माता सरस्वती की अनन्य साधिका डाॅ रागिनी दीदी -:राजमंगल पाण्डेय
जब मन एकान्त हो जाता है तब बीते लम्हें एक-एक करके मानस पटल पर उभरने लगते हैं। मन तो बहुत ही चंचल होता है लेकिन अध्ययन, अनुशीलन, मनन इन तीन प्रक्रियाएँ यदि साथ हों तो मैं समझता हूँ कि इधर उधर भागते मन को नियंत्रित किया जा सकता है और उसे अपने अभीष्ट कार्य में नियोजित किया जा सकता है। खैर , सामान्य अर्थों में मन की चंचलता तो अपनी जगह बनी ही रहती है, लेकिन सृजन के पथ पर वह मन सहायक भी होता है। अस्तु, उन्हीं प्यारे बीते लम्हों में से कुछ लम्हें मेरे संग हो लेते हैं और उन्हीं लम्हों में बहुत से पन्ने हैं। उन पन्नों को बड़ी प्यार से हौले हौले उलट रहा हूँ कि अकस्मात किसी नारी के कंठ से महाकवि निराला की सरस्वती वंदना ” वर दे वीणावादिनी वर दे ! ” के वह मधुर स्वर सुनायी पड़ने लगा। मेरे हाथ थम गये। मन और सुदूर अतीत की साँकल खटखटाने लगा। जमशेदपुर काॅपरेटिव काॅलेज के दिन याद आने लगे। मेरे मित्र सुभाष चंद्र गुप्त ने ( सम्प्रति डाॅ सुभाष चंद्र गुप्त करीम सिटी काॅलेज में हिन्दी के व्याख्याता हैं।) जो मुझसे एक वर्ष सीनियर थे और वे जमशेदपुर काॅपरेटिव काॅलेज से हिन्दी भाषा एवं साहित्य में एम•ए कर रहे थे,एक दिन मुझसे कहा,” क्या आपने डाॅ रागिनी भूषण के मधुर स्वर सुना है ? मैंने कहा,’ नहीं ‘ । ” आज आप राजेन्द्र विद्यालय मेरे साथ चल सकते हैं। आज ‘दिनकर जयन्ती ‘ है और उस कार्यक्रम में महाकवि निराला की सरस्वती वंदना डाॅ रागिनी भूषण ही गायेंगी।” डाॅ रागिनी भूषण जी का नाम मैंने सुना था और यह भी कि वे महाकवि निराला की सरस्वती वंदना भी अपने मधुर स्वर में गाती हैं और सारे स्रोतागण मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। उन दिनों डाॅ रागिनी भूषण जमशेदपुर ग्रेजुएट काॅलेज में संस्कृत भाषा एवं साहित्य की उत्कृष्ट व्याख्याता थीं।
सुभाष और मैं संध्या पाँच बजे से पहले ही पहुँच चुका था। यह करीब तीस-पैंतीस वर्ष पहले की बात होगी। मैं उन दिनों जमशेदपुर काॅपरेटिव काॅलेज में बी•ए का छात्र था। मैंने मंच की तरफ देखा गुरुदेव मेजर डाॅ चन्द्रभूषण सिन्हा, डाॅ त्रिभुवन ओझा ,गुरुदेव डाॅ सत्यदेव ओझा, डाॅ रागिनी भूषण और भी गण्यमान्य विद्धान उपस्थित थे। संचालन सम्भवतः डाॅ त्रिभुवन ओझा कर रहे थे। कार्यक्रम की शुरुआत महाकवि निराला रचित सरस्वती वंदना ‘ वर दे वीणावादिनी वर दे ‘ से हुई। जिसे डाॅ रागिनी भूषण ने अपने मधुर स्वर में गाया था। दीदी रागिनी भूषण जी का वह मधुर स्वर वाकई मुझे जादुई दुनिया में लेकर चला गया। सच कहूँ तो मुझे उस स्वर में दिव्यता का बोध हुआ। मैं आस -पास के माहौल से पूरी तरह बेखबर हो गया। दीदी रागिनी भूषण के उस कोकिला-कंठ से फूटता वह स्वर पूरे वातावरण को मंत्रमुग्ध किए जा रहा था। इसतरह कई ऐसे साहित्यिक कार्यक्रम हुए जिनमें दीदी रागिनी भूषण की उपस्थिति रही। इसके बाद इस स्वर साधिका डाॅ रागिनी भूषण से थोड़ा-बहुत परिचय भी हो चला था। मैं राजेन्द्र विद्यालय के किसी भी साहित्यिक कार्यक्रम में उपस्थित रहने की पूरी कोशिश किया करता था।
