सार्वजनिक जीवन में मर्यादा से रहें
मनीष राज
दु दिनां से मौगी के हरकत से परेशान हैं।अठमि उपास के दिन बड़की दीदी जो साड़ी दी है,उ पिनहेंगे।उहे पिन्ह के खोइछा भरने जाएंगे…हमने कहा:-पारदर्शी साड़ी के नीचे से गुदगर जांघ दिख रहा है…उसने कहा:-आप किन के नै दिए हैं तो चुप रहिए??
जाओ दिखाओ
अगला दिन…..
मने आज का और अभी का दृश्य
ड्राइवर सात बजे दरवाजा पर गाड़ी लगाकर खड़ा है।सात बीस में उसके हलक से चाय की दो घूंट उतरी होगी।साढ़े आठ बजे तक मैडम फेयर एंड लवली लपेस रही थी।ऊपर से लैक्मे का बेस लगाकर आईना के सामने खुद को हिरोनी बुझ रही थी।एकदम बाहियात सौंदर्य प्रदर्शन!देह के उभार को दिखाने के लिए लालायित।
छौड़ा सब के मेला में पगलाने की यही वजह होती होगी।
खैर
प्रोफेशनल व्यस्तता की वजह से इधर फेसबुक पर समय नहीं दे पा रहा हूं।दु गो रोटी के जुगाड़ में लगा हूं।मनमोहन सिंह जैसे अर्थशास्त्री से लेकर मोदी जी की सरकार तक को देख रहा हूं।महंगाई उस टाइम भी उसी टाइप का दर्द दे रहा था जो अभी दे रहा है।अवसर भुनाने वाले भुनाने में लगे हैं।कपार पर गैस सिलिंडर लेकर भोकरने वाली स्मृति ईरानी की संपत्ति में इजाफा हुआ है तो बीते वर्ष गैस सिलिंडर के अभाव में गाछी की लकड़ी पर भोजन पकाने को विवश माता जी का कपुतनेरहा कन्हैया राजीव शुक्ला और पंजाब के सीएम के यहां तंदूर तोड़ रहा है।
#इधर #हम #घरवाली #से #महंगाई #की #लड़ाई #लड़ #रहे #हैं।
जिस प्रकार किसी को मनचाही स्पीड में गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि रोड सार्वजनिक है। ठीक उसी प्रकार किसी भी लड़की को मनचाही अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनने का अधिकार नहीं है क्योंकि जीवन सार्वजनिक है। एकांत रोड में स्पीड चलाओ, एकांत जगह में अर्द्धनग्न रहो। मगर सार्वजनिक जीवन में नियम मानने पड़ते हैं।
भोजन जब स्वयं के पेट मे जा रहा हो तो केवल स्वयं की रुचि अनुसार बनेगा, लेकिन जब वह भोजन परिवार खायेगा तो सबकी रुचि व मान्यता देखनी पड़ेगी।
लड़कियों का अर्धनग्न वस्त्र पहनने का मुद्दा उठाना उतना ही जरूरी है, जितना लड़को का शराब पीकर गाड़ी चलाने का मुद्दा उठाना जरूरी है। दोनों में एक्सीडेंट होगा ही।
अपनी इच्छा केवल घर की चहारदीवारी में उचित है। घर से बाहर सार्वजनिक जीवन मे कदम रखते ही सामाजिक मर्यादा लड़का हो या लड़की उसे रखनी ही होगी।
घूंघट और बुर्का जितना गलत है, उतना ही गलत अर्धनग्नता युक्त वस्त्र है। बड़ी उम्र की लड़कियों का बच्चों जैसी फ़टी निक्कर और छोटी टॉप पहनकर फैशन के नाम पर घूमना भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है।
जीवन भी गिटार या वीणा जैसा वाद्य यंत्र है। ज्यादा कसना भी गलत है और ज्यादा ढील छोड़ना भी गलत है।
सँस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को है, गाड़ी के दोनों पहिये में सँस्कार की हवा चाहिए, एक भी पंचर हुआ तो जीवन डिस्टर्ब होगा।
नग्नता यदि मॉडर्न होने की निशानी है, तो सबसे मॉडर्न जानवर है जिनके संस्कृति में कपड़े ही नही है। अतः जानवर से रेस न करें, सभ्यता व संस्कृति को स्वीकारें। कुत्ते को अधिकार है कि वह कहीं भी यूरिन पास कर सकता है, सभ्य इंसान को यह अधिकार नहीं है। उसे सभ्यता से बन्द टॉयलेट उपयोग करना होगा। इसी तरह पशु को अधिकार है नग्न घूमने का, लेकिन सभ्य स्त्री को उचित वस्त्र का उपयोग सार्वजनिक जीवन मे करना ही होगा।
अतः विनम्र अनुरोध है, सार्वजनिक जीवन मे मर्यादा न लांघें, सभ्यता से रहें।
वंदना भारती जी।
हम भी आपके पति का पक्ष जानने को इच्छुक हैं।