*पचास की संख्या में जंगली हाथियों ने तीन झूंडों ने चांडिल वन क्षेत्र में मचा रखी है तबाही*
*वन विभाग के 5 दस्ते लगे हैं हाथियों को वापस भेजने में*
चांडिल वन अभ्यारण्य क्षेत्र में इन दिनों जंगली हाथियों का आतंक है . 50 की संख्या वाले हाथियों का यह झुंड तीन भागों में बटा है. एक ओर जहां दलमा और चांडिल एरिया के तराई वाले क्षेत्रों के ग्रामीण परेशान हैं , वही वन विभाग के दस्तों को भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है . दरअसल होता ऐसा है कि क्षेत्र से भगाए जाने के बाद हाथियों का झूंड पुनः दूसरे क्षेत्र से होकर लौट आता हैं जिसकी वजह से वन विभाग के दस्ते को कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है. पिछले 1 माह से इन हाथियों ने इस क्षेत्र की फसलों को भारी क्षति पहुंचाई है . एक व्यक्ति की मौत भी हुई है , लेकिन वन विभाग की चपलता और तत्परता की वजह से महज एक व्यक्ति की जान गई है. क्षेत्र में वन विभाग पूरी तरह से मुस्तैद है और ग्रामीणों को भी सजग रहने की चेतावनी दी गई है . इस संबंध में जानकारी देते हुए चांडिल वन क्षेत्र के रेंजर अशोक कुमार ने बताया की पिछले कुछ दिनों से बंगाल की सीमा की ओर से हाथियों का एक झुंड जिसकी कुल संख्या 14 है वह चांडिल और दलमा वन क्षेत्र में अड्डा जमाए है . दूसरा झुंड जो चाईबासा के सारंडा जंगल को पार कर सरायकेला होते हुए दलमा वन क्षेत्र में प्रवेश कर गया है. झुंड में कुल 30 से 32 साथी हैं . हाथियों का झुंड चांडिल अनुमंडल के नीमडीह काल्याणपुर, अंडा, सिरोम, रामगढ़ आसन बनी कंदरबेरा और आसपास के क्षेत्रों में जमे हुए हैं. इस क्षेत्र की फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया है . कई घर क्षतिग्रस्त कर दिए हैं . कुछ घरों को जो आमतौर पर मिट्टी और फूस के बने हैं , उन्हें तोड़ ही दिया है , हालांकि सरकार की ओर से ग्रामीणों को इसकी क्षतिपूर्ति दी जाती है . पहले नुकसान का जायजा लिया जाता है. मूल्यांकन किया जाता है और उस हिसाब से क्षतिपूर्ति दी जाती है .रेंजर अशोक कुमार का कहना है कि हाथियों को भगाने के लिए ग्रामीणों का सहयोग जरूरी होता है . अगर ग्रामीण सहयोग न करें तो फिर वन विभाग के दस्ते को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है . कुछ इलाकों के ग्रामीण सहयोग करते हैं . जिनमें आमतौर पर रामगढ़, आसनबनी, कंदरबेरा ऐसे क्षेत्र हैं , जहां के ग्रामीण बढ़-चढ़कर हाथियों के झुंड को भगाने में वन विभाग के और दस्तों की मदद करते हैं. जबकि अन्य छोटे-मोटे गांव के लोग औपचारिकता पूरी करते हैं. वन विभाग को फोन से सूचना दे दी जाती है . बस उसके बाद इसे ही अपनी ड्यूटी समझ कर अपने घरों में चले जाते हैं . इसके पीछे वजह तो कई हैं लेकिन मुख्य वजह है फसल के मुआवजे के रूप में मिलने वाली रकम. उन्होंने बताया बहुत से ऐसे खेती वाले जगह है , जहां क्षतिपूर्ति का आकलन करना कठिन होता है. औसत रूप से आकलन कर रकम निर्धारित कर दी जाती है. ऐसे में ग्रामीणों को इसका लाभ मिलता है . कई बार तो देखा गया है कि हाथियों के झुंड को भगाने वाले लोगों को ही गांव के लोग भगाने लगते हैं .क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि क्षतिपूर्ति उन्हें ज्यादा सहूलियत दे सकती है.
