कड़वा सच
भाजपा को आत्ममंथन करने की जरूरत है आदिवासी वोट हमसे क्यों छिटक गया है
पॉलिटिकल रिपोर्टर राष्ट्र संवाद
2024 विधानसभा चुनाव के परिणाम भाजपा के लिए आत्म मंथन करने वाला साबित हो रहा है मुद्दे पर आगे बढ़ने से पहले फ्लैशबैक में जाना जरूरी है ज्ञात हो कि अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में 2014 में अच्छी सीट लाकर बीजेपी सरकार बनाई।उनका नेतृत्व इसलिए बोला जा रहा है क्योंकि तब तक पार्टी में वे ही एक पूर्व मुख्यमंत्री थे और सभी विधानसभा में पार्टी को जिताने के लिए घूमते रहे और वे अपनी सीट से हार गए ।
हार गए तो उनको 5 साल साइड लाइन कर दिया गया।
एक बड़े आदिवासी नेता जिसको भाजपा ने ही बड़ा बनाया,उनके पर भाजपा ने ही काट दिया।
पर अर्जुन मुंडा संयम के साथ भाजपा के सिपाही बने रहे ईमानदारी से क्योंकि उनको भी एहसास था कि पार्टी ने ही उन्हें बड़ा बनाया था और आज तक वो इस बात को मानते हैं,कभी पार्टी का नुकसान नहीं किया कभी कहीं इधर उधर भागने के बारे नहीं सोचे,जबकि भाजपा सहित सभी पार्टियों में अनेकों उदाहरण है कि नेता पद से हटने पर नेता पार्टी छोड़ देते हैं और और अपनी महत्वाकांक्षा पूर्ति हेतु दायें – बायें झाँकने लगते हैं।
2019 में जब आदिवासी वोट भाजपा से दूर हो गए तो बाबूलाल मरांडी को ले आया गया और अब2024 में चंपई सोरेन को लाया गया।दोनों अच्छे नेता हैं पर जिस अर्जुन मुंडा ने 2005 में फिर से चुनाव जीतकर सरकार बनाने में कामयाब रहे,उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी न भाजपा की हवा थी न मोदी जी का जादू था।उन विपरीत परिस्थिति में 30 सीट भाजपा का लाकर सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की।
ऐसे नेता जिनके पास विकास का विजन है,झारखंड के नब्ज को वो जानते है।2014 के बाद साइड लाइन करने से अपने पार्टी के एक बड़े नेता का कद को कम करने का काम पार्टी के कुछ लोगों ने किया,इससे अर्जुन मुंडा के साथ पार्टी को भी नुकसान हुआ।
अर्जुन मुंडा ने पार्टी के अनुशासित सिपाही के तरह पार्टी के हर निर्णय का पालन किया खूंटी जैसे क्षेत्र में जहाँ पत्थलगढ़ी आन्दोलन एवं मिशनरियों के बढ़ते प्रभाव के बावजूद 2019 का चुनाव लड़ाया गया।पार्टी का आदेश मानते हुए चुनाव लड़े और पार्टी के अंदर की शक्ति द्वारा विपरीत कार्य करने के बावजूद चुनाव जीते।पर ऐसे विपरीत कार्य करने वाले को पार्टी ने इनाम के तौर पर 2019 और 2024 में टिकट दिया।
आज निश्चित रूप से अर्जुन मुंडा का कद गिरा है पर ये काम भाजपा के कुछ लोगों ने ही किया।
ऐसे ही पार्टी के बड़े नेता का कद को घटाया जाएगा तो निश्चित पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा। 5 वर्षों तक जनजातीय मंत्री का कार्यभार देखने वाले नेता अर्जुन मुंडा को दरकिनार कर विधानसभा चुनाव 24 के दौरान बाहर के नेताओं पर विश्वास करना ही घातक कदम साबित हुआ जबकि आदिवासी समाज सहित सभी वर्गों में अर्जुन मुंडा ज्यादा लोकप्रिय एवं उपयोगी साबित होते उन्हें साइड कर दिया गया। बाबूलाल मरांडी चंपई सोरेन सहित किसी भी बड़े स्थानीय आदिवासी नेता को वह तव्वजो नहीं दी गई जिसकी झारखंड के परिवेश में जरूरत थी। शुरू में झारखंड भाजपा द्वारा मइया योजना का विरोध एवं चुनाव के समय गोगो योजना को लाकर उनके निर्णय को सही साबित करना, घुसपैठियों का राग अलापना, टिकट बंटवारे में कार्यकर्ताओं की मनोभावना को दरकिनार करना, संगठन में जातिवाद का समावेश करना, ED का खेल खेलना, 2024 में महंगा पड़ गया झारखंड बीजेपी को।
आत्ममंथन करने की जरूरत है कि कौन पार्टी के ईमानदार सिपाही हैं? कौन व्यक्तिगत हित को आगे रख अपनी स्वार्थ पूर्ति कर रहा है और कौन गलत तरीके से परिवारवाद को परिभाषित कर रहा है?
आत्ममंथन करने की जरूरत है आदिवासी वोट हमसे क्यों छिटक गया है।