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    Home » पुत्र की लंबी आयु के लिए रखें जितिया व्रत, जानें संपूर्ण पूजा विधि एवं पारण का समय
    Headlines धर्म

    पुत्र की लंबी आयु के लिए रखें जितिया व्रत, जानें संपूर्ण पूजा विधि एवं पारण का समय

    Devanand SinghBy Devanand SinghSeptember 29, 2021No Comments4 Mins Read
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    हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत रखा जाता है. इस साल जितिया व्रत 29 सितंबर को मनाया जाएगा. इस दिन महिलाएं अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं. जितिया पर्व विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है. यह व्रत छठ व्रत की तरह तीन दिन तक चलता है. माताएं जीवित्पुत्रिका व्रत को संतान प्राप्ति और उसकी लंबी आयु के लिए रखती हैं. इस व्रत में जीऊतवाहन की पूजा की जाती है.पूजा के दौरान व्रत कथा जरूर पढ़ी जाती है.

    धार्मिक मान्यता है कि जीवित्पुत्रिका व्रत {जितिया की व्रत} कथा पढ़ने भर से ही धन-धान्य, समृद्धि, संतान प्राप्ति की कामना पूरी होती है. इससे संतान को लंबी आयु का वरदान मिलता है.

    जितिया व्रत 28 सितंबर से शुरू होकर 30 सितंबर तक किया जाता है. 28 सितंबर को नहाए खाए और 29 सितंबर को अष्टमी व्रत और नवमीं के दिन व्रत का पारण किया जाता है. यह व्रत पुत्र कल्याण की कामना से रखा जाता है. कहते हैं जीवित्पुत्रिका व्रत रखने से वंश वृद्धि होती है. इस व्रत को गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन (Rajkumar Jimutvahan) के नाम पर रखा गया है. ये व्रत निर्जला रखा जाता है और छठ पर्व की तरह की मनाया जाता है

    जीवित्पुत्रिका व्रत कथा

    पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार एक पेड़ पर गुरुड़ और लोमड़ी रहते थे. इन दोनों ने कुछ महिलाओं को जितिया व्रत करते हुए देखा, तो इनके मन में भी जितिया व्रत करने का विचार आया. दोनों ने भगवान श्री जीऊतवाहन के समक्ष व्रत रखकर विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने का संकल्प लिया. परंतु जिस दिन जितिया व्रत था उसी दिन गांव के एक बड़े व्यापारी का निधन हो गया. उसके शाव को देखकर उसे लालच आ गयी. लोमड़ी अपनेको रोक न पाई और चुपके से भोजन कर लिया और उसका व्रत टूट गया.

    दूसरी ओर वहीं गरुड़ ने व्रत का पालन करते हुए उसे पूरा किया. परिणामस्वरुप, दोनों अगले जन्म में एक ब्राह्मण के यहां चील, बड़ी बहन शीलवती और लोमड़ी, छोटी बहन कपुरावती के रूप में जन्मीं. चील शीलवती को एक-एक करके सात लड़के पैदा हुए. जबकि लोमड़ी से पैदा हुए सभी बच्चे जन्म के कुछ दिन बाद ही मर जाते. शीलवती के सभी लड़के बड़े होकर सभी राजा के दरबार में काम करने लगे. कपुरावती के मन में उन्हें देख इर्ष्या की भावना आ गयी, उसने राजा से कहकर सभी बेटों के सर काट दिए और उन्हें सात नए बर्तन मंगवाकर उसमें रख दिया और लाल कपड़े से ढककर शीलवती के पास भिजवा दिया. यह देख भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सिर बनाए और सभी के सिरों को उसके धड़ से जोड़कर उन पर अमृत छिड़क दिया. इससे उनमें जान आ गई.

    जितिया व्रत शुभ मुहूर्त व पारण का समय 2021

    अष्टमी तिथि प्रारंभ- 28 सितंबर को शाम 06:16 मिनट से

    अष्टमी तिथि समाप्त- 29 सितंबर की रात 8:29 मिनट से
    जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण 30 सितंबर दिन गुरुवार को किया जाएगा. इस दिन प्रात: काल स्नान आदि के बाद पूजा करके पारण करें. मान्यता है कि व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही करना चाहिए.

    जितिया व्रत संपूर्ण विधि 2021

    सभी व्रतों में जितिया व्रत को सबसे पवित्र माना गया है. अपनी संतान की लंबी आयु के लिए इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं. ये व्रत तीन दिन तक चलता है. सप्तमी के दिन नहाय खाए के बाद अष्टमी से लेकर नवमीं के दिन सूर्योदय के बाद खोला जाता है. सप्तमी तिथि की सूर्यास्त के बाद से महिलाएं कुछ नहीं खातीं और नवमीं के बाद ही निर्जला व्रत खोला जाता है. अष्टमी के दिन प्रात- काल में उठकर स्नान आदि कर वस्त्र धारण करें. इस व्रत में जीमूतवाहन की पूजा की जाती है. इस दिन भगवान जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित किए जाते हैं. इस व्रत के दौरान मिट्टी या गोबर से चील या सियारिन की मूर्ति बनाते हैं. माथे पर लाल सिंदूर का टीका लगाया जाता है.

    जितिया व्रत के दौरान व्रत कथा सुनना अवश्य होता है. इस दिन पूजा के दौरान व्रत कथा सुनें. मां को 16 पेड़ा, 16 दूब की माला, 16 खड़ा चावल, 16 गांठ का धागा, 16 लौंग, 16 इलायची, 16 पान, 16 खड़ी सुपारी व श्रृंगार का सामान अर्पित करें. साथ ही वंश वृद्धि के लिए व्रत कर बांस के पत्रों से पूजन किया जाता है. नवमी के दिन सूर्योदय के बाद ही व्रत का पारण किया जाता है. बता दें कि व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही करना शुभ माना जाता है.

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