*हाथियों के झुंड को भगाने के लिए 5 दस्ते में 75 लोग हैं शामिल*
चांडिल वन अभ्यारण्य क्षेत्र के रेंजर अशोक कुमार ने बताया उनके अधीन हाथियों को भगाने वाले पांच दस्ते काम करते हैं . एक दस्ते में 15 लोग होते हैं . इनको जरूरत पड़ने पर विभिन्न इलाकों में भेजा जाता है. दस्ते के लोग हाथियों को भगाने में दक्ष होते हैं . लेकिन अहम बात यह होती है कि हाथियों का झुंड एक क्षेत्र से निकलकर पुनः दूसरे क्षेत्र में पहुंच जाता है और इसी तरह से उस एरिया में घूमता रहता है . दस्ता भी उन्हें भगाने में जूझता है . लेकिन जिस क्षेत्र से यह हाथी पहुंचे हैं वह पुनः उस क्षेत्र में लौटने में परेशानी पैदा करते हैं. यही वजह है की आसपास के गांव के लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
*जंगली हाथियों से होने वाले नुकसान का मुआवजा पहले से निर्धारित*
श्री कुमार ने बताया कि सरकार की ओर से मिलने वाले मुआवजे का रेट पहले से तय है . ₹20000 प्रति हेक्टेयर फसल की बर्बादी पर मुआवजा दिया जाता है. लेकिन एक जगह 1 हेक्टर जमीन होती नहीं है . जमीन कई टुकड़ों में विभक्त होती है. जिसकी वजह से उसका आकलन करने में कठिनाई होती है . बावजूद इसके कम से कम ₹9000 नुकसान की भरपाई के रूप में जरूर मिल जाते हैं . इसके अलावा अगर हाथियों द्वारा किसी व्यक्ति को मार दिया जाता है तो उसके एवज में ₹4 लाख का मुआवजा उसके परिवार को दिया जाता है. गंभीर रूप से जख्मी को एक लाख रुपए और साधारण रूप से जख्मी को ₹15000 का मुआवजा मिलता है . स्थाई अपंगता की स्थिति में ₹2 लाख मुआवजे स्वरूप दिए जाते हैं . जहां तक अनाज के नुकसान की बात है तो अगर हाथियों की वजह से किसी का घर टूट जाता है और घर में रखे अनाज हाथी खा जाते हैं तो वैसी स्थिति में 1 क्विंटल अनाज के एवज में 16 सौ रुपए से अधिकतम ₹8000 तक मुआवजा दिया जाता है. टूटे घर और क्षतिग्रस्त होने पर भी पीड़ित को मुआवजा दिए जाते हैं . पहले उसका मूल्यांकन किया जाता है और फिर राशि तय की जाती है. कहीं-कहीं ग्रामीणों का हाथियों को भगाने में सहयोग नहीं मिलने का वजह मुआवजा होता है.
*धर्मेंद्र और अमिताभ की जोड़ी भी चांडिल वन क्षेत्र में देखने को मिली*
दलमा और चांडिल रेंज में हाथियों के एक जोड़े ने वन विभाग की टीम को काफी परेशान किया. इस जोड़े के दोनों हाथी नर थे, लेकिन उनकी दोस्ती धर्मेंद्र और अमिताभ बच्चन से कम नहीं थी . वैसे वन क्षेत्र में दो नर साथियों की दोस्ती देखने को कम मिलती है . लेकिन उनकी दोस्ती अजब थी . दोनों एक साथ रहते . अगर कहीं खेत खलियान में प्रवेश करते तो दोनों साथ होते . नदी तालाब अथवा डैम में भी दोनों को एक साथ देखा जाता था . क्षेत्र में उनकी दोस्ती के चर्चे आम हो गए थे. उनको भगाने में वन विभाग को काफी मशक्कत करनी पड़ी . पिछले 3 माह से नरो का यह जोड़ा इस क्षेत्र में प्रभाव जमाए हुए था. बड़ी मशक्कत के बाद पिछले दिनों उन्हें बंगाल सीमा में प्रवेश कराने में मदद मिली. रेंजर अशोक कुमार कहते हैं कि उनकी दोस्ती गाढी थी. जहां भी भगाया जाता दोनों साथ हो जाते हैं . ऐसा लगता है कि दोनों किसी अलग-अलग क्षेत्र से बिछड़ कर चांडिल रेंज में पहुंच गए थे. चुकी दोनों एक साथ हो गए इसलिए उनके बीच दोस्ती हो गई . आमतौर पर नरों के बीच ऐसी दोस्ती नहीं देखी जाती है . अगर दोनों युवा अवस्था में पहुंचेंगे तो जोर आजमाइश से इनकार नहीं किया जा सकता है . ऐसे में उनके बीच विरोध हो सकता है और दोस्ती टूट सकती है. इसके अलावा नरों के बीच झगड़े की वजह मादा भी बनती है . ऐसी स्थिति में भी नर के उस जोड़ें में विरोध पैदा हो सकता है . लेकिन फिलहाल दोनों साथ साथ हैं, और उनकी जोड़ी अटूट लगती है.