लखीमपुर कांड के बहाने कांग्रेस में आई जान
स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता भी भी लखीमपुर गए हैं माना जा रहा है कि स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता समीकरण बदलने में माहिर हैं और वे यूपी की राजनीति में भी पकड़ रखते हैं इसका फायदा पार्टी उठा सकती है
देवानंद सिंह
लखीमपुर कांड को शांत करने में भले ही योगी सरकार सफल हो गई हो, लेकिन इस घटना ने कांग्रेस में एक बार फिर जान डाल दी है, जिस तरह अब तक घरों में दुबके कांग्रेसी प्रियंका गांधी को हिरासत में लेने बाद घरों से बाहर निकले और देश के हर हिस्से में विरोध प्रदर्शन किए, उसने यूपी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को एक फाइटर के तौर पर प्रस्तुत कर दिया है। लखीमपुर पहुंचकर पीड़ित परिवारों के परिजनों के गले लगने वाले प्रियंका और राहुल गांधी के फोटो और वीडियो जिस तरह वायरल हो रहे हैं, उससे भी लोगों के बीच कांग्रेस के प्रति एक अच्छा मैसेज जाता दिखाई दिया। कुल मिलाकर, लखीमपुर खीरी कांड के बाद अब यह बात तेजी से उठने लगी है कि शायद उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह घटना ‘गेम चेंजर’ साबित हो सकती है, क्योंकि इस वारदात के बाद जिस तरह से प्रियंका वाड्रा ने गांधीगीरी की, उसने पुराने परिदृश्य की याद दिला दी है, उनमें एक बार फिर इंदिरा गांधी का एक्स दिखाई देने लगा है। हम सब देख रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में राजनीति का खेल बदलने के लिए बहुत दिनों से जोड़-तोड़ चल रही है। राज्य में बीते तीन दशकों से भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की सरकारें हैं। कांग्रेस एक तरह से उत्तर प्रदेश की राजनीति से अप्रासंगिक हो चुकी है। उत्तर प्रदेश की राजनीति से उखड़ने के बाद ही कांग्रेस पूरे देश से उखड़ती ही चली गई। लखीमपुर- खीरी की घटना के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने जिस तरह से कांग्रेस की प्रियंका गांधी और दूसरे नेताओं को नजरबन्द किया, उससे लोगों को लगने लगा कि कांग्रेस इस वारदात के बाद उत्तर प्रदेश में राजनीति का खेल बदलने की हैसियत में आ गयी है। पर धरातल पर यह कितना सही साबित होगा, वह तो भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है। उत्तर प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य देखें तो यहां जातिवाद का बड़ा ही बोलबाला है, जिस मापदंड को सेट करने में सपा, बसपा और भाजपा लगे हुए हैं, उस स्थिति में कांग्रेस के पास कुछ नहीं है। कांग्रेस के पास इस समय न दलित वोट बैंक है और न ब्राम्हण वोट बैंक। कांग्रेस के पास ले-देकर अल्पसंख्यक वोट हैं, लेकिन इन वोटों में भी भाजपा के लिए सेंध लगाने वाले ओवैसी जैसे नेता मैदान में हैं। ऐसे में, कांग्रेस की प्रियंका कैसे गेम चेंजर बन सकती हैं? इस पर चर्चा होना अपने आप में बड़ी बात है। राजनीति में आशावादी तबके का मानना है कि जब बंगाल में खेला हो सकता है तो उत्तर प्रदेश में क्यों नहीं हो सकता? सवाल जायज है, लेकिन इसका उत्तर दूर-दूर तक किसी के पास नहीं है। शायद प्रियंका के पास भी नहीं है, पर प्रियंका खेल बदलने की कोशिश में जुटी हुई हैं। प्रियंका के आशावाद की जड़ में उनका आत्मविश्वास भर है बस। पिछले दो-तीन साल से वे उत्तर प्रदेश के बाहर नहीं निकली हैं। जमीनी स्तर पर उन्होंने कांग्रेस को खड़ा करने के लिए बहुत श्रम किया है, लेकिन उसके नतीजे न पंचायत चुनावों में सामने आये हैं और न अन्य किसी रूप में। यह बात सब जानते हैं कि उत्तर प्रदेश का खेल बदले बिना कांग्रेस हो अथवा भाजपा, केंद्र की सत्ता में वापसी नहीं कर सकती। यही कारण है कि हर प्रदेश के बड़े नेता लखीमपुर की राह रास्ते निकल पड़े हैं झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी इस पूरे आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही है झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर और स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता भी भी लखीमपुर गए हैं माना जा रहा है कि स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता समीकरण बदलने में माहिर हैं और वे यूपी की राजनीति में भी पकड़ रखते हैं इसका फायदा पार्टी उठा सकती है
2024 के आम चुनावों के लिए तो उत्तर प्रदेश की परीक्षा पास करना सभी के लिए अनिवार्य है। कांग्रेस की परेशानी यह है कि आज उसके पास प्रमोद तिवारी जैसे नेता तो हैं, लेकिन नारायण दत्त तिवारी जैसा एक भी चेहरा नहीं है, जो उत्तर प्रदेश की जनता की उम्मीदों का आईना बन सके। प्रियंका स्वयं नारायण दत्त तिवारी नहीं बनना चाहतीं, लेकिन यदि वह अपने आपको उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दें तो लखीमपुर खीरी जैसी घटनाएं गेम चेंज करने के काम आ सकती हैं।
उत्तर प्रदेश में देश के किसान आंदोलन का काफी असर है और यह गुस्सा भी कांग्रेस के काम आ सकता है। कांग्रेस के अलावा और कोई राजनीतिक दल नहीं है, जो किसानों के गुस्से को राजनीति का खेल बदलने में इस्तेमाल कर सके। कांग्रेस ने पंजाब में नेतृत्व परिवर्तन कर वहां किसानों पर आंदोलन के दौरान लादे गए मुकदमे वापस लेने का ऐलान कर एक कोशिश की है, लेकिन इसका असर पंजाब से उत्तर प्रदेश तक आने में वक्त लगेगा। कांग्रेस को पहले हवा का रुख बदलना होगा, राजनीति का खेल बाद में बदला जा सकेगा। उत्तर प्रदेश को एक गेम चेंजर चाहिए। प्रियंका के सहारे कांग्रेस को इसीलिए फायदा हो सकता है, क्योंकि जनता मायावती और अखिलेश को देख चुकी है। पर देखने वाली बात यह होगी कि प्रियंका की इस उपस्थिति के बीच लोग योगी आदित्यनाथ को नकार पाते हैं या नहीं।