राष्ट्र संवाद संवाददाता
बिहार की राजनीति में चाय पर चर्चा तो खूब देखी गई है, लेकिन अब “सत्तू पर चर्चा” की नई परंपरा शुरू हो चुकी है। इस अनोखी पहल की शुरुआत राजद नेता समरेंद्र कुणाल ने सीमांचल के कटिहार से की है। गर्मी में आमजन की पहली पसंद बनने वाला सत्तू अब सियासत की गर्माहट को भी ठंडा करने का माध्यम बनता दिख रहा है। समरेंद्र कुणाल की यह रणनीति लोगों को लालू यादव की सादगी और जमीनी राजनीति की याद दिला रही है। जिस तरह कभी लालू यादव गाय-भैंस, मिट्टी और माटी की बातें कर आम जनता के दिलों में जगह बनाते थे, उसी राह पर समरेंद्र कुणाल भी चलते नजर आ रहे हैं। सत्तू खाते हुए वे न केवल लोगों से संवाद स्थापित कर रहे हैं, बल्कि लालू यादव की समाजवादी विचारधारा को भी जन-जन तक पहुंचा रहे हैं। साथ ही तेजस्वी यादव की नीतियों को भी जमीन से जोड़ने का जरिया बन रही है। कटिहार की गलियों से शुरू हुई यह पहल अब सुर्खियों में है। लोगों को यह चर्चा खूब भा भी रही है। स्थानीयता और जुड़ाव की इस मुहिम में जनता भी खुलकर हिस्सा ले रहे हैं। सत्तू खाते-खाते अब जातीय जनगणना, माय बहन मान योजना, 200 यूनिट मुफ्त बिजली और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर भी गंभीर चर्चा हो रही है। तेजस्वी यादव के विकास मॉडल और रोजगार को लेकर किए गए प्रयासों को जनता के बीच ले जाने के लिए यह अभियान कारगर साबित हो रहा है। जमीन से जुड़कर, स्थानीयता को अपनाकर और जनता की भाषा में बात कर दिलों में उतरने की कोशिश राजद के लिए यह मुहिम एक नई सोच का संकेत है। “सत्तू पर चर्चा” शायद आने वाले चुनावी मौसम में बड़ा असर दिखाए, और एक बार फिर बिहार की राजनीति को उसकी माटी से जोड़ दे। क्या राजद यह रणनीति बिहार की सत्ता का स्वाद बदल पाएगी ? ये तो वक्त ही बताएगा।