गीत
जब से नैन मिले हैं तुम से,
मन ये फागुन-फागुन है |
बरसाने सा रूप देख कर,
चित्त हुआ बृंदावन है ||
मह-मह महक रही अमराई,
प्रीत भरी पुरवाई में |
घोल रही उल्लास पिकी भी,
सुप्त पड़ी तरुणाई में |
शिलीमुखी गुंजन से गुंजित,
मधुवन का घर-आँगन है ||
रूप तुम्हारा शीतल-शीतल,
जैसे केसर-ठंडाई |
नेह लगे ज्यों गुलमोहर के,
पुष्पों की हो सुघराई |
वासंती मलयानिल झोंका,
लगता सावन-सावन है ||
अधरों के सुस्मित पलास से,
नयन भाँग के हैं प्याले |
और गुलाबी रंग गाल के,
जादू सा मन पर डाले |
पिचकारी की धार सुगंधित,
हिय पर केसर-चंदन है ||
-वसंत जमशेदपुरी