कुछ दिन बाद करीब तीन दशक पहले साकची स्थित ह्यूम पाईप रोड में किसी सज्जन व्यक्ति के घर एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया था। जगदीश चरण लहेरी के साथ मैं भी वहाँ गया हुआ था। मैंने देखा, वहाँ पर अन्य विद्वान साहित्यकारों के साथ निर्मल मिलिंद, डाॅ रागिनी भूषण तथा निर्मला ठाकुर उपस्थित थीं। वहाँ मैंने स्वरचित कविता सुनायी थी जिसे सुनकर डाॅ रागिनी दीदी ने प्रभावित होकर काफी प्रशंसा की थी और उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरी कविता को सुनने के बाद जो वाक्य कहा था वह आज भी मेरे मस्तिष्क में ज्यों का त्यों है। सम्भवतः डाॅ रागिनी दीदी को भी यह वाक्य याद न हो। उन्होंने कहा था, ” अरे बाप रे! इतने छोटे कद में भी बड़ा चिन्तन ” । मुझे उन्होंने काफी आशीर्वाद दिया था।
एक दिन सोनारी स्थित इनके घर पर भी जाना हुआ। अपने घर पर डाॅ रागिनी दीदी ने जगदीश चरण लहेरी और मुझे चाय के साथ अपने कुछ संस्मरण और कविताएँ भी सुनायी थीं और उसी सिलसिले में दीदी ने अपने विद्वान लेखक श्वसुर होम्योपैथिक डाॅ कुमुद जी से मिलवायी। डॉ कुमुद जी की विनम्रता ने मुझे बहुत प्रभावित किया। मुझे पूरी तरह याद है कि उन्होंने मुझे अपने द्वारा लिखित संस्मरण की पुस्तकें ‘बदरी केदार के पथ पर ‘ और ‘ सूरज उगे आधी रात ‘ भेंट की थी। फिर कुछ साहित्यिक गतिविधियों पर भी चर्चा होती रही। इस तरह रागिनी दीदी से कभी-कभी सूर्य नारायण झा के साथ उन दिनों भेंट हो जाया करती थी।
करीब 1995 के बाद से फ़िर मैं अपने दैनिक क्लासेज में इस तरह व्यस्त हो गया कि साहित्यिक कार्यक्रमों से बिल्कुल बेख़बर रहा। आज से करीब तीन-चार साल पहले जगदीश चरण लहेरी का भी देहान्त हो गया, खैर। एक दिन अकस्मात योंही मेरी नज़र फेसबुक पर गुरुदेव डाॅ सी भास्कर राव के पोस्ट पर डाॅ रागिनी दीदी की प्रतिक्रिया पर नज़र पड़ी। नज़र पड़ते ही मैं उन बीते लम्हों में खो गया जब रागिनी दीदी से मिला करता था। उनका वह सोनारी स्थित घर, डाॅ कुमुद जी का मुस्कुराते हुए हमलोगों से बातें करना, डाॅ रागिनी दीदी का चाय के साथ अपनी कविताएँ और संस्मरण सुनाना , राजेन्द्र विद्यालय के वे सुनहरे दिन, वहाँ के वे साहित्यिक कार्यक्रम तथा उन कार्यक्रमों में डाॅ रागिनी दीदी का ‘ वर दे वीणावादिनी वर दे ‘ का मधुर स्वर में गाना , केन्द्रीय पुस्तकालय में रागिनी दीदी का आना , ह्यूम पाईप रोड के क्वार्टर में काव्य-गोष्ठी का आयोजन इत्यादि मेरे अंदर मेरी अपनी सोयी स्मृतियों को जगाने लगे। मैं नाॅसटेल्जिक होने लगा। मैंने मैसेंजर में पुरानी बातों का उल्लेख करते हुए फ्रेंड्स रिक्वेस्ट भेजा । हालाँकि उसका कोई रेस्पांस नहीं मिला। खैर,। बात आयी की गयी रह गयी।
