मुद्दों से भटकती राजनीति
अनीता शर्मा
हालात ए मुल्क देख कर रोया न गया
कितनी भी कोशिश कर ली पर मुँह ढंक कर सोया न गया
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की यह दुर्दशा ही है कि आज यहां लोकतंत्र बनाम राजतंत्र है।इसे पुष्पित और फलित करने के लिए सम्पूर्ण विपक्ष ने एकजुट होना स्वीकार कर लिया।कल जो एक दूसरे को गालियां देते नही थकते थे,वो आज गले मिल कर खड़े है।लोकतंत्र में विपक्ष के अस्तित्व को बड़ी मजबूती से स्थापित किया गया था,क्योंकि बिना विपक्ष कोई भी दल संप्रभु होकर शासन नही कर सकता है।लेकिन अफसोस कि स्वस्थ विपक्ष की भूमिका में कोई भी दल नही पहुँचता है।2019 के लोकतंत्र के उस महापर्व में आस्था ,विश्वास,और मर्यादायें तार तार हुई है।
जिस जनता के लिए यह शासन है,वो कहाँ है,उसके मुददों की बात कोई क्यो नही करता है।आज भी किसानों की दुर्दशा है,बच्चे भूखे नंगे है,अशिक्षा का पूरा साम्राज्य फैला है,सड़के आज भी बहुत जगह नहीं है,नालियों का गंदा पानी सड़कों पर बह रहा है।बेरोजगारी पूरे शबाब पर है,आरक्षण की आवश्यकता आजादी के 72 साल बाद भी है।बलात्कारी सड़कों पर खुले आम घूम रहे है।इतने मुद्दे क्या काफी नही थे बात करने के लिए कि राजनीतिक दल वाले ऐसे आरोप प्रत्यारोप में अपनी सम्पूर्ण मर्यादा को खो रहे है।ऐसी भाषा के माध्यम से हम आने वाली पीढ़ी को कौन सा संदेश दे रहे है।क्यो जड़ो में ही जहर घोला जा रहा है।
बच्चे कक्षा में पूछते हैं कि प्रधानमंत्री को कोई कैसे चोर कह सकता है।सचमुच जब हम संवैधानिक पद की बात करते हैं तो उनकी गरिमा को क्यों तार तार करते हैं?अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की आड़ में जिसे जो मन आता है दूसरे पर आरोप लगा जाता है।सत्य है कि निंदा करने वालों को अपने साथ रखिये,लेकिन आजकल जैसे अमर्यादित निंदक को क्या कहेंगे।
होना तो यह चाहिए कि स्वस्थ मानसिकता की विपक्षी पार्टी हो,जन समुदाय के हित में,राष्ट्रहित में उठे मुद्दों पर सबकी वैसे ही सहमति होनी चाहिए जैसे वे अपने भत्ते और वेतन के समय रखते है।कोई भी दल हो,राष्ट्रीयता,धर्म निरपेक्षता, अक्षुण्ण रहनी चाहिए।आरक्षण का मुद्दा खत्म कर योग्यता को जगह मिलनी चाहिए।मुफ्त की हर योजना बंद हो।कानून में लचक हो और लटकाव न हो।सख्ती से कानून लागू होऔर त्वरित फैसला हो।जो भी दल सत्ता में हो वोट की राजनीति की बजाय जनसरोकार ही उसके लिए सर्वोपरि हो।
जनता दिग्भ्रमित है ,उसकी स्थिति डावांडोल है वो क्या करें।माना हम अमन पसंद है,लेकिन कहाँ हमारा अमन और कहां हमारा संयम।यदि वास्तव में जनता का शासन, जनता के लिये, जनता के द्वारा शासन है तो लोकतंत्र, तो बेगार और मुफ्त का खाना बंद कर लोगों को काम करा कर अनाज देने की योजनाएं बनाई जाए।शिक्षा पर सबका अधिकार हो,वैसे नही जैसे आज है।सरकारी शिक्षण ही वर्ग 1 से 10 तक हो कोई भी निजी विद्यालय न हो।कौशल विकास को प्राथमिकता दी जाए,बच्चों को गौरवशाली इतिहास के बारे में पढ़ाया जाय।हमारा अतीत बहुत ही गौरवशाली था।इसको सही तौर पर न पेश कर अंग्रेजों के समय के इतिहासकारों द्वारा रचित मसाला के रूप में पेश कर अपनी संस्कृति को जो हम नष्ट कर रहे है उसे बचाया जाय।युवाओं को रोजगारपरक शिक्षा दी जाए और उन्हें रोजगार उत्पन्न करने योग्य बनाया जाए।नई लोकसभा का गठन इन मुद्दों पर हो।निःसंदेह देश अपने लिए नवीन आयाम गढ़ सकेगा।
