रांची : राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की राजनीतिक सफर ने नयी करवट ली है़ अर्जुन मुंडा और उनकी राजनीति ने राष्ट्रीय फलक पर दस्तक दी है़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में शामिल होनेवाले श्री मुंडा राज्य की परिधि से बाहर निकल कर नये रास्ते पर चल पड़े है़ं पिछले पांच वर्षों के राजनीतिक उतार-चढ़ाव में मुंडा ने धैर्य रखा़
2014 में विधानसभा का चुनाव खरसावां से हार गये़ भाजपा के दिग्गज नेता व पूर्व मुख्यमंत्री का विधानसभा से चुनाव हारना कइयों के लिए चौंकानेवाली राजनीतिक घटनाक्रम थी़ इसके बाद राज्य में रघुवर दास के नेतृत्व में सरकार बनी़ कभी राज्य की राजनीति की धुरी रहनेवाले श्री मुंडा नेपथ्य में चले गये़ रघुवर सरकार बनने के बाद मुंडा की भूमिका को लेकर अटकलें लगने लगीं, लेकिन पूरे राज्य के बदले हुए राजनीतिक घटनाक्रम को श्री मुंडा ने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया़ पूरे पांच वर्षों तक धैर्य रखा़ सत्ता और शासन से दूर रहे़ भाजपा के अंदर कभी दूसरे पावर सेंटर बनने की कोशिश नहीं की़ रघुवर सरकार में कई ऐसे मसले आये, लेकिन कभी विरोधियों को हवा नहीं दी़ हालांकि, श्री मुंडा ने सरकार के नीतिगत मामलों पर अपनी सकारात्मक राय और भूमिका रखी़ पार्टी और संगठन के प्रति निष्ठा रखी़
इस दौरान देश भर में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए़ संगठन ने श्री मुंडा को एक आदिवासी चेहरा के रूप में दूसरे राज्यों के विधानसभा में प्रोजेक्ट किया़ संगठन ने जो जिम्मा दिया, उसे पूरी निष्ठा से निभाया़ श्री मुंडा गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में पार्टी का काम किया़ इधर, बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच लाेकसभा का चुनाव आया़ खूंटी से भाजपा के कद्दावर नेता कड़िया मुंडा का टिकट अधिक उम्र होने के आधार पर कटा़ पार्टी को कड़िया की जगह एक दमदार आदिवासी नेता चाहिए था़ पार्टी केंद्रीय नेतृत्व ने श्री मुंडा को खूंटी से लोकसभा चुनाव लड़ने की जवाबदेही दी़ श्री मुंडा खूंटी लोकसभा के संघर्ष से भरे मैदान में उतरे़ खूंटी एक ऐसी सीट थी, जिसमें कई कारणों से हवा विपरित थी़ लेकिन श्री मुंडा और पूरी पार्टी ने मोर्चा संभाला़ आर-पार की लड़ाई में श्री मुंडा ने बाजी मारी और खूंटी के दुर्गम रास्ते से अपने राजनीतिक सफर को सहज बनाया़
19 वर्षों के सफर में हर बार केंद्रीय नेतृत्व का जीता भरोसा : पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा पहली बार 1995 में खरसावां से झामुमो के टिकट पर चुनाव जीता. वर्ष 2000 में भाजपा में शामिल हुए, फिर अनवरत संगठन के काम में जुटे़ वर्ष 2003 में बाबूलाल मरांडी की सरकार गयी, तो केंद्रीय नेतृत्व ने इस युवा नेता पर भरोसा किया़ तब श्री मरांडी के कैबिनेट में कल्याण मंत्री हुआ करते थे़
पार्टी नेता लालकृष्ण आडवाणी का युग हो या फिर अमित शाह का कार्यकाल सबकी कसौटी पर खरे उतरे़ पार्टी के अाला नेता राजनाथ सिंह, वैंकेया नायडू, नितिन गड़करी सभी के नेतृत्व में काम किया और अपना राजनीतिक कौशल दिखाया़ केंद्रीय नेतृत्व का ही भरोसा था कि श्री मुंडा को तीन बार राज्य का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला़ अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना भरोसा दिखाया है़