मैं इधर करीब दस वर्षों से फेसबुक पर ज्यादा सक्रिय रहने लगा। इसी बीच गीतकार कुमार मनीष और बालाकृष्णा ये दोनों अनुज कदमा, मथुरा मिष्ठान्न भण्डार में मुझसे और डाॅ अरुण कुमार शर्मा जी से मिलने आये। इसी बीच इन्होंने अपनी साहित्यिक संस्था ‘साहित्य सेवा संगम ‘ की चर्चा की और उसी वक्त हम दोनों डाॅ अरुण कुमार शर्मा और मैं इस साहित्यिक संस्था में शामिल हुआ। यह करीब 2019 की बात होगी। जब कोरोना काल की वजह से ‘साहित्य सेवा संगम ‘ द्वारा ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया तब बालाकृष्णा जी से मालूम हुआ कि इस काव्य गोष्ठी में माता वागीश्वरी की अनन्य साधिका डाॅ रागिनी भूषण भी शामिल हो रही हैं। यह जानकर मुझे अपार खुशी हुई। मैंने सोचा चलो आज रागिनी दीदी से मुलाकात हो जायेगी। इसी ऑनलाइन काव्य गोष्ठी के कार्यक्रम के दौरान मैंने रागिनी दीदी को प्रणाम किया और अपना पुराना परिचय देते हुए उन दिनों के प्रमुख पलों का जिक्र किया। सुनते ही उन्होंने आश्चर्य का अनुभव किया। फिर सारा वृतांत उन्होंने सुना। इसतरह रागिनी दीदी से हमारी मुलाकात का सिलसिला चल पड़ा।
सन् 2020 में जब मैं ‘अखिल भारतीय साहित्य परिषद् ‘ में शामिल हुआ तबसे बराबर रागिनी दीदी से मुलाकात होती रही। उन्होंने मुक्त कंठ से मेरी हिन्दी शैली की प्रशंसा की है। 2021 में जब सिद्धहस्त कवि-गीतकार लखन विक्रांत को ‘साहित्य सेवा संगम ‘ द्वारा ‘शब्द-शिल्पी सम्मान ‘से विभूषित किया जा रहा था तब भी खुले मन से डाॅ रागिनी दीदी ने कहा, ” राजमंगल जी आप बहुत अच्छा लिखते हैं। आपकी लेखन-शैली की मैं कायल हूँ। ” यह सुनकर मैं भावविभोर हो गया कि आज माता सरस्वती की प्रसिद्ध साधिका विदुषी कवयित्री डाॅ रागिनी भूषण ने स्वयं मेरी लेखन-शैली की प्रशंसा की। इसीतरह मेरे कुछ आलेखों और कविताओं पर उनकी प्रतिक्रियाएँ मेरे आत्मविश्वास को और मजबूती देती रहीं।
रागिनी दीदी के अपने गीतों की उनकी गायन-कला और उनकी अद्भुत कमनीयता और कोमलता सारे स्रोतागण को मंत्रमुग्ध कर देती है क्योंकि उनके स्वर में मैंने अनुभव किया है कि उनके गीतों में दिव्य संगीत की लहरें तथा इनके जादुई भाव-बोध और सम्प्रेषणीयता हमारे हृदय पर सीधे उतर जाते हैं। यही कारण है कि जब किसी कारणवश डाॅ रागिनी दीदी किसी भी कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो पाती तो ऐसा लगता कि किसी तरह कार्यक्रम की औपचारिकताएँ पूरी की गयीं।
14 नवम्बर 2021 की शाम को भला मैं कैसे भूल सकता हूँ। तुलसी भवन के उपरी सभागार में प्रसिद्ध शायर शैलेन्द्र पाण्डेय ‘ शैल ‘ की ग़ज़लों का संग्रह ‘ लफ्ज़ लफ्ज़ पैरहन ‘ का लोकार्पण हो रहा था। उसी कार्यक्रम में रागिनी दीदी ने अपने मधुर स्वर में जो गज़ल प्रस्तुत की वाकई बहुत देर तक उस दिन की फिजा में उनके द्वारा गायी गयी उस गज़ल के मधुर स्वर की अनुगूंज कानों में सुनायी देती रही। बड़े सम्मान के साथ पूज्या रागिनी दीदी ने अपना गुलदस्ता मुझे देते हुए कहा, ” राजमंगल जी आप बहुत अच्छा लिखते हैं, मैं आपकी भाषा-शैली को बहुत पसंद करती हूँ। ” मैं सुनकर भावविभोर हो गया। मैंने उनके चरणस्पर्श करते हुए बड़े सम्मान के साथ वह गुलदस्ता ले लिया। मेरे सामने वही वीणा के तार पर सरगम छेड़नेवाली संस्कृत भाषा एवं साहित्य की पूज्या विदुषी तथा स्वरसिद्धा कवयित्री डाॅ रागिनी भूषण उपस्थित थीं।