नई दिल्ली. भारत ने यासीन मलिक के मामले में इस्लामिक सहयोग संगठन द्वारा कोर्ट के फैसले की आलोचना करने पर कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा कि ओआईसी की यह टिप्पणी अस्वीकार्य है. इस संबंध में भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए कहा कि यासीन मलिक को सजा कोर्ट में दिए गए साक्ष्य और सबूतों के आधार पर दी गई है.
दरअसल इस्लामिक सहयोग संगठन के मानवाधिकार आयोग ने आतंकी गतिविधियों में संलिप्त यासीन मलिक के प्रति सहानुभूति जताई थी. इसके जवाब में भारतीय विदेश मंत्रालय ने इस बयान की आलोचना करते हुए कहा कि दुनिया आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस चाहती है इसलिए हम ओआईसी से आग्रह करते हैं कि यासीन मलिक की सजा को किसी भी तरह से अनुचित नहीं ठहराया जाए.
इससे पहले गुरुवार को इस्लामिक समूह के मानवाधिकार विंग ने यासीन मलिक को दोषी ठहराए जाने की निंदा करते हुए कहा था कि यह फैसला व्यवस्थित भारतीय पूर्वाग्रह और कश्मीरी मुसलमानों के उत्पीडऩ को दर्शाता है. ओआईसी-आईपीएचआरसी भारत में फर्जी मुकदमे के बाद मनगढ़ंत आरोपों में प्रमुख कश्मीरी राजनेता यासीन मलिक की अवैध सजा की निंदा करता है.
इस्लामिक सहयोग संगठन के मानवाधिकार आयोग ने यह भी कहा कि निर्दोष कश्मीरियों के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन के ऐसे कृत्यों का उद्देश्य कश्मीरियों को उनके आत्मनिर्णय के वैध अधिकार से वंचित करना है. यह न केवल भारतीय न्याय का उपहास है बल्कि लोकतंत्र के दावों को भी उजागर करता है.
गौरतलब है कि यासीन मलिक को टेरर फंडिंग मामले में दिल्ली की कोर्ट ने बुधवार को आजीवन कारावास और 10 लाख रुपए जुर्माा अदा करने की सजा सुनाई थी. कोर्ट के जज ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि यासीन मलिक ने 1994 में हथियार डाल दिए थे, लेकिन वह लगातार कश्मीर घाटी में हिंसा का समर्थन करता रहा.