव न्यूरोइमैजनिंग के प्रोफेसर और प्रमुख शोधकर्ता ग्वेनेले डौउड ने बताया कि फिलहाल शोध में कोरोना के हल्के लक्षण वाले मरीजों के दिमाग का परीक्षण किया गया था. हम यह देखना चाहते थे कि बीमारी से पहले और कोरोना के बाद दिमाग में कितना परिवर्तन आया. यह नतीजा चौंकाने वाला था.
2 प्रतिशत तक सिकुड़ गया दिमाग
ब्रिटेन के बायोबैंक प्रोजेक्ट के तहत पिछले 15 साल से 5 लाख लोगों की हेल्थ के बारे में डाटाबेस तैयार किया जा रहा है. इनमें से जिन लोगों को कोरोना हुआ है, उनके पहले के एमआरआई और अब के एमआरआई से तुलना की जा रही है. अध्ययन में कोरोना के बाद 401 लोगों का औसतन 4.1 महीने बाद एमआरआई किया गया. इसके अलावा 384 उन लोगों को भी इस अध्ययन में शामिल किया गया जिन्हें कोरोना नहीं हुआ था लेकिन इनका पहले का एमआरआई मौजूद था. इन दोनों समूहों के लोगों का बाद में एमआरआई किया गया.