आईजीएनसीए में विश्वकवि टैगोर पर दुर्लभ फोटोग्राफ और पेंटिंग की प्रदर्शनी
नई दिल्ली।
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के संरक्षण और सांस्कृतिक अभिलेखागार प्रभाग ने रवीन्द्र जयंती के उपलक्ष्य में एक प्रदर्शनी आयोजन किया है। ‘द रेयर फोटोग्राफ्स ऑफ रवीन्द्रनाथ टैगोर’ शीर्षक वाली प्रदर्शनी को गणेश नारायण सिंह द्वारा क्यूरेट किया गया है। आईजीएनसीए के भूतल पर स्थित दर्शनम् गैलरी में लगी यह प्रदर्शनी 19 मई, 2024 तक चलेगी। आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। इस अवसर एक सेमिनार का भी आयोजन किया गया, जिसमें डॉ. फैबियन चार्टियर, श्री नीलकमल अदक और श्री बसु आचार्य सहित सम्मानित वक्ता शामिल हुए, जिन्होंने टैगोर की विरासत पर विविध दृष्टिकोण प्रस्तुत किए। इस अवसर पर आईजीएनसीए के संरक्षण और अभिलेखागार प्रभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. अचल पंड्या और पुरालेखपाल डॉ. संजय झा भी उपस्थित थे।
19 मई तक चलने वाली इस प्रदर्शनी में एलिजाबेथ ब्रूनर, आनंद कुमारस्वामी, शंभू साहा, डी.आर.डी. वाडिया और कपिला वात्स्यायन के दुर्लभ संग्रहों की तस्वीरें प्रदर्शित की गई हैं। प्रदर्शनी में विभिन्न थीम को भी प्रदर्शित किया गया है। ‘शांतिनिकेतनः एबोड ऑफ पीस’ (शांतिनिकेतन: शांति का निवास) शांतिनिकेतन के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्यों पर केंद्रित है; ‘टैगोर्स इकोलॉजिकल हैबिटेशन एंड एग्रीकल्चरल पर्सूट्स’ (टैगोर की पारिस्थितिक पर्यवास और कृषि सम्बंधी तलाश) उनके पर्यावरणीय प्रयासों का अन्वेषण करती है; वहीं ‘टैगोर एंड गांधी’ (टैगोर और गांधी) उन दोनो के सम्बंधों पर प्रकाश डालती है, तो ‘गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर एंड हिज फ्रेंच ओडिसी’ (गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर और उनकी फ्रेंच ओडिसी) उनके फ्रांसीसी जुड़ावों पर प्रकाश डालती है।
सेमिनार में आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद नाइटहुड लौटाने के उनके महत्वपूर्ण कार्य को भारतीय पहचान और आत्मा की भावना का प्रतिबिंब बताते हुए टैगोर के अद्वितीय चरित्र पर प्रकाश डाला। उन्होंने टैगोर के अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर जोर देते हुए इस प्रदर्शनी के महत्त्व की चर्चा की। इस प्रदर्शनी में एलिजाबेथ ब्रूनर, आनंद कुमारस्वामी, शंभू साहा, डी.आर.डी. वाडिया और कपिला वात्स्यायन के साथ-साथ आईजीएनसीए के अभिलेखागार (आर्काइव) की की दुर्लभ पेंटिंग और तस्वीरें शामिल हैं। डॉ. जोशी ने टैगोर की कविता ‘प्राण’ के हिंदी अनुवाद का पाठ भी किया।
डॉ. फैबियन चार्टियर ने ‘टैगोर के फ्रेंच कनेक्शन’ विषय पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि अपने जीवन के 27 वर्ष रवीन्द्रनाथ टैगोर के अध्ययन में व्यतीत किए। फ्रांस में टैगोर का जिस तरह स्वागत हुआ, जिस तरह उन्होंने वहां ख्याति पाई और अंततः घर-घर में पहचाने गए, उसके बारे में भी फैबियन चार्टियर ने विस्तार से बात की। चार्टियर ने टैगोर द्वारा फ्रांस में प्रथम विश्वयुद्ध के युद्धक्षेत्रों का भ्रमण और उस पर उनकी भावनात्मक प्रतिक्रिया, जो उनकी गहरी मानवता को प्रदर्शित करती है, पर बात करते हुए गुरुदेव की फ्रांस यात्रा पर प्रकाश डाला। उन्होंने एलेक्जेंड्रा डेविड नील के अनुशंसा पत्रों का उल्लेख करते हुए पश्चिम में टैगोर के अभिनंदन पर भी चर्चा की। चार्टियर ने टैगोर के यूरोपीय दौरे पर प्रकाश तो डाला ही और बताया कि जहां उन्हें व्यापक रूप से स्वीकार किया गया था, वहीं ऐसे विचार-विमर्श भी हुए, जिन्होंने उनके बारे में धारणाओं को आकार दिया। इसके बाद, चार्टियर ने टैगोर को फ्रेंच सिखाने के विक्टोरिया ओकाम्पो के प्रयासों का भी उल्लेख किया।
अन्य वक्ताओं, श्री नीलकमल अदक और श्री बसु आचार्य ने क्रमशः ‘रवीन्द्रनाथ टैगोर: द अल्टीमेट फ्लावरिंग ऑफ एन आर्टिस्ट’ (रवीन्द्रनाथ टैगोरः एक कलाकार का चरम उत्कर्ष) और ‘टैगोर्स विजिट टू फ्रांस एंड इट्स इम्पैक्ट’ (टैगोर की फ्रांस यात्रा और उसके प्रभाव) पर चर्चा की। वहीं प्रदर्शनी के उद्घाटन सत्र में प्रख्यात गायिका श्रीमती सुलग्ना बनर्जी ने रवीन्द्र संगीत की मधुरता को अपने मनमोहक गायन से जीवंत कर दिया। कार्यक्रम का संचालन संरक्षण एवं अभिलेखागार विभाग के सदीश शर्मा ने किया और अंत में, अरिजीत दत्ता ने अतिथियों एवं आगंतुकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया।