स्पेस सुपरपावर बनने का हौंसला
देवानंद सिंह
चंद्रमा के दक्षिणी धुर्व पर जहां आज तक कोई देश नहीं पहुंच पाया है, वहां रोवर को सॉफ्ट लैंड कराने का भारत का ऐतिहासिक मिशन भले पूरा नहीं हुआ हो, लेकिन इसने इसरो की इंजीनियरिंग दिलेरी और भारत के स्पेस सुपरपावर बनने की महत्वाकांक्षा को दो टूक बयां किया है।
पूरी दुनिया जानती है कि चंद्रयान-2 भारत का सबसे महत्वाकांक्षी स्पेस मिशन था। विक्रम लैंडर और जिस प्रज्ञान रोवर को चांद की सतह पर उतारने के लिए वह ले जा रहा था, उनसे संपर्क टूटना भारत के स्पेस प्रोग्राम के लिए झटका जरूर है, लेकिन मिशन के लिए सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। इसने महत्वाकांक्षा के साथ-साथ उत्सुकता को और बढ़ा दिया है।
भारत भले ही अपने पहले प्रयास में लैंडिग नहीं कर पाया, लेकिन उसकी कोशिश बताती है कि उसके पास किस हद तक इंजीनियरिंग के क्षेत्र में शौर्य और दिलेरी है और दशकों में उसने वैश्विक महत्वाकांक्षा के साथ अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में कितनी तरक्की की है। चंद्रयान-टू मिशन पूरी तरह से नहीं, बल्कि आंशिक तौर पर ही असफल माना जाएगा, क्योंकि ऑर्बिटर अब भी काम कर रहा है। इस आंशिक असफलता से मायूसी जरूर हुई है और चांद की सतह पर उतरने वाले देशों की प्रतिष्ठित कतार में शामिल होने की भारत की कोशिश में देरी होगी, लेकिन यह आने वाले वर्षों में भारत को चांद पर पहुंचने के प्रयासों को और बल देगा और सफलता निश्चित ही भारत के कदमों में होगी।
असल में, भारत उस दिशा में जा रहा है, जहां शायद भविष्य में चांद पर मानव बस्तियां बसने में 20 साल, 50 साल या 100 साल लगेंगे। लिहाजा, भारत का यह मिशन अत्यंत राष्ट्रीय गौरव का स्रोत तो है ही, बल्कि यह देश की युवा आबादी की आकांक्षाओं का निश्चित ही प्रतिबिब भी है। चंद्रयान-2 पर 14.1 करोड़ डॉलर (करीब 900 करोड़ रुपए) का खर्च आया, जो अमेरिका के ऐतिहासिक अपोलो मून मिशन की लागत का महज एक छोटा-सा हिस्सा है। भारत ने अपने पहले चंद्र मिशन के रूप में पहली बार 2008 में चंद्रयान-वन लांच किया था। संस्कृत व हिदी के शब्दों से जोड़कर इस मिशन का नामकरण किया गया था, जिसमें चंद्र का अर्थ चंद्रमा और यान का अर्थ वाहन है। भारत के पहले चंद्रयान मिशन की नींव 386 करोड़ रुपए के साथ रखी गई थी। यह मिशन काफी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसने देश को भविष्य में होने वाले अंतरिक्ष मिशनों के लिए तकनीकी व बुनियादी ढांचा प्रदान किया। दुनिया जानती है कि उपग्रहों से संचार स्थापित करना बहुत मुश्किल काम है। चंद्रमा, पृथ्वी से तीन लाख 86 हजार किमी. की दूरी पर परिक्रमा करता है, जो कि संचार उपग्रहों की कक्षा से 10गुना अधिक दूरी है। परिणामस्वरूप, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने संकेतों को प्राप्त करने और संचारित करने के लिए कहीं अधिक उन्नत सेंसर विकसित किए हैं।
उस वक्त, इसरो के ट्रैकिग अधिकारियों को अंतरिक्ष यान दिखाई नहीं दे रहा था, लेकिन आखिरकार चंद्रयान-वन को देखे बिना ही यह प्रयोग सफलतापूर्वक किया गया। मंगल मिशन के दौरान इस अनुभव ने व्ौज्ञानिकों की मदद की। 22 अक्टूबर, 2008 को 1,380किग्रा. वजनी चंद्रयान-वन अंतरिक्ष यान को भारतीय रॉकेट पोलर सैटेलाइट लॉन्च वीइकल (पीएसएलवी) द्बारा सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्षा में भेजा गया था। अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा के चारों ओर 3,400 से अधिक परिक्रमाएं कीं। यह 29 अगस्त, 2009 तक 312 दिनों तक चालू अवस्था में था। इसके बाद इसके स्टार सेंसर गर्मी की वजह से क्षतिग्रस्त हो गए थे। इस अभियान के साथ भारत चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया था। चंद्रयान-वन ने निर्णायक तौर पर चंद्रमा पर पानी के निशान भी खोजे, जो कि इससे पहले कभी नहीं किया गया था।
लिहाजा, चंद्रयान-टू अभियान के असफल होने से मायूस होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भारतीय वैज्ञानिकों ने पूरी तरह अपने बूते पर वैज्ञानिक शोध का यह बीड़ा उठाकर पूरी दुनिया के सामने सिद्ध कर दिया है कि वे ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में किसी भी चुनौती को स्वीकारने में सक्षम हैं। चन्द्रमा के दक्षिणी धु्रव की सतह पर परीक्षण यान उतारने का साहस भारत के वे व्ौज्ञानिक ही कर सकते थे, जिन्हें अपनी विकसित की हुई अभियांत्रिकी और तकनीक पर पक्का यकीन हो, क्योंकि विज्ञान में असफलता नाम का कोई शब्द नहीं होता। प्रयोग के बाद प्रयोग करते रहना ही विज्ञान में अंतिम सफलता की सीढ़ी होती है और इस पर चढ़ने के लिए भारतीय अंतरिक्ष शोध संगठन-इसरो के वैज्ञानिक हमेशा से कठिबद्ध रहे हैं। आने वाले समय में ऐसे कई और प्रयोग किए जाने हैं, जिसमें निश्चित तौर पर हमें सफलता मिलेगी। पूरी दुनिया भी तहे दिल से इस बात को स्वीकार कर रही है कि भले ही चंद्रयान-टू आंशिक रूप से असफल हुआ, लेकिन भारत के वैज्ञानिकों ने जो स्पेस सुपरपावर बनने की महत्वाकांक्षा दिखाई है, वह अपने-आप में बहुत बड़ी बात है। ऐसे में, इससे बिल्कुल भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि मिशन खत्म हो गया है, बल्कि यह भविष्य में होने वाले मिशन को धार देने का काम करेगा और भारत की कामयाबी की इबारत को सुनहरे शब्दों में लिखेगा
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