हालात ए मुल्क देख कर रोया न गया
कितनी भी कोशिश कर ली पर मुँह ढंक कर सोया न गया
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की यह दुर्दशा ही है कि आज यहां लोकतंत्र बनाम राजतंत्र है।इसे पुष्पित और फलित करने के लिए सम्पूर्ण विपक्ष ने एकजुट होना स्वीकार कर लिया।कल जो एक दूसरे को गालियां देते नही थकते थे,वो आज गले मिल कर खड़े है।लोकतंत्र में विपक्ष के अस्तित्व को बड़ी मजबूती से स्थापित किया गया था,क्योंकि बिना विपक्ष कोई भी दल संप्रभु होकर शासन नही कर सकता है।लेकिन अफसोस कि स्वस्थ विपक्ष की भूमिका में कोई भी दल नही पहुँचता है।2019 के लोकतंत्र के उस महापर्व में आस्था ,विश्वास,और मर्यादायें तार तार हुई है।
जिस जनता के लिए यह शासन है,वो कहाँ है,उसके मुददों की बात कोई क्यो नही करता है।आज भी किसानों की दुर्दशा है,बच्चे भूखे नंगे है,अशिक्षा का पूरा साम्राज्य फैला है,सड़के आज भी बहुत जगह नहीं है,नालियों का गंदा पानी सड़कों पर बह रहा है।बेरोजगारी पूरे शबाब पर है,आरक्षण की आवश्यकता आजादी के 72 साल बाद भी है।बलात्कारी सड़कों पर खुले आम घूम रहे है।इतने मुद्दे क्या काफी नही थे बात करने के लिए कि राजनीतिक दल वाले ऐसे आरोप प्रत्यारोप में अपनी सम्पूर्ण मर्यादा को खो रहे है।ऐसी भाषा के माध्यम से हम आने वाली पीढ़ी को कौन सा संदेश दे रहे है।क्यो जड़ो में ही जहर घोला जा रहा है।
बच्चे कक्षा में पूछते हैं कि प्रधानमंत्री को कोई कैसे चोर कह सकता है।सचमुच जब हम संवैधानिक पद की बात करते हैं तो उनकी गरिमा को क्यों तार तार करते हैं?अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की आड़ में जिसे जो मन आता है दूसरे पर आरोप लगा जाता है।सत्य है कि निंदा करने वालों को अपने साथ रखिये,लेकिन आजकल जैसे अमर्यादित निंदक को क्या कहेंगे।
होना तो यह चाहिए कि स्वस्थ मानसिकता की विपक्षी पार्टी हो,जन समुदाय के हित में,राष्ट्रहित में उठे मुद्दों पर सबकी वैसे ही सहमति होनी चाहिए जैसे वे अपने भत्ते और वेतन के समय रखते है।कोई भी दल हो,राष्ट्रीयता,धर्म निरपेक्षता, अक्षुण्ण रहनी चाहिए।आरक्षण का मुद्दा खत्म कर योग्यता को जगह मिलनी चाहिए।मुफ्त की हर योजना बंद हो।कानून में लचक हो और लटकाव न हो।सख्ती से कानून लागू होऔर त्वरित फैसला हो।जो भी दल सत्ता में हो वोट की राजनीति की बजाय जनसरोकार ही उसके लिए सर्वोपरि हो।
जनता दिग्भ्रमित है ,उसकी स्थिति डावांडोल है वो क्या करें।माना हम अमन पसंद है,लेकिन कहाँ हमारा अमन और कहां हमारा संयम।यदि वास्तव में जनता का शासन, जनता के लिये, जनता के द्वारा शासन है तो लोकतंत्र, तो बेगार और मुफ्त का खाना बंद कर लोगों को काम करा कर अनाज देने की योजनाएं बनाई जाए।शिक्षा पर सबका अधिकार हो,वैसे नही जैसे आज है।सरकारी शिक्षण ही वर्ग 1 से 10 तक हो कोई भी निजी विद्यालय न हो।कौशल विकास को प्राथमिकता दी जाए,बच्चों को गौरवशाली इतिहास के बारे में पढ़ाया जाय।हमारा अतीत बहुत ही गौरवशाली था।इसको सही तौर पर न पेश कर अंग्रेजों के समय के इतिहासकारों द्वारा रचित मसाला के रूप में पेश कर अपनी संस्कृति को जो हम नष्ट कर रहे है उसे बचाया जाय।युवाओं को रोजगारपरक शिक्षा दी जाए और उन्हें रोजगार उत्पन्न करने योग्य बनाया जाए।नई लोकसभा का गठन इन मुद्दों पर हो।निःसंदेह देश अपने लिए नवीन आयाम गढ़ सकेगा।