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    Home » 1932 की खतियान का आधार मानक नहीं हो सकती है:सूर्य सिंह बेसरा
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    1932 की खतियान का आधार मानक नहीं हो सकती है:सूर्य सिंह बेसरा

    Devanand SinghBy Devanand SinghNovember 12, 2022No Comments4 Mins Read
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    नई दिल्ली,( झारखंड भवन) 12 नवंबर
    सूर्य सिंह बेसरा ने झारखंड सरकार की “स्थानीय नीति” पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है
    1932 की खतियान का आधार मानक नहीं हो सकती है
    *विधेयक में 1935 1938 1964 1977 1981 एवं 1994 नहीं जोड़ी गई है* *स्थानीय नीति और “आरक्षण नीति” को 9वीं सूची में शामिल करना है, केंद्र सरकार के पाले में बोल फेंक देने के बराबर है*

    *लोक नियोजन” विषय पर “स्थानीय नीति” परिभाषित करने का संविधान के अनुच्छेद-16(3) के तहत केवल संसद को ही अधिकार प्रदत्त की गई है** * *स्थानीयता में अधिवास शब्दों का प्रयोग किया गया है, जो भारतीय नागरिकता के बारे में प्रावधान है,जो सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट का प्रतिकूल है*
    *संविधान के अनुच्छेद- 371(d) आंध्र प्रदेश के संबंध में विशेष उपबंध के तर्ज पर झारखंड की “स्थानीय नीति” नहीं है* झारखंड राज्य निर्माताओं में से एक, ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के संस्थापक सह- झारखंड राज्य की मांग पर बिहार विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र देने वाले एकमात्र पूर्व विधायक श्री सूर्य सिंह बेसरा ने दिल्ली प्रवास पर शनिवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर झारखंड सरकार द्वारा विधानसभा की विशेष सत्र मैं “स्थानीयता नीति” परिभाषित करने के लिए विधेयक पारित किए जाने पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि केवल 1932 के आधार पर “स्थानीय व्यक्ति” को परिभाषित करना सर्वमान्य नहीं हो सकते हैं,

    क्योंकि झारखंड राज्य के अंतर्गत 1932 के पहले तथा 1932 के पश्चात विभिन्न समय में अलग-अलग जिले में अंतिम सर्वे सेटेलमेंट हुई है; उदाहरण के लिए अविभाजित सिंहभूम में 1964 में अंतिम सर्वे सेटेलमेंट हुई है। इसी तरह 1935, 1938, 1977, 1981 एवं 1994 में अंतिम सर्वे सेटेलमेंट हुई है। श्री सूर्य सिंह बेसरा ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद -16( 3 )के तहत “लोक नियोजन” विषय पर “स्थानीय नीति” निर्धारित करने का अधिकार केवल संसद को ही है । जहां तक झारखंड की “स्थानीय नीति” को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव है- यह तो केंद्र सरकार के पाले में बोल फेंकने की बात है । वर्तमान केंद्र में भाजपा गठबंधन की सरकार है । प्रश्न यह उठता है क्या श्री नरेंद्र मोदी की सरकार संसद से इस विधेयक को पारित कर संविधान के नौवीं अनुसूची में शामिल कर पाएंगे ?

    तब तक क्या झारखंड में “स्थानीय नीति” लागू नहीं होगी ? पूर्व विधायक श्री सूर्य सिंह बेसरा ने यह भी प्रश्न उठाया है कि विधानसभा की विशेष सत्र में पारित विधेयक में झारखंड के “स्थानीय व्यक्ति” कौन होगा ? इस के संदर्भ में “अधिवास” यानी संविधान के अनुच्छेद- 5 का जिक्र किया गया है, जिसमें भारत के नागरिकता का प्रावधान है, अगर यह नियम बन जाए तो यूं ही मान लिया जाए कि इस प्रकार की “स्थानीय नीति” माननीय सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट जो 2002 में न्यायमूर्ति बी एन खरे और बी एन अग्रवाल की खंडपीठ ने 9 जनवरी 2002 में स्थानीयता के विषय पर एक ऐतिहासिक फैसला दिया है कि-” *कोई भी भारतीय नागरिक हर किसी राज्य का “स्थाई निवासी” नहीं हो सकता है* “,अतः वर्तमान झारखंड की “स्थानीय नीति” संविधान के अनुच्छेद -5 अर्थात (अधिवास) के आधार पर “स्थानीयता नीति” बनाना पूर्ण रूप से असंविधानिक है ।

    पूर्व विधायक श्री सूर्य सिंह बेसरा ने श्री हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस (ई) एवं राजद गठबंधन की सरकार ने जो अदूरदर्शिता के कारण जो बहुत बड़ी खामियां और त्रुटियां इस विधेयक में रह गई है, पुनर्विचार कर उसे अविलंब संशोधित करें और संकल्प प्रस्ताव के साथ अध्यादेश जारी करते हुए तत्काल उसे लागू करें, अन्यथा हम अपील करना चाहते हैं झारखंडी यों के आवाम को की इस विधेयक के खिलाफ संपूर्ण झारखंड में व्यापक जन आंदोलन कर वर्तमान राज्य सरकार की “स्थानीय नीति” को ना सिर्फ बदलें, बल्कि झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस( ई) सरकार को ही बदल डाले और तो और आगामी 2024 के विधानसभा चुनाव में झारखंड में सत्ता की परिवर्तन करें ।

    हार्दिक जोहार के साथ -सूर्य सिंह बेसरा

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