फिर पब्लिक से पंगा क्यूँ?
जनता ही चुनती है शासक,
फिर पब्लिक से पंगा क्यूँ?
जाना है फिर बन के याचक,
फिर पब्लिक से पंगा क्यूँ?
विवश लोग ही काम छोड़कर ,
अक्सर सड़कों पर उतरे
नहीं सुने शासक तो घातक,
फिर पब्लिक से पंगा क्यूँ?
अहंकार में जो भी डूबा,
शासन उसका अंत हुआ
इतिहासों में दर्ज चकाचक,
फिर पब्लिक से पंगा क्यूँ?
शासक “प्रजा” बनाना चाहे,
मगर “नागरिक” हम सब हैं
तू जनमत का बनो उपासक,
फिर पब्लिक से पंगा क्यूँ?
रावण, कंस बहुत बलशाली,
उनका अंत हुआ कैसे?
सीखो सच से, छोड़ो नाटक,
फिर पब्लिक से पंगा क्यूँ?
लोक भावना के आगे तो,
हर शासन झुकता प्यारे
तुम झूठे वादों के वाचक,
फिर पब्लिक से पंगा क्यूँ?
बातें सुनो सुमन की सांई,
बन के स्वाति बूँद गिरो
लोग-बाग बन के हैं चातक,
फिर पब्लिक से पंगा क्यूँ?
सादर
श्यामल सुमन